सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (17 सितंबर, 2024) को देश में प्राधिकारियों को उसकी इजाजत के बिना आपराधिक मामलों में आरोपियों की संपत्ति को ध्वस्त नहीं करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि अगर अवैध रूप से ध्वस्तीकरण का एक भी मामला है तो यह हमारे संविधान के मूल्यों के विरुद्ध है. कोर्ट ने सुनवाई करते हुए यह भी कहा कि बुलडोजर चलाने वाले खुद को जज न समझें.
जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने स्पष्ट किया कि कोर्ट का आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों आदि पर बने अनधिकृत ढांचों पर लागू नहीं होगा. पीठ ने कहा, ‘यदि अवैध ध्वस्तीकरण का एक भी उदाहरण है…तो यह हमारे संविधान के मूल्यों के विरुद्ध है.’
सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जिनमें आरोप लगाया गया था कि कई राज्यों में आपराधिक मामलों में आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है. सॉलिसिटर जनरल तुषार ने कोर्ट से कहा कि ऐसा नेरेटिव सेट किया जा रहा है कि एक विशेष समुदाय को टारगेट करके बुलडोजर की कार्रवाई की जा रही है. पीठ ने वरिष्ठ विधि अधिकारी से कहा, ‘आप निश्चिंत रहें, बाहरी आवाजें हमें प्रभावित नहीं कर सकती हैं.’ पीठ ने मामले की अगली सुनवाई एक अक्टूबर को तय की है.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगली सुनवाई तक धवस्तीकरण का कोई मामला नहीं आना चाहिए. हालांकि, सड़कों, फुटपाथ, रेलवे लाइन या पब्लिक प्लेस में हो रहे अनऑथोराइज्ड निर्माण पर यह आदेश लागू नहीं होगा. कोर्ट के इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस तरह प्रशासन के हाथ नहीं बांध सकते हैं.
जस्टिस गवई ने कहा कि 15 दिन डिमोलिशन नहीं होगा तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि वह देश भर में अधिकारियों के हाथ नहीं रोक सकते तो कोर्ट ने कहा कि उन्होंने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर आदेश पारित किया है. कोर्ट ने कहा कि हम अवैध निर्माण ढहाने के रास्ते में नहीं आएंगे, लेकिन बुलडोजर चलाने वाले खुद को जज नहीं समझ सकते.
कोर्च ने इस मामले में दो सितंबर को हुई सुनवाई के बाद दिए गए बयानों पर भी अपनी नाराजगी व्यक्त की. उस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कुछ दिशानिर्देश बनाने की बात कही थी जो पूरे देश में लागू होंगे. बेंच ने कहा, ‘उस आदेश के बाद, ऐसे बयान आए हैं कि बुलडोजर चलता रहेगा… और यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि स्टेयरिंग किसके हाथ में है.’ कोर्ट ने कहा कि इस तरह के बयान दिए गए हैं और अदालत इस पर आगे कुछ भी कहने से बच रही है.
बेंच ने कहा, ‘मिस्टर मेहता, आप हमें यह बताएंगे कि इसे कैसे रोका जाए. यदि आवश्यक हुआ तो हम निर्वाचन आयोग से भी कहेंगे.’ कोर्ट ने दो सितंबर को इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सवाल किया था कि किसी का मकान सिर्फ इसलिए कैसे गिराया जा सकता है कि वह एक आरोपी है? पीठ ने कहा था, ‘किसी का मकान सिर्फ इसलिए कैसे गिराया जा सकता है कि वह एक आरोपी है? भले ही वह दोषी हो, फिर भी कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता.’ हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह किसी भी अनधिकृत निर्माण या सार्वजनिक सड़कों पर अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा.
उत्तर प्रदेश की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में राज्य द्वारा पहले दायर हलफनामे का हवाला दिया. उन्होंने बताया कि हलफनामे में कहा गया है कि सिर्फ इसलिए कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध में शामिल होने का आरोप है, उसकी अचल संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार कभी नहीं हो सकता. तुषार मेहता ने बताया था कि राज्य ने कहा है कि किसी अचल संपत्ति का ध्वस्तीकरण केवल किसी प्रकार के उल्लंघन के लिए और संबंधित नगरपालिका कानून या क्षेत्र के विकास प्राधिकरणों को नियंत्रित करने वाले कानून में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार हो सकता है.
उन्होंने कहा कि किसी भी अचल संपत्ति को केवल इस आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता कि उस संपत्ति का मालिक या उसमें रहने वाला व्यक्ति किसी अपराध में शामिल था. एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश एक वकील ने कहा था कि लगभग हर राज्य अब इसमें लिप्त हो रहा है और संपत्तियों को ध्वस्त कर रहा है. सुप्रीम को्र्ट जमीयत उलेमा-ए-हिंद और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विभिन्न राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि दंगों और हिंसा के मामलों में आरोपियों की संपत्तियों को भविष्य में नहीं तोड़ा जाए.
जमीयत ने इससे पहले राष्ट्रीय राजधानी के जहांगीरपुरी इलाके में कुछ इमारतों को गिराए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. मुस्लिम संगठन ने पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि राज्य में हिंसा के आरोपियों की संपत्तियों को भविष्य में नहीं तोड़ा जाए. इसने यह भी कहा था कि बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए और बिना पूर्व सूचना के कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए.