रूस को पछाड़ भारत का ‘सबसे भरोसेमंद’ दोस्‍त बना फ्रांस, चीन- अमेरिका तक सुनाई देगी मैक्रों के दौरे की गूंज

नई दिल्‍ली: फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैनुअल मैक्रों गणतंत्र दिवस परेड में हिस्‍सा लेने के लिए 25 जनवरी को राजस्‍थान के जयपुर शहर पहुंच रहे हैं। फ्रांसीसी राष्‍ट्रपति जयपुर के बाद नई दिल्‍ली पहुंचेंगे जहां उनका भव्‍य स्‍वागत किया जाएगा। इससे पहले भारत ने अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडन को न्‍योता दिया था लेकिन उन्‍होंने इससे किनारा कर लिया था। इसके बाद भारत ने अपने सबसे भरोसेमंद दोस्‍त बन चुके फ्रांस के राष्‍ट्रपति को गणतंत्र दिवस परेड में मुख्‍य अतिथि बनने का न्‍योता दिया जिसे उन्‍होंने तत्‍काल स्‍वीकार कर लिया। विश्‍लेषकों के मुताबिक फ्रांस आज भारत के लिए रूस से भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण रक्षा सहयोगी देश बन गया है और यही वजह है कि चीन से लेकर पाकिस्‍तान तक की नजरें इस दौरे पर टिकी रहेंगी। वहीं अमेरिका को भी कड़ा संदेश जाएगा।

भारत ने गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में फ्रांस के राष्‍ट्रपति को बुलावा दिया है। ये 1948 में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते स्थापित होने के बाद से छठीं बार ऐसा हो रहा है। विश्‍लेषकों का कहना है कि ये न्योता सिर्फ दोनों देशों के गहरे और मधुर रिश्ते को नहीं दिखाता बल्कि इन रिश्तों के लगातार मजबूत होते जाने का उदाहरण भी है। भारत और फ्रांस के बीच रिश्ते लोकतंत्र, समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों पर आधारित हैं और शुरू से ही व्यापक और समग्र रहे हैं। भारत और फ्रांस के बीच रिश्‍ते में एक एंगल चीन भी है।

चीन की चाल पर भारत और फ्रांस की नजर

भारत और फ्रांस दोनों ही चीन को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ने से रोकने की ज़रूरत को समझते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में दोनों देशों के रणनीतिक हित हैं। पीएम मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों पिछले कुछ सालों में कई द्विपक्षीय बैठकों और कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में नियमित रूप से मिलते रहे हैं। भारत और फ्रांस के ये दोनों ही नेता न सिर्फ आपस में अच्छे संबंध रखते हैं बल्कि उनका अंतरराष्ट्रीय संबंधों को संचालित करने का तरीका भी समान है। दोनों ही देश स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना चाहते हैं।

भारत के लिए फ्रांस हमेशा से ही एक मज़बूत और विश्वसनीय साथी रहा है। भारत के शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका के प्रतिबंधों के दौरान भी फ्रांस ने भारत का साथ दिया था। जब अमेरिका और कनाडा ने तारापुर परमाणु रिएक्टर के लिए ईंधन देने से मना कर दिया था, तब फ्रांस ने भारत की मदद की थी। बाद में, साल 1998 में जब भारत ने फिर से परमाणु शक्ति के रूप में उभरने का ऐलान किया, तब भी अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद फ्रांस ने भारत के परमाणु अधिकार का समर्थन किया। यहां तक कि फ्रांस ने भारत के असैनिक परमाणु कार्यक्रम को सैन्य परमाणु कार्यक्रम से अलग करने में भी मदद की थी।

सुपर राफेल पर भारत और फ्रांस में बनेगी बात?

फ्रांस ने दोस्‍त भारत को परमाणु बम बनाने में और अंतरराष्ट्रीय परमाणु व्यवस्था का हिस्सा बनने में मदद की है। इससे दोनों देशों के बीच विश्वास बहुत बढ़ गया है। भारत और फ्रांस का सैन्य सहयोग साल 1953 से चल रहा है, जब भारत ने फ्रांस से एक लड़ाकू विमान ‘दासॉल्ट औरागन’ लिया, जिसे बाद में ‘तूफानी’ नाम दिया गया। साल 1956 में फ्रांस से ही दासॉल्‍ट मिस्‍ट्रे 4 लड़ाकू विमान भी खरीदे गए, जिन्होंने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाई। साल 1980 के दशक में, फ्रांस भारत का भरोसेमंद हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया। उसने भारत को मिराज 2000 बहु-भूमिका लड़ाकू विमान और मिलान एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल दिए।

मिलान का अब भी भारत में लाइसेंस के तहत निर्माण हो रहा है, लेकिन मिराज 2000 का निर्माण करने का मौका हम चूक गए, जो उस समय की राजनीतिक उदासीनता का नतीजा था। अब भारत ने राफेल फाइटर जेट खरीदा है जो चीन और पाकिस्‍तान को कड़ी टक्‍कर देने के लिए लिया गया है। यह भी चर्चा है कि भारत सुपर राफेल खरीदने पर विचार कर सकता है जो चीन और पाकिस्‍तान के पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट को टक्‍कर दे सकता है। वहीं अमेरिका भी अपने एफ 35 फाइटर जेट भारत को बेचना चाहता है। यही नहीं फ्रांस संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का समर्थन करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसी वजह से आज भारत के लिए फ्रांस रूस से भी ज्‍यादा भरोसेमंद साथी बन गया है।

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