सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की उस टिप्पणी को फैसले से हटा दिया कि यदि धार्मिक आयोजनों, जहां धर्मांतरण होता है, को नहीं रोका गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएगी। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कैलाश नामक व्यक्ति को जमानत देते हुए यह आदेश पारित किया, जिसके खिलाफ उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 365 (किसी व्यक्ति को गुप्त रूप से और गलत तरीके से बंधक बनाने के इरादे से अपहरण करना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
शीर्ष अदालत ने आरोपी को यह कहते हुए राहत दी कि वह 21 मई, 2023 से हिरासत में है। पीठ ने कहा, ”हम स्पष्ट करते हैं कि उच्च न्यायालय द्वारा की गई सामान्य टिप्पणियों का वर्तमान मामले के तथ्यों पर कोई असर नहीं था और इसलिए, मामले के निस्तारण के लिए उनकी आवश्यकता नहीं थी। इसलिए, इन टिप्पणियों को उच्च न्यायालय या किसी अन्य अदालत में किसी अन्य मामले या कार्यवाही में उद्धृत नहीं किया जाएगा।”
इससे पहले दो जुलाई को, उच्च न्यायालय ने जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इन आरोपों पर गौर किया था कि आवेदक उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से लोगों को धर्मांतरण के लिए दिल्ली में एक धार्मिक समागम में ले जा रहा था और कहा था, ”अगर इस प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति दी गई, तो इस देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक हो जाएगी…।”
उच्च न्यायालय ने आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि इस तरह का धर्मांतरण संविधान के खिलाफ है, जो केवल अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार-प्रसार की अनुमति देता है।