ग्वालियर। शहर की सड़कों पर बिना कायदों के चलते ई-रिक्शाें को पटरी पर लाने के लिए जिला प्रशासन की पहल अब मैदान में उतरेगी। 30 सितंबर तक का समय ई-रिक्शा चालकों को दिया गया था कि वह अपने वाहनों की कलर कोडिंग करा लें, 30 सितंबर के बाद बचे ई-रिक्शा चालकों को खुद ही कलर कोडिंग कराना होगी।
सोमवार को यह समय सीमा पूरी हो रही है और रविवार तक की स्थिति में 4500 ई-रिक्शा की कलर कोडिंग का कार्य पूरा हो चुका है। अब यह संख्या शहरी क्षेत्र के लिए एक तरह से पर्याप्त है इसलिए प्रशासन व पुलिस अब कुछ ही दिनों में ई-रिक्शा संचालन की नई व्यवस्था को लागू कर देंगे। अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में इसे लागू किया जा सकता है।
ग्वालियर शहर की यातायात व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए शहर में जल्द ही दो शिफ्ट में ई-रिक्शा का संचालन शुरू होने जा रहा है। इस उद्देश्य से अभियान बतौर ई-रिक्शा की शिफ्ट के लिहाज से कलर कोडिंग की जा रही है। कलेक्टर रुचिका चौहान ने ई-रिक्शा की नई व्यवस्था को लेकर पहल की जिसके बाद समय,रूट व कलर कोडिंग का करने का निर्णय लिया गया।
यातायात व्यवस्था को सुचारू बनाने के उद्देश्य से जिला प्रशासन, पुलिस एवं नगर निगम ग्वालियर द्वारा शहर में चल रहे सभी ई-रिक्शा का पंजीयन कराया गया है। साथ ही सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में लिए गए शहर में दो शिफ्टों में ई-रिक्शा चलाने का निर्णय हुआ। ई-रिक्शा के संचालन के पीले और नीले रंग की पट्टिका ई-रिक्शा पर बनाई जा रही है। शहर में तीन स्थानों गोला का मंदिर, फूलबाग एवं आमखो पर यह काम किया जा रहा है।
दो शिफ्टों में चलेंगे ई-रिक्शा
जिला सड़क सुरक्षा समिति में लिए गए निर्णय के अनुसार शहर में दो शिफ्टों में दोपहर 3 बजे से रात्रि 3 बजे तक एवं रात्रि 3 बजे से दोपहर 3 बजे तक पंजीकृत ई-रिक्शा संचालित होंगे। ई-रिक्शा चालकों को रोजगार के समान अवसर मिल सकें, इसके लिये एक माह बाद शिफ्ट चेंज की जायेंगीं। बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि पंजीकृत ई-रिक्शा को चलाने की अनुमति ही शहर में रहेगी।
क्यों पड़ी जरूरत:संख्या लगातर बढ़ रही,बिगड़ रहा यातायात
शहर में ई-रिक्शा का आंकड़ा बहुत ज्यादा हो गया है, अधिकारियों के आंकड़ों में यह नौ हजार के लगभग है जिसमें शहर से बाहर के ई-रिक्शा भी शामिल हैं। शहर के हर तिराहे-चौराहे से लेकर मुख्य बाजाराें में कहीं भी ई-रिक्शा खड़े हो जाते हैं, मुख्य मार्गाें पर इनकी संख्या अधिक है और जो दूर के रूट हैं वहां यह नहीं चलते हैं। इसी कारण इन्हें व्यवस्थित किया जा रहा है