नई दिल्ली : पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अलगाववादियों ने इस हफ्ते कई हमले किए हैं, जिसमें 70 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली है। ये हमले बलूच नेता नवाब अकबर खान बुगती की पुण्यतिथि पर हुए हैं, जिनकी हत्या 18 साल पहले तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के एक अभियान में हुई थी।
BLA का कहना है कि बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल पाकिस्तान सरकार की तरफ से किया जा रहा है, जबकि स्थानीय लोग गरीबी में जीने को मजबूर हैं। BLA का कहना है कि वे बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद कराना चाहते हैं।
इन हमलों में BLA ने पुलिस थानों को निशाना बनाया और प्रमुख राजमार्गों को अपने कब्जे में ले लिया। BLA ने पंजाबी और सिंधी प्रवासी मजदूरों को भी निशाना बनाया है, जिनके बारे में बलूच लोगों का मानना है कि वे बलूचिस्तान के संसाधनों का फायदा उठा रहे हैं।
नए आयाम?
भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया बताते हैं, ‘पंजाबी कामगारों को निशाना बनाना एक नया जातीय आयाम है। इससे पता चलता है कि बलूच कट्टरपंथी मुख्य रूप से पंजाबी सेना को उकसाना और चुनौती देना चाहते हैं।’
हालिया हमलों में मारे गए लोगों में से तकरीबन आधे पंजाबी कामगार थे। बलूच लोग पंजाबियों की आमद को लेकर नाराज हैं। उनका मानना है कि पंजाबी लोग बलूचिस्तान में आर्थिक अवसरों का फायदा उठा रहे हैं, जबकि बलूच लोगों को पीछे धकेला जा रहा है।
एक आम बलूच नागरिक का मानना है कि बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर उसका पहला हक है। वह खुद को संघीय सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों का शिकार मानता है। उसके लिए पंजाबी कामगार पाकिस्तान सरकार के दमन का प्रतीक हैं।
बिसारिया कहते हैं, ‘हालिया घटनाक्रम सुरक्षा में एक बड़ी चूक है और संभवतः अफगान/ पश्तून और बलूच विद्रोहों का एक साथ आना है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और BLA, अगर मिलीभगत नहीं कर रहे हैं, तो कम से कम समन्वय तो कर ही रहे हैं।’
पाकिस्तान ने बार-बार भारत पर अलगाववादियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने और ईरान पर उन्हें सुरक्षित पनाहगाह देने का आरोप लगाया है। भारत बेसिर-पैर की बातें बताकर आधिकारिक तौर पर इन आरोपों को खारिज करता आया है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान को आतंकवाद को अपने समर्थन पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। आईना देखना चाहिए।
TTP खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में पाकिस्तान पर हमला कर रहा है। पाकिस्तानी सेना पिछले कुछ वर्षों से बलूचिस्तान में बलूच अलगाववादियों और TTP के बीच बढ़ते गठजोड़ के बारे में चिंतित है। बलूचिस्तान में पश्तून आबादी भी काफी है।
TTP ने बलूच अलगवावादियों के किए गए हमलों का समर्थन किया है। TTP ने पाकिस्तानी सेना पर बलूचिस्तान में नरसंहार करने का आरोप लगाया है। TTP का कहना है कि BLA और TTP जैसे समूहों का एक ही दुश्मन है। BLA को अमेरिका और ब्रिटेन दोनों ने आतंकवादी समूह घोषित किया है।
चीन ऐंगल
चीन ने इन हमलों की निंदा करते हुए कहा है कि वह क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए पाकिस्तान के साथ आतंकवाद और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने के लिए तैयार है। पाकिस्तान की उम्मीदें संसाधन संपन्न बलूचिस्तान को एक आर्थिक और ऊर्जा केंद्र में बदलने की हैं। इसके लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पर 60 अरब डॉलर की लागत से कई परियोजनाएं शुरू की गई हैं।
हालांकि, CPEC परियोजनाओं को हिंसक विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है। BLA और अन्य विद्रोही समूहों ने CPEC से जुड़े प्रतिष्ठानों, चीनी इंजीनियरों और मजदूरों को निशाना बनाया है। इनका आरोप है कि चीन बलूच अलगाववादियों के खिलाफ पाकिस्तान को हथियार दे रहा है और इस्लामाबाद के साथ मिलकर प्रांत के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हालिया हमलों पर अपनी प्रतिक्रिया में अलगाववादियों पर CPEC को विफल करने के लिए काम करने का आरोप लगाया है। BLA प्रांत भर में कई हमलों के रूप में अपनी ताकत और क्षमता दिखाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में CPEC, जिसमें ग्वादर बंदरगाह भी शामिल है, हिंसा के खतरे की चपेट में रहेगा।
पाकिस्तान क्या कर सकता है?
