‘जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूं.. तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते’, जॉन एलिया साहब का ये शेर कल यानी 20 दिसंबर को लोकसभा में उस वक्त पढ़ा गया जब संसद में भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लाए गए तीन नए कानूनों पर बहस चल रही है.
एक तरफ जहां गृहमंत्री अमित शाह ने इन तीनों कानूनों को गुलामी के दौर के निशान को मिटाने का एक प्रयास बताया, तो वहीं दूसरी तरफ AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने इन नए कानूनों की तुलना रौलट ऐक्ट से कर दी.
बहस के दौरान ओवैसी काफी शायराना अंदाज में इन कानूनों का विरोध करते नजर आए. उन्होंने बहस की शुरुआत शेर से करते हुए कहा, ‘हमको शाहों की अदालत से तवक्को तो नहीं, आप कहते हैं तो जंजीर हिला देते हैं.’
इन नए कानूनों पर ओवैसी कहते हैं कि ये विधेयक भारत के आम लोगों के खिलाफ हैं. इसमें पुलिस को ‘न्यायाधीश, जूरी और एक्जिक्यूटर’ के रूप में काम करने की शक्तियां दे दी गई हैं. अगर इसे कानून की शक्ल दी जाती है तो आम लोगों से उनके अधिकार छीन लिए जाएंगे.
ओवैसी के अनुसार मोदी सरकार द्वारा लाए गए इन तीनों ही विधेयक में कई ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं जो काफी खतरनाक हैं. ये देश के आम नागरिकों की स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए खतरा हैं.
ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि सदन में किए गए ओवैसी के दावे में कितनी सच्चाई है. भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लाए गए तीन नए कानूनों में नया क्या है…
कौन-कौन से हैं नए कानून
भारत के आपराधिक कानून को बदलने वाले तीन अहम विधेयकों- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक का रास्ता लोकसभा में साफ हो गया. अब इन तीनों बिलों को जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है. इसके बाद इन्हें लोकसभा और बाद में राज्यसभा में पारित कराया जाएगा.
अगर यह तीन विधेयक कानून की शक्ल लेता है तो ये बिल भारतीय दंड संहिता (आपीसी), कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह ले लेंगे.
नए कानून की धाराओं में बदलाव?
IPC में फिलहाल 511 धाराएं हैं. इसकी जगह भारतीय न्यायिक संहिता लेता है तो इसमें 356 धाराएं रह जाएंगी. पुराने कानून से नए कानून में 175 धाराएं बदल जाएंगी. भारतीय न्यायिक संहिता में 8 नई धाराएं जोड़ी जाएंगी, 22 धाराएं हटाई जाएंगी.
इसी तरह सीआरपीसी में 533 धाराएं रह जाएंगी और 160 धाराएं बदल जाएंगी. नए कानून में 9 नई धाराएं जोड़ी गई है और 9 खत्म का गई है.
नए आपराधिक कानूनों में 6 बड़े और महत्वपूर्ण बदलाव क्या हैं?
1. मॉब लिंचिंग और नफरती अपराधों के लिए बढ़ाई गई सजा
वर्तमान में जो कानून है उसमें मॉब लिंचिंग और नफरती अपराध के लिए कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान था. इस नियम के अनुसार जब पांच या उससे ज्यादा लोगों का समूह किसी व्यक्ति के जाति या समुदाय के आधार पर उसकी हत्या के मामले में शामिल पाया जाता है. तो उस समूह के सभी सदस्यों को न्यूनतम सात साल की कैद की सजा दी जाएगी. लेकिन नए कानून में इस तरह के मामलों में दोषी पाए गए लोगों को की आजीवन कारावास कर दिया गया है.
2. आतंकवादी गतिविधि को परिभाषित किया गया
पहली बार आतंकवादी गतिविधी को भारतीय न्याय संहिता के तहत पेश किया गया था. नए विधेयक में इसके कानून में कुछ बदलाव किए गए है. नया विधेयक के तहत अब आर्थिक सुरक्षा को खतरा भी आतंकवादी गतिविधि के अंतर्गत आएगा.
इसके अलावा तस्करी या नकली नोटों का उत्पादन करके देश की वित्तीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाना भी आतंकवादी अधिनियम के अंतर्गत आएगा. भारत में रक्षा या किसी सरकारी उद्देश्य के लिए गए संपत्ति को विदेश में नष्ट करना भी आतंकवादी गतिविधि का ही हिस्सा होगा.
