WTO में भारत से क्यों भिड़ गया थाईलैंड? ‘चावल’ को लेकर लगाए ये आरोप

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का मंत्री स्तर का 13वां सम्मेलन संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में हुआ. इस बैठक में भी इस बार भी वही हुआ, जो हर बार होता है. यानी, दूसरे देशों ने भारत की ओर से दी जा रही सब्सिडी पर सवाल खड़े किए. लेकिन इस बार तनातनी थोड़ी ज्यादा बढ़ गई.

बताया जा रहा है कि इस बैठक में थाईलैंड ने भारत पर गंभीर आरोप लगा दिए. दरअसल, कृषि पर चर्चा के दौरान थाईलैंड ने आरोप लगाया कि भारत पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के लिए सब्सिडी पर अनाज खरीदता है और उसे एक्सपोर्ट कर देता है. ये विश्व व्यापार नियमों के खिलाफ है.

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इसके बाद भारत ने इस बयान के विरोध में उन बैठकों का बहिष्कार कर दिया, जिनमें थाईलैंड मौजूद था.

डब्ल्यूटीओ की कॉन्फ्रेंस में भारत और थाईलैंड के बीच राजनयिक संकट खड़ा होता भी नजर आ रहा है. हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब भारत पर इस तरह के इल्जाम लगे हों. इससे पहले भी थाईलैंड ही नहीं बल्कि अमेरिका जैसे मुल्क भारत पर इस तरह के आरोप लगाते रहे हैं.

इस बार थाईलैंड ने क्या आरोप लगाए?

डब्ल्यूटीओ में थाईलैंड की राजदूत पिंच्नोक वोंकारपोन ने भारत पर आरोप लगाए. उन्होंने आरोप लगाया भारत सब्सिडी वाले चावल का इस्तेमाल कर ग्लोबल एक्सपोर्ट मार्केट में हावी होता जा रहा है.

थाईलैंड के इन आरोपों को अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने भी समर्थन भी दिया. इससे भारत और नाराज हो गया.

इस पर भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई. डब्ल्यूटीओ की इस कॉन्फ्रेंस में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में भारतीय टीम पहुंची है. बताया जा रहा है कि पीयूष गोयल ने अमेरिका की कैथरीन ताई और यूरोपियन यूनियन के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट वैल्डिस डोम्ब्रोवस्कीस के सामने विरोध दर्ज कराया. भारत ने थाईलैंड की राजदूत की भाषा और बर्ताव पर सवाल उठाया.

क्या सच में ऐसा है?

टाइम्स ऑफ इंडिया को भारतीय अधिकारी ने बताया कि थाईलैंड की राजदूत की ओर से दिए गए तथ्य ‘गलत’ हैं. 

उन्होंने बताया कि भारत में चावल की जितनी पैदावार होती है, उसका 40 फीसदी ही फूड सिक्योरिटी के लिए सब्सिडी पर दिया जाता है. बाकी का चावल, जिन्हें सरकारी एजेंसियां नहीं खरीदती हैं, उसे ही एक्सपोर्ट किया जाता है.

हाल के समय में चावल के एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है. आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 2022 में 22.3 मिलियन टन चावल एक्सपोर्ट खरीदा था. 2023 में 16.5 मिलियन टन चावल का एक्सपोर्ट किया था. 2023 में इसलिए कमी आई, क्योंकि भारत ने एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया था.

फिर क्यों लगते हैं भारत पर आरोप?

डब्ल्यूटीओ ने सब्सिडी को लेकर एक सीमा तय कर रखी है. क्योंकि डब्ल्यूटीओ मानता है कि किसानों या स्थानीय उत्पादकों को सब्सिडी देना गलत है. इससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर असर पड़ता है.

डब्ल्यूटीओ ने सब्सिडी को तीन हिस्सों में बांटा है. इसके तहत, कोई भी देश अपने यहां के कुल उत्पादन का 10% ही सब्सिडी के रूप में दे सकता है. विकासशील देशों के लिए ये सीमा 10% और विकसित के लिए 5% है.

अब दिक्कत ये है कि सब्सिडी की लिमिट 10% है, लेकिन भारत इससे कहीं ज्यादा दे रहा है. इसे ऐसे समझिए कि 2020-21 में भारत में चावल की पैदावार 45.56 अरब डॉलर की रही थी, जबकि सरकार ने 6.9 अरब डॉलर की सब्सिडी दे दी थी. इस हिसाब से कुल उत्पादन पर भारत ने 15.14% की सब्सिडी दे दी थी. ज्यादा सब्सिडी को लेकर भारत को अक्सर विरोध का सामना करना पड़ता है.

अमेरिका और यूरोपीय देश भारत पर ज्यादा सब्सिडी देने का इल्जाम लगाते रहे हैं. उनका दावा है कि ज्यादा सब्सिडी देने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर असर पड़ता है. 

जनवरी 2022 में अमेरिका के 28 सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडेन को चिट्ठी लिखकर भारत के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में मुकदमा चलाने की मांग भी की थी. 

चिट्ठी में आरोप लगाया था कि भारत तय नियम का उल्लंघन कर 10% से ज्यादा सब्सिडी दे रहा है. इस वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत का अनाज कम कीमत में उपलब्ध है. और अमेरिका के किसानों को नुकसान हो रहा है.

 

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