कब से हुई गुरु पूर्णिमा की शुरुआत, पढ़‍िए इसकी कथा और गुरु पूजन का महत्व

सनातन धर्म में गुरु का पद भगवान के समान माना गया है। गुरु द्वारा दिए ज्ञान से ही भगवान की भक्ति प्राप्त होती है। इस साल गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई के दिन मनाई जाएगी। हिंदू कैलेंडर के अनुसार गुरु को नमन करने का पर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। आखिर इसी दिन गुरु का पूजन क्यों किया जाता है, इसके पीछे भी एक कथा है। आईए इसे जानते हैं…

वेदव्यास जी की शिष्यों ने की थी इसकी शुरुआत

हिंदू धर्म के ग्रंथों में से एक महाभारत की रचना महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी ने की थी। वेदव्यास जी महर्षि पाराशर और माता सत्यवती के पुत्र थे। आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही उनका जन्म हुआ था। वेदव्यास जी के शिष्यों ने उनकी जन्म तिथि पर गुरु के पूजन की शुरुआत की थी और उन्हें गुरु दक्षिणा दी थी।

इसी के बाद से सभी अपने गुरुओं का पूजन इस दिन करते हैं। शिष्य अपने गुरुओं के चरण का पूजन उन्हें गुरु दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन को गुरु पूर्णिमा के साथ व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

इस तरह पाए गुरु का आशीर्वाद

गुरु पूर्णिमा का पर्व उन सभी के जीवन में बहुत महत्व रखता है, जो अपने गुरु द्वारा बताई दिशा में आगे बढ़ें और उन्नति पाई। इस दिन शिष्य अपने गुरु को पुष्पमाला पहनाकर उनके चरणों का पूजन करते हैं। इसके बाद उन्हें श्रीफल के साथ गुरु दक्षिणा भेंटकर प्रणाम करते हैं।

गुरु पूर्णिमा पर शिष्य व्रत भी रखते हैं। जिन्होंने ने अपने गुरु से दीक्षा लेकर मंत्र लिया है, उसका जाप करते हैं। इस दिन मंदिरों और जरूरतमंदों को दान करने का भी बड़ा महत्व माना गया है। इससे भी गुरु की कृपा प्राप्त होती है। यह दिन केवल आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले गुरु से ही नहीं जुड़ा है। कई लोग इस दिन उनका भी सम्मान करते हैं, जिन्होंने उन्हें जीवन में मार्गदर्शन दिया।

गुरु पूजन की परंपरा ऐसे हुई शुरू, यह है पूरी कथा

महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी का मन बचपन से ही भगवान की भक्ति में लगा रहता था। उन्होंने भगवान के दर्शन पाने के लिए पिता महर्षि पाराशर और माता सत्यवती से जंगल में जाकर तपस्या करने की बात कही। माता सत्यवती को चिंता थी कि वे घने जंगल में अकेले कैसे रहेंगे। इस बात पर उन्होंने व्यास जी को तपस्या करने जंगल में जाने से इनकार कर दिया।

वेद व्यास जी ने इस पर अपनी माता को समझाया कि उन्हें जंगल में कोई नुकसान नहीं होगा। वे भगवान के दर्शन करना चाहते हैं और यह तपस्या के बिना संभव नहीं। बार-बार व्यास जी के मनाने पर माता सत्यवती उनकी बात मान गई।

माता-पिता दोनों की आज्ञा लेकर व्यास जी जंगल की ओर रवाना हो गए। यहां कई वर्षों तक उन्होंने कठोर तपस्या के साथ ज्ञान अर्जित किया। जंगल में तपस्या करते हुए ही उन्होंने चारों वेदों को कंठस्थ कर लिया था। ज्ञान मार्ग के द्वारा वे भगवान की प्राप्ति और उनकी महिमा को फैलाने में लगे रहे।

वेद व्यास जी ने इसके बाद ही सबसे बड़े धर्म ग्रंथ महाभारत की रचना की थी। उन्होंने ब्रह्मसूत्र और 18 पुराण भी लिखे। वेद व्यास जी के ज्ञान की वजह से सभी उन्हें अपना गुरु मानते थे। उनके द्वारा रचित धर्म ग्रंथों को पढ़कर आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते थे। इसी के बाद वेद व्यास जी के शिष्य उनकी जन्मतिथि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु का पूजन शुरू किया था।

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