बलूचिस्‍तान बना युद्ध का मैदान, पाकिस्‍तानी सैनिकों की बिछीं लाशें, भारत और ईरान के लिए क्‍यों है राहत की बात?

इस्‍लामाबाद: पाकिस्‍तान के बलूचिस्‍तान प्रांत में बलूचों ने कई जगहों पर भीषण हमले किए हैं। इन हमलों में 50 ज्‍यादा लोग मारे गए हैं। मारे गए लोगों में करीब 15 सैनिक और बाकी पंजाबी मूल के लोग शामिल थे। इन हमलों के बाद पाकिस्‍तानी सेना ने बड़ा सैन्‍य अभियान चलाया है, वहीं पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ऐलान किया है कि आतंकवाद का ‘खात्‍मा’ किया जाएगा। इस ऐलान के बीच शहबाज शरीफ ने बलूचों को बातचीत का भी ऑफर दे डाला है। विश्‍लेषकों का कहना है कि बलूचों का पाकिस्‍तानी सेना के खिलाफ सैन्‍य अभियान भारत और ईरान के लिए राहत की बात है। वहीं चीन को इससे बड़ा झटका लगा है जो बलूचिस्‍तान में सीपीईसी परियोजना के नाम पर 65 अरब डॉलर खर्च कर रहा है।

पाकिस्‍तान और खाड़ी देशों पर नजर रखने वाले विश्‍लेषक एफजे एक्‍स पर लिखे अपने पोस्‍ट में कहते हैं कि भारत यह चाहेगा कि पाकिस्‍तान से चीन का निवेश निकल जाए। ईरान भी इसे पसंद करेगा कि पाकिस्‍तान में हो रहा चीन का निवेश बंद हो और उसके यहां पर यह चीनी पैसा आ जाए। चीन और ईरान में पिछले कुछ समय से आर्थिक रिश्‍ते बहुत मजबूत हुए हैं। एफजे ने कहा कि यह ईरान के हित में है कि बलूच उग्रवादियों को पाकिस्‍तान के बलूचिस्‍तान प्रांत में ही बिजी रखा जाए ताकि उसे अपने सिस्‍तान और बलूचिस्‍तान प्रांत में कुछ शांति मिल जाए।

ईरान का नाम भी नहीं ले सकता है पाकिस्‍तान

हालांकि ईरान को जैश अल अदल के हमलों से राहत नहीं मिलेगी जिसके बारे में माना जाता है कि उसे पाकिस्‍तान से सपोर्ट मिलता है। उन्‍होंने कहा कि यह ईरान और भारत दोनों के हित में है कि बलूच‍िस्‍तान कुछ समय के लिए अस्थिर बना रहे। पाकिस्‍तान के लिए समस्‍या यह है कि बलोच उग्रवादी ईरान में बैठे हैं। बलूचों को ईरानी सेना से पूरा समर्थन मिल रहा है। वहीं पाकिस्‍तान के लिए दिक्‍कत यह है कि वह बलूच उग्रवादियों के मामले में ईरान का नाम भी नहीं ले सकता है। इसी वजह से पाकिस्‍तान भारत की भूमिका को बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहा है जबकि बलूचिस्‍तान में अपनी गलतियों को छिपा रहा है।

एफजे ने कहा कि बहुत कम भारतीय और पाकिस्‍तानी लोग यह स्‍वीकार करना चाहते हैं कि बलूचिस्‍तान में उग्रवाद कश्‍मीर से जुड़ा हुआ है। जब एक जगह पर हिंसा बढ़ती है तो दूसरी जगह पर भी ऐसा होता है। जनरल बाजवा जब पाकिस्‍तानी सेना के प्रमुख थे तब भारत और पाकिस्‍तान के बीच समझ बनी थी। वह अब पीछे चली गई है। इस बीच चीन ने इस हिंसा की कड़ी निंदा की है और कहा है कि वह आतंकवाद के हर तरीके का कड़ा विरोध करता है। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह पाकिस्‍तान को आतंकवाद के खात्‍मे, सामाजिक एकता और स्थिरता को बनाए रखने और लोगों की सुरक्षा करने में पूरी मदद देगा।’

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