ग्वालियर: मध्य प्रदेश सरकार शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार करने के लिए बड़े बड़े दावे करती है, लेकिन हकीकत क्या है ये आंकड़े बयां करती है. सरकारी स्कूलों में शिक्षक के पद रिक्त पड़े हुए हैं. वहीं इन पदों पर शिक्षकों को भर्ती नहीं हो रही है, बल्कि इनके स्थान पर 1 लाख 70 हजार अतिथि शिक्षकों को भर्ती करके उन्हीं से काम चला रही है. इस अव्यवस्था के खिलाफ़ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर की गई. जिसपर शुक्रवार को सुनवाई हुई. इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी शिक्षा विभाग पर सवाल उठाये. साथ ही कोर्ट ने नोटिस जारी कर सरकार और शिक्षा विभाग से जवाब मांगा है.
अतिथि शिक्षकों की भर्ती करने में जुटी है सरकार
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ में याची पूजा पालीवाल की तरफ से इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी. इसमें मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अतिथि शिक्षकों की बढ़ती संख्या और रेगुलर शिक्षकों की भर्ती न करने का मुद्दा उठाया गया है. याचिका के जरिये कोर्ट को बताया गया कि नियमित शिक्षकों के खाली पदों को भरने की जगह सरकार शिक्षा व्यवस्था से खिलवाड़ करते हुए अतिथि शिक्षकों की भर्ती करने में जुटी है. इसका खामियाजा शासकीय विद्यालयों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है और इसके चलते शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है.
शिक्षकों की भरती नहीं होने से बुरी तरह से प्रभावित हो रही है शिक्षा व्यवस्था
याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए एडवोकेट प्रतीप विसोरिया ने कोर्ट को बताया कि मध्य प्रदेश में 1 लाख 70 हजार अतिथि शिक्षक सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, जबकि लम्बे समय से सरकार ने इन स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पद नहीं भरे हैं, इससे शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस मामले पर सरकार की व्यवस्था पर सवाल उठाए और मध्य प्रदेश शासन और आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.