इस्कॉन से क्यों घबरा रहा है बांग्लादेश, क्या शेख हसीना राज में नहीं था कोई डर?

बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के जाते ही कट्टरपंथियों ने अल्पसंख्यकों खास तौर पर हिंदुओं को टारगेट करना शुरू कर दिया है. एक ओर पूर्व इस्कॉन लीडर चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया तो वहीं दूसरी ओर इस्कॉन के 16 सदस्यों के बैंक खाते जब्त कर लिए गए हैं.

सूत्रों के मुताबिक शेख हसीना सरकार की बेदखली के बाद से ही बांग्लादेश में मौजूद कट्टरपंथी संगठन दोबारा एक्टिव हो गए हैं और वह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों, मंदिरों और उनके व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहे हैं.

इस्कॉन से क्यों घबरा रहे कट्टरपंथी?

साल 2022 की जनगणना के मुताबिक, बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी करीब 1 करोड़ 31 लाख है, जो देश की कुल जनसंख्या का करीब 8 फीसदी है. अक्सर बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के मामले सामने आते रहे हैं लेकिन बीते कुछ समय से इस्कॉन इन मामलों के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट करने का काम कर रहा है, जो कट्टरपंथियों को खटक रहा है.

बांग्लादेश में इस्कॉन के 65 मंदिर हैं और करीब 50 हजार से अधिक फॉलोवर्स हैं. 5 अगस्त को शेख हसीना सरकार की बेदखली के बाद करीब हफ्ते भर में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के 200 मामले दर्ज किए गए. इस हिंसा के खिलाफ कार्रवाई और न्याय की मांग के लिए इस्कॉन समेत बांग्लादेश के तमाम हिंदू संगठन आवाज़ उठा रहे थे.

शेख हसीना सरकार में क्या था हाल?

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खास तौर पर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का पुराना इतिहास है, लेकिन शेख हसीना सरकार ने हिंसा के पीछे शामिल संगठनों के खिलाफ कार्रवाई कर उन पर नकेल कसी. अप्रैल 2001 में शेख हसीना सरकार ने वेस्टेड प्रॉपर्टी रिटर्न बिल पारित किया, इस कानून के प्रावधानों के तहत बांग्लादेश की आज़ादी के दौरान जो संपत्ति सरकार ने ‘वेस्टेड प्रॉपर्टी’ के तहत जब्त की थी उसे असली मालिक को लौटाया जाना था. इसमें ज्यादातर संपत्ति हिंदुओं की थी, जो भारत के बंटवारे के दौरान पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में थी. लेकिन इसके अगले साल हुए चुनाव में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सरकार आ गई. नवंबर 2002 में इस कानून में ऐसे संशोधन किए गए जिससे सरकार को इन संपत्तियों के बंटवारे को लेकर बेजा अधिकार मिल गए.

2009 में जब दोबारा शेख हसीना की सरकार बनी तो 2009 में इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल का गठन किया गया, इसके जरिए मानवता के खिलाफ अपराध करने वालों की जांच की जाने लगी. ICT की जांच के घेरे में बीएनपी और जमात के कई लीडर्स आए. 28 फरवरी 2013 को जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश के वाइस-प्रेसिडेंट दिलावर हुसैन पर मुक्तिसंग्राम के दौरान मर्डर, लूटपाट, रेप और जबरन धर्म परिवर्तन समेत 16 मामलों में दोष तय किया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस फैसले के बाद बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के मामले सामने आए थे, लेकिन शेख हसीना सरकार ने जमात के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए संगठन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया.

हिंदुओं की सुरक्षा के मसले पर शेख हसीना सरकार ने हमेशा भारत की चिंताओं को समझा और जरूरत पड़ने पर कड़ी कार्रवाई की. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बांग्लादेश में हिंदुओं को अवामी लीग का वोट बैंक समझा जाता है और यही वजह है कि यह समुदाय मुल्क में हमेशा कट्टरपंथियों के निशाने पर रहा है.

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