सुरक्षा परिषद में सुधार, कोई भी देश भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी को अनदेखा नहीं कर सकता

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग एक बार फिर उठी है। इस बार सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य फ्रांस ने भी इस संस्था में सुधार की मांग की है। इसके अतिरिक्त जापान ने भी सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया है। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध कारोबारी एलन मस्क ने भी यह कहा है कि भारत का इस वैश्विक संस्था का स्थायी सदस्य न होना बेतुका है। उनके अनुसार सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होना ही चाहिए। उन्होंने भारत के अतिरिक्त अफ्रीकी देश को भी इस संस्था का स्थायी सदस्य बनाने पर जोर दिया है।

यह पहली बार नहीं है, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग उठी है। पिछले कुछ वर्षों में इस तरह की मांग बार-बार उठती रही है। खुद भारत भी कई अंतरराष्ट्रीय मंचों से यह कह चुका है कि यदि संयुक्त राष्ट्र को प्रासंगिक बने रहना है तो उसकी सुरक्षा परिषद में सुधार करना ही होगा। सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का कई अन्य देश भी समर्थन करते रहते हैं, लेकिन स्थिति ढाक के तीन पात वाली है।

इसका एक बड़ा कारण यह है कि इस संस्था के पांचों स्थायी सदस्य यानी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन इस पर एकमत नहीं हो पा रहे कि सुरक्षा परिषद में सुधार किस तरह हों? उनमें इसे लेकर भी सहमति नहीं बन पा रही है कि किन नए देशों को इस विशिष्ट संस्था का स्थायी सदस्य बनना चाहिए? वर्तमान स्थितियों में सहमति बनने के आसार और भी कम हैं, क्योंकि रूस और अमेरिका के बीच तो छत्तीस का आंकड़ा है ही, चीन और अमेरिका के बीच भी तनातनी जारी है।

सुरक्षा परिषद में सुधार कितना आवश्यक हो चुका है, यह इससे समझा जा सकता है कि यूरोप के तीन देश इसके स्थायी सदस्य हैं, जबकि वहां विश्व की केवल पांच प्रतिशत आबादी रहती है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार जब भी हो, कोई भी देश भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी को अनदेखा नहीं कर सकता। इसके बाद भी यह तय है कि चीन यह नहीं चाहेगा कि भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बने।

भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य केवल इसलिए नहीं बनना चाहिए कि वह सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारत को इसलिए भी इस संस्था का स्थायी सदस्य बनना चाहिए, क्योंकि वह पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था है और शीघ्र ही तीसरे नंबर पर आने जा रहा है।

इसके अतिरिक्त हाल के वर्षों में भारत ने यह दिखाया है कि वह वैश्विक समस्याओं के समाधान में महती भूमिका निभाने में सक्षम हो चुका है। दुनिया भर में शांति अभियानों में भी भारत के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। इसी तरह विश्व समुदाय इसे भी विस्मृत नहीं कर सकता कि कोरोना काल में भारत ने किस तरह सौ से अधिक देशों की मदद की थी।

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