क्या हरियाणा चुनाव के लिए ही जेल से बाहर आया राम रहीम? जानें क्यों उठ रहा ये सवाल

गुरमीत राम रहीम सिंह को एक बार फिर से जेल से रिहा कर दिया गया है. दुष्कर्म का दोषी राम रहीम पिछले 4 साल में 10वीं बार जेल से बाहर आया है. राम रहीम को उसके समर्थक गुरमीत राम रहीम सिंह इन्सां कहते हैं और वह डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख है. राम रहीम को भारतीय कानून की पेचिदगियों की वजह से रिहाई मिली है. उसे कभी पैरोल मिल जाती है तो कभी फरलो, लेकिन जब भी वो बाहर आता है, उसकी वजह होती है. 

हालांकि, उसकी रिहाई की सबसे बड़ी वजह होती है चुनाव. ऐसे में क्या अब भी जब राम रहीम बाहर आया है, तो उसका हरियाणा के चुनाव से कुछ लेना-देना है. आखिर राम रहीम की रिहाई से किसको फायदा मिलता है और आखिर जब राम रहीम बाहर आता है, तो वो करता क्या है. आज इस रिपोर्ट में इस बारे में विस्तार से जानते हैं.

क्या है पैरोल और फरलो, जिसका फायदा उठा रहा राम रहीम?

राम रहीम को साध्वियों से रेप में 20 साल की सजा मिली है और पत्रकार छत्रपति की हत्या में उसे उम्रकैद की सजा मिली है. साल 2017 से ही राम रहीम जेल में बंद है और इस सात साल की सजा में वो 8 महीने से भी ज्यादा वक्त तक जेल से बाहर ही रहा है. कभी पैरोल पर तो कभी फरलो पर. अब ये पैरोल और फरलो क्या होती है, उसे भी समझ लेते हैं. 

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच के एक फैसले के मुताबिक फरलो हो या पैरोल, दोनों ही जेल से कुछ दिनों की रिहाई के लिए होती है, लेकिन दोनों में अंतर होता है. एक कैदी, जिसे सजा हो चुकी है, उसे कम से कम तीन साल जेल में बिताने के बाद फरलो दी जा सकती है, जबकि बहुत जरूरी हो तो कुछ घंटो या कुछ दिनों के लिए पैरोल मिलती है, लेकिन वो भी तब जब कैदी सजा का कम से कम एक साल जेल में बिता चुका हो. 

हालांकि पैरोल और फरलो दोनों में एक और अंतर है और वो ये है कि अगर कैदी को पैरोल पर रिहा किया जाता है, तो जितने दिन की पैरोल होती है, उतने अतिरिक्त दिन सजा के तौर पर काटने पड़ते हैं. मगर फरलो को सजा में ही जोड़ा जाता है. इसे और आसान भाषा में समझें तो पैरोल पर रिहाई किसी खास काम से मिलती है, जबकि अच्छा चाल-चलन हो तो छुट्टी के तौर पर फरलो मिल जाती है.

जेल से बाहर आने का चुनावी कनेक्शन

2017 में जेल जाने के बाद राम रहीम जब पहली बार जेल से बाहर आया तो उसे पैरोल मिली थी और तब वजह थी उसकी मां की बीमारी. 24 अक्टूबर 2020 को उसे एक दिन की पैरोल मिली थी. तब वो अपनी बीमार मां से मिलकर वापस जेल चला गया था. फिर दूसरी बार वो 21 मई 2021 को जेल से बाहर आया. वो भी एक दिन की पैरोल ही थी और तब भी उसे अपनी बीमार मां से ही मिलना था. लेकिन इसके बाद राम रहीम जितनी बार भी जेल से बाहर आया है, उसका कोई न कोई चुनावी कनेक्शन जरूर रहा है.

उदाहरण के लिए तीसरी बार वो 7 फरवरी 2022 को पैरोल पर बाहर आया था और तब उसे 21 दिनों की पैरोल मिली थी. लेकिन ये वही वक्त था जब पंजाब में विधानसभा चुनाव शुरू हो रहे थे और राज्य की राजनीति का आलम ये है कि वहां की कुल 117 विधानसभा सीटों में से करीब 69 सीटों पर डेरे प्रभावी हैं. अगर इनकी संख्या को थोड़ा और कम करें तो पंजाब में कम से कम 56 ऐसी विधानसभाएं हैं, जहां डेरों का अच्छा खासा प्रभुत्व है. 

वहीं बात अगर सिर्फ राम रहीम के डेरे डेरा सच्चा सौदा की की जाए तो पंजाब में डेरा सच्चा सौदा कम से कम 27 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखता है. राम रहीम चौथी बार जून 2022 में एक महीने के लिए जेल से बाहर आया था और तब हरियाणा में निकाय चुनाव थे. पांचवी बार वो अक्तूबर 2022 में 40 दिन के लिए बाहर आया था और तब हरियाणा की आदमपुर सीट पर उपचुनाव होने के साथ ही हिमाचल प्रदेश में भी विधानसभा के चुनाव थे. 

उस समय उसकी पैरोल की शर्त ये थी कि वो उत्तर प्रदेश के बागपत में अपने डेरे पर रहेगा और वहां पर राम रहीम ने ऑनलाइन दरबार लगाया ताकि हर जगह उसे देखा-सुना जा सके. जब राम रहीम ने हिमाचल प्रदेश के अपने अनुयायियों के लिए ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया तो उसमें हिमाचल प्रदेश सरकार के मंत्री तक मौजूद थे. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि राम रहीम हर चुनाव से पहले बाहर क्यों ही आता है.

जुलाई 2023 में जब राम रहीम को एक महीने की पैरोल मिली तो हरियाणा में पंचायत के चुनाव थे. नवंबर 2023 में जब उसे 29 दिनों की पैरोल मिली तो राजस्थान में विधानसभा के चुनाव थे. जनवरी 2024 में जब वो 50 दिनों के लिए बाहर आया था तो देश में लोकसभा के चुनाव थे और अब अगस्त 2024 में उसे 21 दिनों की पैरोल मिली है तो हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने के साथ ही यूपी की कुछ सीटों पर उपचुनाव भी होने हैं. 

कांग्रेस-बीजेपी का समर्थक रहा है राम रहीम

जैसा कि राम रहीम का इतिहास रहा है, वो और उसका डेरा हरियाणा में बीजेपी का बड़ा समर्थक रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राम रहीम ने बीजेपी का ही समर्थन किया था और अपनी 15 लोगों की टीम को भी चुनाव में उतारा था. इससे पहले राम रहीम जब तक बाबा था और उसे रेप और हत्या का दोषी नहीं पाया गया था तो उसने मोदी सरकार की नोटबंदी का समर्थन किया था. वहीं 2007 में राम रहीम पंजाब के चुनाव के दौरान कांग्रेस का भी समर्थन कर चुका है.

कुल मिलाकर बात इतनी है कि बाबा हर चुनाव से पहले बाहर आता है. बड़े-बड़े नेता उसके दरबार में हाजिरी लगाते हैं और बाबा उन्हें आशीर्वाद देता है. बाकी बचे हुए समय में बाबा जेल से बाहर आकर सत्संग करता है, प्रवचन करता है. वक्त हो तो म्यूजिक वीडियो  भी बना देता है और हो सकता है कि उसे यूं ही पैरोल-फरलो मिलती रहे तो वो मैसेंजर ऑफ गॉड की तरह कोई नई फिल्म भी बना दे और वो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हो जाए. 

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *