पटना। पांच साल पहले बिहार से लोकसभा चुनाव जीत कर दिल्ली गए अधिसंख्य सांसद दुविधा में हैं। पहली दुविधा यह कि वोटरों का रुख क्या होगा? लेकिन उससे भी बड़ी दुविधा-टिकट का क्या होगा? इन दुविधाओं से मुक्ति पाने के लिए वे नेतृत्व के चक्कर लगा रहे हैं। जनता के बीच जा रहे हैं। कहीं से कोई स्पष्ट निदान नहीं मिल रहा है।
बता दें कि राज्य में लोकसभा की 40 सीटें हैं। 2019 के लोस चुनाव में राजग की एकतरफा जीत हुई थी। 39 राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन)के खाते में गईं। महागठबंधन के दलों में सिर्फ कांग्रेस को एक किशनगंज सीट पर सफलता मिली। मो. जावेद कांग्रेस के सांसद हैं। इनकी उम्मीदवारी निर्विवाद मानी जा रही है।
पारस-चिराग को लेकर कन्फ्यूजन
लोकसभा चुनाव के समय एक रही लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अब दो हिस्से में बंट चुकी है। लोकसभा के रिकॉर्ड के अनुसार चिराग पासवान लोजपा (रा) के इकलौते सांसद हैं। उनके चाचा और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की पार्टी रालोजपा के पांच सांसद हैं। यह तय होना बाकी है कि राजग में मुखिया की हैसियत रखने वाल भाजपा किस गुट को असली मानकर सीटों का बंटवारा करती है। सो, दोनों गुटों के सांसदों के लिए यह तय नहीं है कि वे किस सीट से चुनाव लड़ेंगे। गारंटी सिर्फ दो-चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस की है। इनके बीच भी संघर्ष है।
पारस और चिराग हाजीपुर के लिए अड़े हैं। चिराग जमुई के सांसद हैं। हाजीपुर अभी पारस के कब्जे में है। दोनों गुटों के बाकी चार सांसदों-वीणा देवी, चंदन सिंह, प्रिंस राज और महबूब अली कैसर भी दुविधा में हैं। अगर चिराग की चली तो वे प्रिंस और चंदन सिंह को बेटिकट करने से परहेज नहीं करेंगे। सीतामढ़ी से पिछली बार जदयू टिकट पर जीते सुनील कुमार पिंटू बुरे फंसे हैं। वे भाजपा के हैं। 2019 में भाजपा ने जदयू को सीतामढ़ी क्षेत्र के साथ उम्मीदवार भी दे दिया था। अगस्त 2022 में जदयू का भाजपा से अलगाव हुआ तो पिंटू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुखर विरोधी हो गए। उस अवधि में जदयू ने विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर को सीतामढ़ी से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। वे क्षेत्र में सक्रिय हैं।
बीजेपी सांसदों में उम्र को लेकर भी बेचैनी
भाजपा के सांसदों की दुविधा उम्र और क्षेत्र में उनकी सक्रियता या उपलब्धियों को लेकर है। चर्चा है कि 72 की उम्र पार कर चुके सांसद अब उम्मीदवार नहीं होंगे। अगर यह फॉर्मूला लागू हुआ तो भाजपा के तीन सांसद रमा देवी (शिवहर), राधा मोहन सिंह (पूर्वी चंपारण) एवं गिरिराज सिंह (बेगूसराय) टिकट से वंचित हो जाएंगे। मगर, यह चर्चा इन सांसदों को दिलासा देती है कि अच्छी उपलब्धियां उन्हें उम्र की सीमा से राहत देंगी।
उम्र के अलावा भाजपा के आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर भी कुछ सांसदों को बेटिकट किया जा सकता है। भाजपा के साथ संकट यह है कि अगर सभी वर्तमान सांसदों को टिकट दे दिया जाए तो नए लोगों को अवसर नहीं मिलेगा। एक फॉर्मूला यह भी कि लगातार तीन बार सांसद रहे लोग बेटिकट होंगे। ऐसी सूचनाएं नए लोगों में उम्मीद जगाती हैं तो पुराने सांसदों को निराश भी करती हैं।
जदयू का क्या होगा?
पिछले चुनाव में जदयू के 17 में से 16 उम्मीदवार सांसद चुन लिए गए थे। जदयू ने बेटिकट करने का कोई फॉर्मूला नहीं बनाया है। उम्र की सीमा भी तय नहीं है। हां, उपलब्धियों के आधार पर कुछ सांसदों की छुट्टी हो सकती है। जदयू के टिकट का निर्णय मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ही करेंगे। उन्होंने बहुत पहले यह घोषणा की थी कि अब टिकट का वितरण किसी की राय पर नहीं करेंगे। इसका मतलब यह है कि जदयू के टिकट का निर्धारण जीत की संभावना और नेतृत्व के प्रति निष्ठा के आधार पर होगा। वैसे भी राजग के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार की उपलब्धियों के आधार पर चुनाव जीते थे।