पकने लगी ‘सियासी छलावा’ वाली खिचड़ी, महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव रिजल्ट के बाद बिहार में बड़ा खेला!

पटना: बिहार के सियासी गलियारे में इन दिनों तीन बातों की खूब चर्चा हो रही है। इन बातों के आधार पर राजनीतिक जानकार आकलन भी करने लगे हैं। आकलन का लब्बोलुआब यही निकल रहा है कि आने वाले दिनों में कोई बड़ा सियासी खेल बिहार में हो सकता है। इसे समझने के लिए पहले उन तीन बातों को जानना जरूरी है। हालांकि स्थितियों को देख कर महज अनुमान ही लगाया जा सकता है। इन बातों के आधार पर किसी नतीजे तक पहुंचना उचित नहीं होगा।

तीन बातें, जो चर्चा का विषय

बहरहाल, चर्चा की इन तीन बातों में पहला है मंत्री मदन सहनी का अपने विभागीय ACS से नाराज होकर पटना छोड़ना, दूसरा नीतीश कुमार की बार-बार नरेंद्र मोदी के पांव छूने की कोशिश और तीसरी बात नीतीश कुमार की बार-बार यह सफाई कि दो बार उनसे गलती हो गई, अब नहीं होगी होगी। वे एनडीए में ही रहेंगे। यह बात नीतीश पीएम के सामने लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक कई बार दोहरा चुके हैं। कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की मानें तो नीतीश ने 14 बार यह बात दोहराई है।

मंत्री मदन सहनी की परेशानी

नीतीश कुमार की सरकार में समाज कल्याण विभाग के मंत्री मदन सहनी ने कहा है कि विभागीय अपर मुख्य सचिव (ACS) उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। लंबे समय से विभाग की कोई फाइल उनके पास नहीं आई है। वैसे में उनके पास कोई काम ही नहीं है। इसलिए वे पटना छोड़ कर अपने चुनाव क्षेत्र में वापस लौट रहे हैं। यह एक मंत्री की पीड़ा है। ठीक ऐसी ही पीड़ा से महागठबंधन सरकार में आरजेडी कोटे के मंत्री चंद्रशेखर को रूबरू होना पड़ा था। उनकी भी अपने विभागीय ACS केके पाठक से नहीं पट रही थी। नीतीश कुमार इस बार मदन सहनी के साथ खड़े होंगे या नहीं, वे जानें, लेकिन चंद्रशेखर के बजाय उन्होंने तत्कालीन ACS केके पाठक की ही सुनी थी।

केके पाठक वाला मामला

बिहार में अफसरशाही जनप्रतिनिधियों पर किस तरह हावी रही है, इसे समझने के लिए कुछ महीने पीछे लौटना पड़ेगा। केके पाठक के शिक्षा विभाग का ACS रहते स्कूलों की टाइमिंग को लेकर विवाद जब गहराया तो नीतीश कुमार को सामने आना पड़ा। उन्होंने सदन में घोषणा की कि स्कूलों का समय नहीं बदलेगा। पुराने समय के हिसाब से ही स्कूल खुलेंगे और बंद होंगे। उन्होंने इसके लिए सदन के सदस्यों और नाराज शिक्षकों को आश्वस्त किया। पर, समय वही रहा, जो केके पाठक ने निर्धारित किया था।

आश्वस्ति कहीं छलावा तो नहीं!

खैर, तीनों बातों की कड़ियां जोड़ कर लोग इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि राजनीति में दोस्ती-दुश्मनी या कथनी-करनी में अब मेल नहीं रह गया है। वर्ष 2017 और 2022 में बिहार के लोग यह देख चुके हैं। आरजेडी के साथ जाने पर इसी अंदाज में नीतीश कुमार सफाई देते थे। कहते थे- मर जाएंगे, लेकिन भाजपा के साथ अब नहीं जाएंगे। जम्मू कश्मीर में 2014 का सियासी घटनाक्रम भी लोगों की जेहन में है। एक दूसरे के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने वाली पीडीपी और भाजपा ने बाद में कैसे साथ मिल कर सरकार बना ली थी।

पाला बदल सकते हैं नीतीश कुमार!

नीतीश कुमार की पीएम मोदी या भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने पिछली गलती न दोहराने और साथ रहने के आश्वासन पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा। यह बड़ा सवाल है और इसकी वजहें भी लोग तलाश रहे हैं। एक वजह यह मानी जा रही है कि नीतीश कुमार मुसलमानों को नाराज करने के पक्ष में नहीं हैं। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को भाजपा हर हाल में पास कराना चाहती है। लोकसभा में बिल पर जेडीयू कोटे के मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह जिस तरह भाजपा के साथ खड़े दिखे, उसकी मुस्लिम समाज में व्यापक प्रतिक्रिया हुई है।

मुस्लिम नेताओं को उम्मीद

हालांकि मुस्लिम संगठनों के नेताओं को अब भी उम्मीद है कि नीतीश कुमार इसके खिलाफ जरूर खड़े होंगे। मुस्लिम संगठनों को अब भी यकीन है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार को समर्थन दे रहे टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू नेता नीतीश कुमार उनका साथ देंगे। टीडीपी के एक सीनियर लीडर ने खुल कर वक्फ बिल का विरोध भी किया है। बिहार के सियासी गलियारे में यह चर्चा भी खूब हो रही है कि अगर नीतीश कुमार ने वक्फ संशोधन बिल पर सख्त रुख अपनाते हैं तो जेडीयू विभाजित हो जाएगा। तर्क दिया जा रहा है कि नीतीश ने भले चुप्पी साध ली है, लेकिन उनके ही सांसद ललन सिंह भाजपा की भाषा बोल रहे हैं।

ललन सिंह की भूमिका

नीतीश कुमार और भाजपा के बीच कड़ी बनते रहे जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। संजय झा का बैकग्राउंड भी आरएसएस स्वयंसेवक का रहा है। जाहिर है कि ऐसा हुआ तो जेडीयू में टूट से इनकार नहीं किया जा सकता। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की नीतीश को इंडिया ब्लॉक में लौट आने की पेशकश की चर्चा लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद हुई थी।

केसी त्यागी वाला बयान

जेडीयू में सलाहकार केसी त्यागी ने भी कहा था कि इंडिया ब्लॉक ने नीतीश कुमार को पीएम बनाने का ऑफर दिया था। इसलिए नीतीश भी अपनी पार्टी और वोट समीकरण को बचाए रखने का प्रयास करेंगे। नीतीश कुमार अगर ऐसा फैसला लेंगे भी तो वे अनुकूल अवसर की तलाश करेंगे। महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे अगर एनडीए के प्रतिकूल आए तो यह नीतीश के लिए ‘इंडिया’ में वापसी का एक अनुकूल अवसर हो सकता है।

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