बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले पर आखिर चुप क्यों है अमेरिका, कहीं ये वजह तो नहीं?

नई दिल्ली: शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद भी वहां हिंसा थम नहीं रही है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। बांग्लादेश में तख्तापलट के साथ ही अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील हो उठा है। भारत के प्रधानमंत्री ने इस मसले को वहां की युनूस सरकार के समक्ष उठाया है। हालांकि बांग्लादेश के मुद्दे पर कुछ देशों खासकर अमेरिका की चुप्पी भी बड़े सवाल खड़े करती है। अमेरिका बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर चुप्पी साधे हुए है, यह चिंता का विषय है। मोदी-बाइडेन बातचीत के बाद जारी बयान में बांग्लादेश का जिक्र तक नहीं था, यह इस चुप्पी का सबसे बड़ा उदाहरण है।

अमेरिका का स्टैंड किस ओर कर रहा इशारा

सवाल उठता है कि अमेरिका, जो खुद को दुनिया भर में मानवाधिकारों और लोकतंत्र का रक्षक बताता है, वह बांग्लादेश की स्थिति पर चुप क्यों है। कई रक्षा एक्सपर्ट का मानना है कि भारत और अमेरिका, जो रणनीतिक सहयोगी हैं, बांग्लादेश के मुद्दे पर एकमत नहीं हैं। 1971 में अमेरिका ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने का विरोध किया था। इतना ही नहीं वहां उसने उन राजनीतिक दलों का साथ दिया जो पाकिस्तान समर्थक थे। अमेरिका ने हमेशा से बांग्लादेश में खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) का समर्थन किया है। खालिदा जिया के शासनकाल में भारत विरोधी ताकतों को बांग्लादेश में सुरक्षित पनाह मिली। अमेरिका ने हमेशा से ही शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार को कमजोर करने की कोशिश की है। पूर्व के चुनावों में ऐसा देखने को भी मिला है।

पीएम मोदी और बाइडेन के बीच हुई बातचीत

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 26 अगस्त को फोन पर बात हुई। यह बातचीत पीएम मोदी के यूक्रेन से लौटने के बाद हुई। बातचीत में यूक्रेन संकट और बांग्लादेश की स्थिति पर चर्चा हुई। भारत ने बताया कि दोनों नेताओं ने बांग्लादेश पर चिंता जताई। विशेषकर वहां अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं की सुरक्षा पर चिंता जताई। लेकिन अमेरिका ने इस बारे में कुछ नहीं बताया। अमेरिका ने सिर्फ यूक्रेन युद्ध पर ध्यान केंद्रित किया।

क्या अमेरिका ने किया इस फैसले का स्वागत?

विदेश मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने इंडिया टुडे से बातचीत में अमेरिका के रुख पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि अमेरिका बांग्लादेश में हसीना के बाद हो रही हिंसा पर चुप है। ब्रह्मा चेलानी के अनुसार बाइडेन और मोदी ने बांग्लादेश पर चर्चा की और चिंता जताई, जैसा कि भारत ने बताया। लेकिन अमेरिका ने इस बारे में कुछ नहीं बताया, जो सोचने वाली बात है। अमेरिका बांग्लादेश में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चुप है। उनका मानना है कि अमेरिका ने बांग्लादेश में हालिया सत्ता परिवर्तन का स्वागत किया है। वे बांग्लादेश में हो रहे अत्याचारों पर चुप हैं। इन अत्याचारों में अल्पसंख्यकों पर हमले, मनमानी गिरफ्तारियां, जबरन इस्तीफे और राजनीतिक बंदियों पर शारीरिक हमले शामिल हैं।

चीन के बढ़ते प्रभाव को नहीं नकार सकते

कई दूसरे जानकारों का भी मानना है कि अमेरिका बांग्लादेश के जन्म को रोकना चाहता था। लेकिन आज भी वह बांग्लादेश के मामले में भारत के साथ एकमत नहीं है। उसने हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन का स्वागत किया है। कुछ एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि यह देश अक्सर उन मुद्दों को उठाते हैं जो उनके लिए महत्वपूर्ण होते हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों और लोकतंत्र को लेकर अमेरिका का दोहरा रवैया क्यों है। क्या यह चीन के बढ़ते प्रभाव का नतीजा है। यह देखना होगा कि आने वाले समय में अमेरिका बांग्लादेश के मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है।

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