देश में सरकारों को कुछ भी करने पर मजबूर करने के लिए किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेना या किसी भी व्यक्ति का अपहरण करना भी आतंकवादी गतिविधि ही माना जाएगा.
3. छोटे अपराध को किया गया परिभाषा
वर्तमान में जो कानून है उसमें संगठित समूहों द्वार किए गए अपराध जैसे गाड़ियों की चोरी, फोन स्नैचिंग के लिए दंड का प्रावधान किया गया था, अगर इससे आम जनता को असुरक्षा की भावना पैदा होती हो तो. लेकिन नए कानून में असुरक्षा की भावना की यह अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है.
4. कोर्ट कार्यवाही प्रकाशित करने पर भी सजा का प्रावधान
नए विधेयक में नया प्रावधान जोड़ा गया है जिसके जो कोई भी रेप के मामलों के अदालती कार्यवाही की खबर बिना कोर्ट के अनुमति के प्रकाशित करता है तो ऐसी स्थिति में उसे 2 साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
5. मानसिक बीमार नहीं ‘विक्षिप्त दिमाग’
वर्तमान के कानून में यानी आईपीसी में मानसिक रूप से बीमार लोगों को सजा में छूट दी जाती है. लेकिन नए कानून यानी भारतीय न्याय संहिता में इस “मानसिक बीमारी” शब्द का नाम बदल दिया गया था. अब ऐसे अपराधि को ‘विक्षिप्त दिमाग’ वाला अपराधी कहा जाएगा.
6. सामुदायिक सेवा को किया गया परिभाषा
नई विधेयक में (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) में सामुदायिक सेवा को विस्तार में परिभाषित किया गया है. इसके अनुसार सामुदायिक सेवा एक ऐसी सजा को कहा जाएगा जो समुदाय के लिए फायदेमंद होगी और इसके लिए अपराधी को कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाएगा.
इन नए विधेयकों में छोटे-मोटे अपराध जैसे चोरी, नशे में धुत होकर परेशान करना, जैसे अपराधों के लिए सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा की शुरुआत की गई थी.
महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को लेकर क्या है प्रावधान?
नए बिल में गैंगरेप के मामलों में अब 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा झूठे वादे करके या अपनी पहचान छुपाकर यौन संबंध बनाना भी अब अपराध की श्रेणी में शामिल होगा. इसमें 18 साल से कम आयु की लड़की से दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास या मृत्यु दंड का प्रावधान किया गया है.
नए विधेयक में यौन हिंसा के मामलों में पिड़िता का बयान महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट ही रिकॉर्ड करेगी. यह बयान पीड़िता के आवास पर महिला पुलिस अधिकारी के सामने दर्ज किया जाएगा. बयान रिकॉर्ड करते वक्त पीड़िता के माता/पिता या अभिभावक मौजूद रह सकते हैं.
अब जानते हैं कि सदन में ओवैसी ने और क्या-क्या कहा
ओवैसी ने लोकसभा में चर्चा के दौरान कहा कि देश की वर्तमान सरकार का मंत्र जनता के लिए अविश्वास और धंधे के लिए विश्वास मंत्र है. हमारे देश में आज सूट पहनने वाला व्यक्ति किसी भी सजा से बच जाता है. खाकी पहना व्यक्ति किसी को भी गोली मार सकता है उन्हें किसी तरह का जवाब भी नहीं देना होता. लेकिन, संसद में बैठे जिन लोगों पर आतंकवाद के आरोप हैं, वह इस कानून में बताएंगे कि आतंकवाद किया है.
अपने पूरे भाषण के दौरान काफी गुस्से में नजर आ रहे थे. जब किसी अन्य सदस्य ने उन्हे टोका तो ओवैसी कहते हैं कि वह मरने को तैयार हैं, उनकी गोलियां खत्म हो जाएंगी लेकिन वह जिंदा रहेंगे.
ओवैसी ने इसी दौरान साल 1999 में उनके साथ ही पुलिस के हाथों पिटाई का भी एक किस्सा साझा किया. ओबैसी कहते हैं कि, ’22 दिसंबर 1999 को पुलिस ने मुझे पीटा था उस दिन मेरे सिर पर 20 टांके लगाए गए थे.उस वक्त टीडीपी की सरकार थी और मुझे पीटने वाले दोनों पुलिसवालों को आईपीएस बना दिया गया.