नई दिल्ली: हमारे देश को साल 1947 में आजादी जरूर मिली लेकिन साथ ही मिला विभाजन के रूप में एक ऐसा दंश, एक ऐसा घाव जो जीवनभर दर्द देता रहेगा। एक अलग देश पाकिस्तान ने हमारे देश भारत को दो हिस्सों में बांट दिया। मोहम्मद अली जिन्ना की जिद ने लाखों लोगों की जान ले ली और करोड़ों लोग बेघर हो गए। दोनों देशों के बीच एक लकीर खींच दी गई। न जाने कितनी चीजों का बंटवारा भी हुआ। इसी में एक थी औपनिवेशिक काल की ओपन एयर वाली बग्गी जो भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी एक के हिस्से में आनी थी। आप कहेंगे इस बग्गी की अचानक चर्चा क्यों हो रही है? असल में आज यानी शुक्रवार को गणतंत्र दिवस पर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और मुख्य अतिथि के रूप में पधारे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों जिस बग्गी में सवार होकर आए थे, वह यही बग्गी थी। इस बग्गी की 40 साल बाद दोबारा वापसी हुई है। इसने आज पारंपरिक बख्तरबंद लिमोसिन का स्थान लिया। तो आइए जानते हैं इस बग्गी की रोचक कहानी।
बग्गी का इतिहास
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों गणतंत्र दिवस पर उस बग्गी में सवार थे जो कभी ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के वायसराय की थी। इसे 6 घोड़े खींचते थे, सोने की रिम, लाल मखमली इंटीरियर और अशोक चक्र से सुसज्जित यह काली बग्गी वायसराय की शान हुआ करती थी। इसका इस्तेमाल औपचारिक कार्यक्रमों और राष्ट्रपति भवन (तब वायसराय के आवास) के आसपास घूमने के लिए किया जाता था। ब्रिटश शासन के खत्म होने के बाद, भारत और नवगठित पाकिस्तान दोनों इस शानदार बग्गी को अपनाने के इच्छुक थे। किस देश को यह बग्गी मिलेगी इसका फैसला करने के लिए दोनों देशों ने एक अनूठा तरीका निकाला।
क्रिकेट की तरह हुआ टॉस
यह काली रॉयल बग्गी किस सरकार की शान बनेगी इसके लिए टॉस के रूप में समाधान निकाला गया। भारत के कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तान के साहिबजादा याकूब खान ने सिक्का उछाल कर भाग्य को फैसला लेने दिया। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। टॉस ने बग्गी के भाग्य का फैसला कर दिया था। किस्मत भारत के साथ रही और यह बग्गी भारत के हिस्से में आ गई। कर्नल सिंह ने भारत के लिए बग्गी जीत ली। इसके बाद, बग्गी का इस्तेमाल राष्ट्रपति राष्ट्रपति भवन से संसद तक शपथ ग्रहण समारोह के लिए जाने के लिए करते थे। गणतंत्र दिवस समारोह के समापन पर विजय चौक पर होने वाली बीटिंग रिट्रीट समारोह में राष्ट्राध्यक्ष को ले जाने के लिए भी इस बग्गी का उपयोग किया जाता था।
खतरों को देखते हुए गायब हो गई बग्गी फिर लौटी
आजादी के कई साल बाद, राष्ट्रपति के लिए खुली बग्गी का इस्तेमाल कम हो गया। सुरक्षा खतरों की वजह से इसे ज्यादा न चलाने का फैसला लिया गया। इस पारंपरिक बग्गी की जगह बुलेटप्रूफ गाड़ियों ने ले ली। लेकिन 40 साल बाद आज गणतंत्र दिवस के मौके पर इसे दोबारा लाया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और चीफ गेस्ट फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों इस बग्गी में साथ सवार होकर पहुंचे थे। उन्हें कर्तव्यपथ पर रिसीव करने के लिए पीएम मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भारतीय सेना के तीनों अध्यक्ष मौजूद थे।