चंबल के सगे दो भाइयों की कहानी: दल बदलने के साथ ही बदल गए दिल, अब हैं एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं. जो कभी एक ही दल में रहकर विपक्षी दलों के दांत खट्टे किया करते थे, वही अब एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी भी हो गए हैं. एक ही दल के दो नेताओं के चुनावी मैदान में आमने-सामने आने के तो कई मामले आप देख चुके होंगे. लेकिन दो सगे भाई एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी हो गए हो, ऐसा मामला हम आपको आज बताने जा रहे हैं. 

यह कहानी चंबल के भिंड जिले के उन दो सगे भाइयों की है जिन्होंने साथ रहते हुए अपने राजनीतिक विरोधियों के कई बार दांत खट्टे किए और जीत का परचम चुनाव मैदान में लहरा दिया था. इन दोनों भाइयों के नाम चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी और चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी है. 

राकेश और मुकेश की जोड़ी भिंड विधानसभा में कांग्रेस को कई बार जीत दिला चुकी है. यही नहीं, बीजेपी में शामिल होकर भी इस जोड़ी ने कांग्रेस को पूरी तरह चुनावी मैदान में मात दे दी थी, लेकिन अब राकेश और मुकेश की यह जोड़ी राजनीतिक पटल पर टूट चुकी है और अब दोनों ही भाई एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी हो गए हैं. 

इस राजनीतिक विरोधाभास की नींव तो साल 2013 के चुनाव से पहले ही रख दी गई थी जब राकेश चौधरी ने चलती विधानसभा में कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अपनी ही पार्टी को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया था और एक झटके में कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन धाम लिया था. 

इस घटनाक्रम के पहले की स्थितियों के बारे में हम आपको बताना चाहते हैं. राकेश चौधरी कांग्रेस पार्टी द्वारा भिंड विधानसभा से अब तक 7 बार चुनाव मैदान में उतर जा चुके हैं. इस दौरान राकेश चौधरी भिंड विधानसभा से चार बार अपनी जीत दर्ज करा कर भोपाल की विधानसभा में पहुंच चुके हैं, लेकिन उनकी इस जीत के पीछे उनके छोटे भाई मुकेश चौधरी का बहुत बड़ा योगदान रहता था. 

मुकेश चौधरी न केवल युवाओं पर मजबूत पकड़ रखते हैं बल्कि जनता के बीच उनकी अच्छी पहुंच है. यही वजह है कि जब-जब राकेश चौधरी चुनाव मैदान में उतरे तो मुकेश चौधरी ने अपने बड़े भाई के लिए सभी राजनीतिक षडयंत्रों को असफल करते हुए काम किया और अपने बड़े भाई राकेश चौधरी को चार बार जीत भी दिलवाई. 

इसलिए अलग हो गई जोड़ी 
सिलसिला यूं ही चला रहा और बड़े भाई छोटे भाई की जोड़ी अपने विपक्षियों को मात देती रही. लेकिन एक घटनाक्रम के बाद दोनों भाइयों की यह जोड़ी अलग हो गई. हुआ यूं कि साल 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस द्वारा मध्य प्रदेश की विधानसभा में शिवराज सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. इस अविश्वास प्रस्ताव पर विधानसभा में चर्चा चल रही थी और इस दौरान तत्कालीन उप नेता प्रतिपक्ष राकेश चौधरी ने कांग्रेस द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर ही सवाल खड़े करते हुए अपनी ही पार्टी को घेर लिया. विधानसभा सत्र जैसे ही समाप्त हुआ तो राकेश चौधरी सीधा सीएम शिवराज सिंह चौहान के पास पहुंच गए और यहां उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. 

साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राकेश चौधरी के छोटे भाई मुकेश चौधरी को मेहगांव विधानसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया. हर बार बड़ा भाई चुनाव मैदान में होता था और छोटा भाई चुनावी कमान संभालता था, इस बार छोटा भाई चुनाव मैदान में था तो बड़े भाई राकेश चौधरी ने चुनावी कमान संभाली और अपने राजनीतिक कौशल और अनुभव का प्रयोग करते हुए अपने छोटे भाई मुकेश चौधरी को मेहगांव विधानसभा सीट पर जीते भी दिलवा दी. 

इसके बाद साल 2018 के चुनाव में राकेश चौधरी को भाजपा ने भिंड विधानसभा से प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया लेकिन यहां राकेश चौधरी को जीत हासिल नहीं हो सकी और बीएसपी प्रत्याशी संजीव सिंह कुशवाह विधायक निर्वाचित हुए. 

बीजेपी से चुनाव लड़ने पर मिली हार के बाद राकेश चौधरी का बीजेपी से मोह भंग हो गया और उन्होंने एक बार फिर से घर वापसी करते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया. अब कांग्रेस ने राकेश चौधरी को भिंड विधानसभा से अपना प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया है. लेकिन इस बार राकेश चौधरी का सहयोग करने के लिए उनके छोटे भाई मुकेश चौधरी उनके मौजूद नहीं हैं, क्योंकि राकेश चौधरी तो भाजपा छोड़कर कांग्रेस में वापस आ गए लेकिन मुकेश चौधरी बीजेपी को नहीं छोड़ सके. मुकेश चौधरी बीजेपी में ही रह गए. 

अब राकेश चौधरी कांग्रेस के भिंड विधानसभा के प्रत्याशी हैं और मुकेश चौधरी मेहगांव के बीजेपी के पूर्व विधायक और वर्तमान में बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं. एक भाई कांग्रेस में है और दूसरा भाई बीजेपी में है, ऐसे में पुरानी जोड़ी अलग हो गई है. 

मुकेश चौधरी बीजेपी में होने की वजह से अपने भाई राकेश चौधरी का चुनाव में कोई सहयोग नहीं कर रहे हैं, क्योंकि मुकेश चौधरी उनके विरोधी दल के प्रत्याशी हैं. यह समय चक्र का ही खेल है कि एक समय दोनों भाई चुनावी मैदान में जहां विपक्षी दलों के पसीने छुड़ा देते थे, वही दोनों भाई दो अलग अलग पार्टियों में होने की वजह से एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी बन चुके हैं. दल बदलने के साथ अब दोनों भाइयों के दिल भी बदल गए हैं. 

 

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