बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मिलेगा भारत रत्न, मोदी सरकार का बड़ा ऐलान

केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया गया है. इस संबंध में राष्ट्रपति भवन की ओर से बयान जारी कर ये जानकारी दी गई. 

राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में कहा गया कि भारत सरकार को बताते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिवंगत कर्पूरी ठाकुर को दिया जा रहा है. वह भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के पुरोधा और एक प्रेरणादायक शख्सियत थे. यह सम्मान समाज के वंचित वर्ग के उत्थान में कर्पूरी ठाकुर के जीवनभर के योगदान और सामाजिक न्याय के प्रति उनके अथक प्रयासों को श्रद्धांजलि है. 

कर्पूरी ठाकुर की बुधवार को होने वाली 100वीं जन्म जयंती से पहले उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया गया है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग की थी. इस ऐलान के बाद जेडीयू ने मोदी सरकार का आभार जताया है. 

36 साल की तपस्या का फल मिला’

कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा कि हमें 36 साल की तपस्या का फल मिला है. मैं अपने परिवार और बिहार के 15 करोड़ो लोगों की तरफ से सरकार को धन्यवाद देना चाहता हूं.

कौन थे कर्पूरी ठाकुर?

कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था. पटना से 1940 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास की और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे. कर्पूरी ठाकुर ने आचार्य नरेंद्र देव के साथ चलना पसंद किया. इसके बाद उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और 1942 में गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया. इसके चलते उन्हें जेल में भी रहना पड़ा.

साल 1945 में जेल से बाहर आने के बाद कर्पूरी ठाकुर धीरे-धीरे समाजवादी आंदोलन का चेहरा बन गए, जिसका मकसद अंग्रेजों से आजादी के साथ-साथ समाज के भीतर पनपे जातीय व सामाजिक भेदभाव को दूर करने का था ताकि दलित, पिछड़े और वंचित को भी एक सम्मान की जिंदगी जीने का हक मिल सके.

1952 में पहली बार बने विधायक

कर्पूरी ठाकुर 1952 में ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीतकर विधायक बने थे. 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी बड़ी ताकत बन कर उभरी थी, जिसका नतीजा था कि बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी.

महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने तो कर्पूरी ठाकुर उप मुख्यमंत्री बने और उन्हें शिक्षा मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था. कर्पूरी ठाकुर ने शिक्षा मंत्री रहते हुए छात्रों की फीस खत्म कर दी थी और अंग्रेजी की अनिवार्यता भी खत्म कर दी थी. कुछ समय बाद बिहार की राजनीति ने ऐसी करवट ली कि कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बन गए. इस दौरान वो छह महीने तक सत्ता में रहे. उन्होंने उन खेतों पर मालगुजारी खत्म कर दी, जिनसे किसानों को कोई मुनाफा नहीं होता था, साथ ही 5 एकड़ से कम जोत पर मालगुजारी खत्म कर दी गई और साथ ही उर्दू को राज्य की भाषा का दर्जा दे दिया. इसके बाद उनकी राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और कर्पूरी ठाकुर बिहार की सियासत में समाजवाद का एक बड़ा चेहरा बन गए.

उन्होंने मंडल आंदोलन से भी पहले मुख्यमंत्री रहते हुए पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण दिया था. लोकनायक जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतिक गुरु थे.

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