1981 में कानून लाकर AMU को दिया गया अल्पसंख्यक का दर्जा, क्या सुप्रीम कोर्ट बदलेगा इंदिरा गांधी का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (8 नवंबर, 2024) को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक स्वरूप को लेकर फैसला सुनाया और अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में कोर्टं फैसले को पलट दिया. इस फैसले में साल 1967 में कहा गया था कि क्योंकि एएमयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है इसलिए उसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने आज इस फैसले को ओवररूल कर दिया है और संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर तीन जजों की रेगुलर बेंच फैसला करेगी.

साल 1981 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार में एएमयू एक्ट में संशोधन करके यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था. अब तीन जजों की बेंच इसकी समीक्षा करेगी. इंदिरा गांधी सरकार ने संसद में अधिनियम के जरिए यह संशोधन किया था.

इंदिरा गांधी सरकार ने संसद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अमेंडमेंट एक्ट, 1981 पास किया. संशोधन में विश्वविद्यालय को ‘भारत के मुस्लिमों द्वारा स्थापित अपने पसंद के संस्थान’ के रूप में परिभाषित किया गया था, जिसकी उत्पत्ति मुहम्मदन एंगलो ओरिएंटल कॉलेज, अलीगढ़ के रूप में हुई है. बाद में इसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के रूप में शामिल किया गया.

साल 2005 में यूनिवर्सिटी ने मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षण नीति बनाई, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट ने अपने फैसले में 1981 के संशोधन को रद्द कर दिया. इस फैसले के खिलाफ कई रिव्यू पेटीशन फाइल की गईं और तत्कालीन यूपीए सरकार और एएमयू ने भी हाईकोर्ट के फैसले का विरोध किया. 2016 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार में केंद्र की याचिका वापस ले ली गई. इसके बाद 2019 में यह मामला सात जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया.

एएमयू की स्थापना 1920 के एएमयू अधिनियम के तहत की गई थी. यह अधिनियम मुहम्मदन एंग्लो- ओरिएंटल कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा देने के लिए लाया गया था. अधिनियम की धारा 13 ने गवर्नर जनरल को लॉर्ड रेक्टर नियुक्त किया. धारा 23 के अनुसार संस्था के शासी निकाय के रूप में एक अखिल मुस्लिम न्यायालय का गठन किया गया और अगले तीन दशकों तक एएमयू इसी सिद्धांत पर काम करता रहा.

आजादी के बाद जब साल 1951 में नया संविधान अपनाया गया तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 1951 में संशोधन किया गया. 1920 अधिनियम की धारा 8 में संशोधन करके अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को हटा दिया गया.  यह बदलाव नए संविधान के आर्टिकल 28 और 29 के अनुरूप था. इसके अलावा धारा 13 में संशोधन करके लॉर्ड रेक्टर को विजिटर कर दिया गया.  

साल 1965 में एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को झटका लगा और एएमयू एक्ट 1965 में 1920 एक्ट की धारा 23 के सब सेक्शन 2 और 3 को हटा दिया गया, जिसने शासी निकाय के रूप में एक अखिल मुस्लिम न्यायालय का गठन किया. सब सेक्शंस को हटाए जाने के बाद निकाय की शक्तियां कम हो गईं. 

साथ ही अनुच्छेद 28, 29, 34 और 38 में भी संशोधन करके एग्जीक्यूटिव काउंसिल की शक्तियां बढ़ा दी गईं. इसके अलावा सेक्शन 9 को भी हटा दिया गया और मुस्लिम छात्रों के लिए धार्मिक निर्देश प्राप्त करना गैर-जरूरी हो गया. इन संशोधनों को साल 1967 में अजीज बाशा केस में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में तर्क दिया कि यूनिवर्सिटी की स्थापना मुसलमानों ने की है और अनुच्छेद 30 के तहत उन्हें इसके प्रबंधन का अधिकार है. उन्होंने कहा कि 1951 और 1965 के संशोधन इन अधिकारों को छीनते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्कों से असहमति जताई और कहा कि यूनिवर्सिटी का निर्माण सेंट्रल एक्ट के तहत हुआ है और यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. 

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