पाकिस्तान के भूभाग पर बलूचिस्तान की हिस्सेदारी 40% से अधिक है, लेकिन जनसंख्या में उसकी हिस्सेदारी महज 6% है। बलूचिस्तान में राजनीतिक अशांति का एक लंबा इतिहास रहा है। आजादी के समय से ही एक अलग बलूच राज्य की मांग को लेकर विद्रोह चल रहा है। आर्थिक उत्पीड़न, पंजाबी विरोधी भावना, सेना द्वारा बलूच लोगों को लापता करना, फर्जी मुठभेड़ और बलूच राष्ट्रवाद के विचार को अस्वीकार करने ने विद्रोह को बढ़ावा दिया है।
पाकिस्तान को स्थानीय आबादी को अपने अधीन करने के बजाय, बलूच असंतोष को राजनीतिक रूप से दूर करने का रास्ता खोजना होगा। ये उसकी स्थिरता के लिए जरूरी है। इसी में उसका हित है। शुरुआत करने के लिए, उसे उनकी शिकायतों, विशेष रूप से संसाधनों के शोषण को देखना चाहिए जो एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।
स्थानीय लोगों के बीच यह धारणा कि उन्हें बलूचिस्तान के पर्याप्त खनिज संसाधनों की खोज के लाभों से वंचित किया जा रहा है, ने विद्रोह को बढ़ावा दिया है।
सेना भले ही फिलहाल पाकिस्तान के किसी भी संभावित विघटन को रोकने के लिए काफी मजबूत है, लेकिन उसे संघीय सरकार को बलूच राष्ट्रवादियों के साथ एक सार्थक बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि हिंसा को कम किया जा सके। बातचीत के जरिए ही दीर्घकालिक समाधान खोजने के तरीकों पर गौर किया जा सकेगा।
बलूच लोग, अपनी विशिष्ट पहचान के साथ, पारंपरिक रूप से धर्मनिरपेक्ष के रूप में देखे जाते हैं और यह सुनिश्चित करना पाकिस्तान के हित में है कि वे TTP जैसे समूहों के साथ काम न करें जो चरमपंथी मजहबी विचारधारा से प्रेरित हैं।
पाकिस्तान को बलूच यकजहती कमिटी जैसे सिविल राइट्स ग्रुप को शामिल करने का एक रास्ता भी खोजना होगा जो जबरन गुमशुदगी और फर्जी मुठभेड़ जैसे मुद्दों को शांतिपूर्वक उठाना चाहते हैं।
पाकिस्तान भारत पर BLA को फंडिंग करने का आरोप लगाता रहेगा। अतीत में, इसने अलगाववादियों पर कार्रवाई को ‘दुश्मन’ के साथ उनके कथित संबंधों के बारे में बात करके उचित ठहराया है।
भारत पर असर?
भारत निश्चित रूप से इस बात पर कड़ी नजर रखेगा कि पाकिस्तानी सेना बलूच अलगाववादियों के हमलों में तेजी पर कैसे प्रतिक्रिया करती है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और भारत उसे बाधित करने के किसी भी प्रयास को रोकेगा। जम्मू में हाल ही में आतंकवादी हमले हुए हैं, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को भारत के खिलाफ आतंकवाद या छद्म युद्ध का इस्तेमाल न करने की चेतावनी दी है।
भारत का मानना है कि पाकिस्तान को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि अफगान तालिबान के काबुल लौटने के बाद से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान दोनों में हमले क्यों बढ़े हैं? अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता की वापसी को पाकिस्तान अपने लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद समझ रहा था।