पटना: बिहार की राजनीति में दरवाजा बंद का बड़ी भ्रामक तस्वीर उभर कर आने का इतिहास रहा है। दरवाजे बंद की शब्दावली ने धुर विरोधी के दरवाजे तक खोल दिए। इस बार फिर दरवाजा बंद का उपयोग तेजस्वी यादव ने क्या किया राजनीति में एक बार फिर उलट फेर की संभावनाओं को बल दे गया। सूचना आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की मुलाकात के बाद उठे बवंडर को सीएम नीतीश कुमार ने खुद ही खारिज किया। लेकिन एक बार तेजस्वी यादव ने दरवाजा बंद की बात कह कर फिर इस बात को हवा दे दी है।
क्या कहा तेजस्वी यादव ने?
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने यह कह कर राजनीतिक जगत में खलबली मचा दी कि नीतीश कुमार का तीन बार कल्याण कर दिया अब उनके लिए सभी दरवाजे बंद हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें महागठबंधन में वापस आने की तड़प उठती है तो गिड़गिड़ाकर हमारे पैर पकड़ लेते हैं कि हमको ले लीजिए, लेकिन अब कोई मतलब नहीं है, उन लोगों को वापस लेने का। फल देने वाले वो तो हैं नहीं, फल देने वाली जनता होती है। उनसे और क्या अपेक्षा कर सकते हैं। ठीक है, दो-तीन बार हम लोगों ने कल्याण कर दिया है। बचा दिया है उन लोगों को, अब कोई मतलब नहीं है उन लोगों को वापस लेने का।
अमित शाह ने भी किया था नीतीश के लिए दरवाजा बंद
2024 लोकसभा चुनाव के कुछ माह पहले महागठबंधन का जब नीतीश कुमार हाथ धाम थामे हुए थे तो भाजपा के कद्दावर नेता लगातार नीतीश कुमार पर प्रहार कर रहे थे। तब पलटू राम जैसे संबोधन इस्तेमाल किए जाते थे। लेकिन जैसे जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आते गया भाजपा के प्रहार में काफी तीखापन आ गई थी। तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नवादा में एक रैली में नीतीश सरकार पर हमला बोलते कहा कि नीतीश कुमार के दोबारा एनडीए में शामिल होने का कोई प्रश्न ही नहीं है। नीतीश सरकार बुरी नीयत और बुरी नीति की वाली सरकार है। जदयू के आधे सांसद भाजपा के दरवाजे खटखटा रहे हैं। पर स्पष्ट तौर पर कह देना चाहता हूं कि अगर किसी को संशय हो कि चुनाव के परिणामों के बाद नीतीश बाबू को भाजपा फिर से एनडीए में लेगी, तो मैं बिहार की जनता को स्पष्ट कह देना चाहता हूं और ललन सिंह को भी स्पष्ट कह देना चाहता हूं कि आपके लिए एनडीए के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। अब तो बिहार की जनता भी चाहती है कि नीतीश जी को दोबारा एनडीए में न लिया जाए। जातिवाद का जहर घोलने वाले नीतीश कुमार और जंगलराज के प्रणेता लालू यादव के साथ भाजपा कभी कोई राजनीतिक सफर तय नहीं करेगी।
लेकिन दरवाजा क्या खिड़की, झारोखा सब खुल गया
2024 लोकसभा का जब काउंटडाउन शुरू हुआ और चुनावी बाजी बिछाने का अंतिम समय आया तो जदयू भाजपा के बीच के सभी दरवाजे खुल गए। पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सारे गीले शिकवे दूर होते दिखे। बात यहीं तक नहीं ठहरी। भाजपा की तुलना में कम विधायक की संख्या रखने के बावजूद भाजपा ने 16 लोकसभा सीट नीतीश कुमार के नाम की। वहीं जब नीतीश कुमार जब महागठबंधन में थे तो कहा जाता है कि नीतीश कुमार की नाराजगी की वजह यह थी कि राजद सुप्रीमो लालू यादव ने विधायकों की संख्या बल पर टिकट बांटने का फॉर्मूला तय किया। इस लिहाजन नीतीश के हिस्से में 8 से 10 सीट मिलना तय हुआ। नतीजतन नीतीश कुमार एनडीए गठबंधन का रुख किया और 16 लोकसभा सीटों पर खम ठोका।
उपेंद्र कुशवाहा ने भी कह दी बड़ी बात
राज्य सभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार के उस बयान को बहुत हल्के में नहीं लिया, जिसमें उन्होंने कहा कि तीसरी बार महागठबंधन में जाने की गलती नहीं करेंगे। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि सच्चाई तो यही है कि नीतीश कुमार एनडीए में हैं। आरजेडी के साथ जाकर उन्होंने जो महसूस किया अब दोबारा-तिबारा तो सवाल ही पैदा नहीं होता कि उधर जाने की बात नीतीश कुमार करें। लेकिन उनसे व्यक्तिगत मेरा आग्रह है कि इसको बोलने की क्या जरूरत है? वो हैं ही एनडीए में, रहेंगे। हमारा रिश्ता 1995 से है।
नीतीश के पाला बदलने की कितनी संभावना?
लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का संख्या बल पार्टी की ताकत होती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी छवि के अनुकूल निर्णय करते रहे हैं। आगामी विधान सभा चुनाव साथ साथ लड़ने की अभी पृष्टभूमि तो तैयार होनी शेष है। एनडीए के साथ बने रहने के लिए यह जरूरी है कि सीटों के बंटवारे में जदयू का अपर हेड हो। जदयू 2020 में तीसरे नंबर की पार्टी के दंश से छुटकारा के लिए 120 से 130 सीट तक चाहिए। अगर एनडीए गठबंधन में सब कुछ नीतीश कुमार के अनुकूल हुआ तो महागठबंधन के लिए नीतीश के दरवाजे बंद रहेंगे। लेकिन भाजपा कुछ भी ऊंच नीच करना चाहेगी तो नीतीश कुमार को राह जुदा करने से कोई रोक नहीं सकता।
गठबंधन की राजनीति के माहिर खिलाड़ी संभव है निराशा की स्थिति में महागठबंधन की ओर चले जाएं तो कोई अतिश्योक्ति भी नहीं है। जाहिर है बिहार की राजनीति में जंगल राज और संप्रदायिकता के नाम पर नीतीश कुमार राजनीतिक साथी बदलते रहे हैं।