मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह गिरफ्तार, जानें क्या है मामला

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह परमिशन न होने के बावजूद धरना देने पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया है। दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना पहले से प्रस्तावित था, लेकिन पुलिस ने परमिशन नहीं दी थी। दिग्विजय ने अपने X अकाउंट पर लिखा कि मुझे दो हफ्ते पहले EVM हटाओ मोर्चा की ओर से 22 फरवरी को शांतिपूर्ण धरना देने का निमंत्रण प्राप्त हुआ था। धरना EVM से देश में लोकसभा चुनाव न कराने के मुद्दे को लेकर था। इसे मैंने स्वीकार किया था। करीब पांच घंटे कस्टडी में रखने के बाद पूर्व सीएम को रिहा कर दिया गया।

दिग्विजय सिंह बोले- सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए

दिग्विजय सिंह ने लिखा कि 2 दिन पहले शांतिपूर्ण धरने की स्वीकृति भी निरस्त कर दी गई थी। उन्होंने लिखा कि इस बार पूरे देश से हजारों लोग धरने में शामिल होने आ रहे थे, इसलिए स्वीकृति निरस्त कर दी गई। क्या कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार इतना घबरा रही है? अब EVM हटाओ-लोकतंत्र बचाओ, आंदोलन देश के गांव-गांव में पहुंच रहा है। सुप्रीम कोर्ट को इसका संज्ञान लेना चाहिए।

इलेक्शन कमीशन पर भरोसा नहींः दिग्विजय

दिग्विजय सिंह ने कहा कि EVM का मुद्दा पांच साल से चल रहा है। AICC के सर्वसम्मति से पारित राजनीतिक प्रस्ताव में यह उल्लेख था कि लोगों को EVM को लेकर शंका है, इसलिए चुनाव बैलेट पेपर से होना चाहिए। इसे लेकर कोई भी सवाल पूछने पर इलेक्शन कमीशन कोई जवाब नहीं देता है। हमें इलेक्शन कमीशन पर भरोसा नहीं है। दिग्विजय ने कहा कि लोकतंत्र में जनता से बढ़कर कोई नहीं होता है। हम जनता के साथ मिलकर लड़ाई लड़ेंगे। EVM बनाने वाली कंपनी के चार डायरेक्टर्स बीजेपी नेता हैं। मांगने पर हमें टेक्निकल कमेटी के मेंबर की रिपोर्ट नहीं दिखाई जाती है। कमेटी के सदस्य कौन होंगे? प्रधानमंत्री या उनका मनोनीत कोई मंत्री होगा। जो वो कहें, सो ठीक।

दिग्विजय सिंह ने सीजेआई से पूछे सवाल

दिग्विजय सिंह ने सीजेआई से मांग करते हुए पूछा कि आपको और क्या सबूत चाहिए? आप घोटालेबाजों और बेईमान लोगों को वीवीपैट ईवीएम में हेरफेर करने और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव जीतने की अनुमति कैसे दे सकते हैं, जिसे हमारे नरेंद्र मोदी माननीय प्रधानमंत्री “लोकतंत्र की जननी” कहते हैं, मुझे आप पर विश्वास है कि आपने स्वयं यह टिप्पणी की है कि सोर्स कोड/सॉफ्टवेयर ऐसा कर सकता है। क्या इसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे हैकिंग या हेरफेर की अनुमति मिल सकती है? क्या मैं सही हूं? अब मशीन में सोर्स कोड/सॉफ्टवेयर कौन फीड करता है? चुनाव आयोग की ओर से चुने गए बीईएल इंजीनियर या आईटी पेशेवर? उन्हें कौन चुनता है? चुनाव आयोग या भारत सरकार? क्या हम बीईएल इंजीनियर्स, चुनाव आयोग या पीएमओ पर भरोसा कर सकते हैं? बीईएल में 4 स्वतंत्र निदेशक हैं जो बीजेपी के सदस्य हैं. चुनाव आयोग, विपक्षी दलों से मिलने से इनकार कौन करता है? मुझे टिप्पणी करने की जरूरत नहीं है. आपको बेहतर जानकारी है। कृपया लॉर्डशिप हमारी विनती सुनें।

उदित राज ने उठाए हैं ईवीएम पर सवाल

वहीं, कांग्रेस नेता उदित राज के नेतृत्व वाले एक एंटी-ईवीएम ग्रुप का कहना है कि मौजूदा ईवीएम सिस्टम शुरू से अंत तक सत्यापन योग्य नहीं है, जिससे यह लोकतांत्रिक चुनावों के लिए अनफिट हो जाती है। उन्होंने मांग की है कि अब फिर से बैलेट पेपर के जरिए चुनाव करवाए जाने चाहिए। ‘ईवीएम हटाओ मोर्चा’ के राष्ट्रीय संयोजक उदित राज का कहना है कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन चुनाव आयोग से मिलने की लगातार कोशिश कर रहा है, लेकिन उसे अब तक मिलने में सफलता नहीं मिली है। 

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