आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद सरकार गांव-गांव तक पहुंची है, कम्यूनिकेशन बढ़ा है, जिसकी वजह से सेना हर जगह पहुंच रही है. लोगों को रोजगार मिल रहा है. स्कूलों में छात्र लौटे हैं. मस्जिदों से देश विरोधी नारे नहीं लग रहे हैं.
9 जून 2024: जम्मू के रियासी में तीर्थयात्रियों की एक बस पर हमला, नौ लोगों की मौत 41 घायल. हमले की वजह से बस खाई में गिर गई.
8 जुलाई 2024 : कठुआ में सेना की गाड़ी पर हमला 5 जवान शहीद
16 जुलाई 2024: डोडा में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में सेना के एक अधिकारी सहित चार जवान शहीद.
ये कुछ घटनाएं हैं, जो जम्मू-कश्मीर में हालिया दिनों में आतंकवादियों की सक्रियता की निशानी हैं. जम्मू -कश्मीर भारत का ऐसा प्रांत है, जो हमेशा चर्चा में रहा. आजादी के बाद 26 अक्टूबर 1947 में महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के दस्तावेज पर साइन किया था. 6 फरवरी 1954 को जम्मू -कश्मीर की संविधान सभा ने राज्य के भारत में विलय को मंजूरी दी. साथ ही यहां आर्टिकल 370 लागू हुआ, जो कश्मीर को विशेष दर्जा देता था.
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे ने यहां अलगावादियों को पनपने दिया
जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जे ने यहां अलगावादी ताकतों को सिर उठाने का मौका दिया और आजाद कश्मीर की मांग ये ताकतें करनी लगी थीं, जिसे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने खूब बढ़ावा दिया और इस्लाम के नाम पर कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश भी की.
1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान ने शुरू की कुटिल साजिश
1971 के युद्ध ने पाकिस्तान की कमर तोड़ दी थी, इसलिए उसने भारत के खिलाफ साजिश की शुरुआत की और अलगावादियों को शह देना शुरू कर दिया. 1990 के दशक में आतंकवादी घाटी में अत्यधिक सक्रिय हो गए और भारत सरकार के सामने चुनौती बनकर खड़े हो गए. इंटरनेशनल जिहाद के नाम पर भी जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया गया.
इस्लाम के नाम पर गैर मुसलमानों को घाटी से खदेड़ा गया
अगवादियों ने कश्मीर से गैर मुसलमानों को खदेड़ा जिसकी वजह से लगभग तीन लाख मुसलमानों ने कश्मीर छोड़ दिया. इसके पहले कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) लागू कर दिया. इसके लागू होने से सेना को विशेष शक्तियां प्राप्त हो गईं. जिसके तहत वे संबंधित क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए कई निर्णय ले सकते हैं, जिसमें सर्च करना और गोली मारना भी शामिल था.लेकिन अफस्पा के लागू होने बाद कश्मीरी पंडितों पर हमले बढ़ गया और उन्हें अपना घर-बार छोड़कर रिफ्यूजी बनना पड़ा.
पाकिस्तान ने कई बार संयुक्त राष्ट्र में भी उठाया कश्मीर का मुद्दा
पाकिस्तान की मंशा हमेशा यह रही कि वह जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग कर दे, जबकि भारत ने हमेशा ही इसे अपना अभिन्न अंग माना. यही वजह है कि जब भी पाकिस्तान ने विदेशी मंचों पर जम्मू-कश्मीर का मसला उठाने की कोशिश की, भारत ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया.
आतंकवाद के रूप में पाकिस्तान ने लड़ा अप्रत्यक्ष युद्ध
भारत ने 1948, 1965 और 1971 के वार के बाद यह समझ लिया था कि वह प्रत्यक्ष युद्ध में भारत को नहीं हरा सकता , तो उसने अप्रत्यक्ष युद्ध लड़ा और सीमा पार से आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी और हथियार भी दिए, ताकि भारत अपने ही लोगों से युद्ध करता रहे.
जम्मू-कश्मीर से हटाया गया आर्टिकल 370
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को हमेशा चुनौती दी गई क्योंकि यहां अपना संविधान, झंडा की व्यवस्था भी थी. यहां भूमि कानून भी अलग था जिसके तहत कोई भारतवादी यहां जमीन नहीं खरीद सकता था. नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटा दिया गया और जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर उसे तीन हिस्सों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. आर्टिकल 370 को हटाने का मुख्य उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों के समान हैसियत देना और यहां से आतंकवाद मिटाना था. आर्टिकल 370 हटने के पांच साल बाद घाटी में हालात काफी बदले हैं, लेकिन आतंकवाद पूरी तरह समाप्त हो गया, यह कहना भी सही नहीं है, क्योंकि आतंकवादी घटनाएं होती रहती हैं.
आतंकी नहीं चाहते जम्मू-कश्मीर में शांति रहे
जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति के बारे में बताते हुए जम्मू-कश्मीर मामले के विशेषज्ञ अवधेश कुमार बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की स्थिति है आर्टिकल 370 हटने के बाद बिलकुल अलग है. आतंकवाद खत्म नहीं हुआ है, तो आतंकी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हमले कर रहे हैं. वे यह नहीं चाहते हैं कि प्रदेश में शांति हो और जम्मू-कश्मीर शांति के साथ भारत का अंग रहे.
लोकसभा चुनाव के समय से आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं, जो यह साफ बताती हैं कि आतंकवादियों की मंशा क्या है. वे चुनाव को बाधित करना चाहते हैं. वे यह नहीं चाहते कि जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण मतदान हो. आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद सरकार गांव-गांव तक पहुंची है, कम्यूनिकेशन बढ़ा है, जिसकी वजह से सेना हर जगह पहुंच रही है और सरकार भी पहुंच रही है. लोगों को रोजगार मिल रहा है. स्कूलों में छात्र लौटे हैं. मस्जिदों से देश विरोधी नारे नहीं लग रहे और ना ही हुर्रियत देश विरोधी नारों और गतिविधियों के साथ सड़क पर उतर रहा है. सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कस दी है. जो पुलिस उनकी सुरक्षा में थी वे आज उनकी निगरानी कर रही है.
कश्मीरी पंडितों की घर वापसी से बौखलाए हैं आतंकी
एक और बड़ी बात है, जो आतंकवादियों को बहुुत अखर रही हैं. आर्टिकल 370 के हटाए जाने के बाद सरकार ने कश्मीरी पंडितों को उनके घरों में फिर से बसाया है और उन्हें नौकरी दी है, अभी इस दिशा में काम कम हुआ है, लेकिन सरकार प्रयासरत है, इस बात से आतंकी नाराज हैं और इस प्रक्रिया को रोकना चाहते हैं, इस वजह से भी वे जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. वे लोगों को डरा रहे हैं.
यहां सबसे अहम बात यह है कि आज जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों को आम आदमी का साथ नहीं मिल रहा है, पहले खासकर कश्मीर में आम जनता उनके पक्ष में खड़ी हो जाती थी. मस्जिदों से घोषणा होती थी, देश विरोधी नारेे लगते थे, लोग सड़क पर उतर आते थे, लेकिन आज जनता सरकार के साथ खड़ी है ना कि आतंकवादियों के साथ और यह बहुत बड़ी बात है.