जम्मू में आतंकवाद के खात्मे के लिए 20 साल बाद ऑपरेशन सर्प विनाश 2.0 क्यों है जरूरी?

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी और घुसपैठ विरोधी अभियानों के हालिया इतिहास से पता चलता है कि पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद, आतंकवादी नेटवर्क फैल रहा है। ये नेटवर्क तब लगातार पीर पंजाल के दक्षिण में ‘आसान जगहों’ की तलाश करता है, जब उत्तरी कश्मीर में उनके अभियान पर दबाव महसूस होता है। यानी उत्तर में दबाव बढ़ने पर आतंकियों का नेटवर्क दक्षिण में जमीन तलाशने लगता है।

डोडा क्षेत्र में आतंकी मुठभेड़ों की मौजूदा बाढ़ 2003 की याद दिलाती है, जब जनरल एनसी विज सेना प्रमुख थे और लेफ्टिनेंट जनरल रोस्तम नानावट्टी के नेतृत्व में उत्तरी कमान ने पुंछ क्षेत्र के सुरनकोट शहर के आसपास हिलकाका के आतंकवाद प्रभावित पहाड़ी इलाकों को खाली करने के लिए ऑपरेशन सर्प विनाश शुरू किया था।

मोडस ऑपरेंडी
पीर पंजाल के दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी ढलानों पर घने जंगलों से घिरा इलाका। पश्चिम में रिजलाइन। दक्षिण में सुरन नदी से घिरा हुआ इलाका। यह इलाका असंख्य चोटियों, स्पर और नालों से ऊबड़-खाबड़ है। गर्मियों में, यह आस-पास के गांवों और उससे आगे के इलाकों से बकरवालों और गुज्जरों की प्रवासी आबादी का घर होता है जो इस क्षेत्र में अपने पशुओं को चराने आते हैं। यह इलाका अस्थायी शेल्टरों – ढोक और बहिकों से भरा हुआ है। सर्दियों में यह इलाका स्थानीय लोगों से पूरी तरह खाली रहता था। यह इलाका जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी समूहों के लिए एक आश्रय स्थल बन गया था। लश्कर, जैश और अल-बद्र के आतंकवादी इस इलाके में खुद को इतना बैखौफ महसूस किया करते थे कि स्थानीय लोगों के साथ क्रिकेट तक खेल लेते थे। तकरीबन 3 वर्षों तक, सुरनकोट क्षेत्र पीर पंजाल के दक्षिण में आतंकवादियों के लिए एक आश्रय स्थल बना रहा। तभी राष्ट्रीय राइफल्स के रोमियो बल को 2003 की शुरुआत में सुरनकोट के उत्तर में हिलकाका के क्षेत्र को ‘साफ, सुरक्षित और नियंत्रित’ करने के लिए अंतिम प्रयास करने का काम सौंपा गया।

हिलकाका की सफाई
अक्टूबर 2002 में ऑपरेशन पराक्रम की समाप्ति पर, नानावट्टी ने फैसला किया कि सुरनकोट और हिलकाका को सुरक्षित करने के लिए एक ऑपरेशन जरूरी है। इसे 2002-03 की सर्दियों के बाद ही किया जा सकता था।
एक संदर्भ यह था कि गर्मी में उस इलाके में अपने पशुओं के साथ पूरे सीजन के लिए प्रवास करने वाले नागरिकों को रोकना था। तत्कालीन सीएम ने प्रस्ताव को बेतुका माना, लेकिन उनके सामने यह पेशकश रखी गई कि जब तक सहमति नहीं होगी, तब तक कोई ऑपरेशन नहीं होगा।

ऑपरेशन सर्प विनाश की योजना
यह काम 16वीं कोर को सौंपा गया, जिन्होंने इसे मेजर जनरल (बाद में लेफ्टिनेंट जनरल) एचएस लिद्दर की कमान के तहत काउंटर इनसर्जेंसी फोर्स (रोमियो) को सौंप दिया। लिद्दर ने श्रीलंका में ऑपरेशन पवन में सीओ 9 पैरा (सीडीओ) के रूप में काम किया था। इसके अलावा वह राजौरी-मेंढर-पुंछ सेक्टर में इलाके और आतंकवादी गतिविधि के बारे में अच्छे से जानते थे। ऑपरेशन की शुरुआती ब्रीफिंग में यह नानावट्टी के लिए स्पष्ट हो गया कि यह काम सामान्य रूप से आरआर इकाइयों और विशेष रूप से आरआर सेक्टर की क्षमताओं से परे था, क्योंकि उनकी मौजूदा परिचालन प्रतिबद्धताओं और कार्य की प्रकृति दोनों ही अलग थीं। इसलिए, नानावट्टी ने निर्देश दिया कि 16 कोर की 163 इन्फैंट्री ब्रिगेडको क्षेत्र को ‘साफ और सुरक्षित’ करने के लिए सीआईएफ (आर) को आवंटित किया जाए। तारीख तय की गई 1 मई, 2003।

लिद्दर ने अपने काम को व्यवस्थित तरीके से शुरू किया। भारतीय वायुसेना की मदद से हेलीपैड बनाया गया। सप्लाई पॉइंट्स के लिए परिचालन ट्रैक बनाए गए। आवंटित पैदल सेना के गठन के लिए कार्य-प्रशिक्षण सुनिश्चित किया गया। 9 पैरा (सीडीओ) की एक टीम द्वारा खुफिया जानकारी एकत्र की गई, जो क्षेत्र में काम कर रही थी और कई सफलताएं हासिल की थी।

योजना सरल थी। पैरा (सीडीओ) गाइड का इस्तेमाल करने वाली पैदल सेना की टुकड़ियां तीन अलग-अलग दिशाओं से अंधेरे की आड़ में अपने निर्धारित क्षेत्रों में घुसपैठ करेंगी, ठिकानों को सुरक्षित करेंगी और उन पर कब्जा करेंगी, और फिर अपने निर्धारित जिम्मेदारी वाले क्षेत्रों में तलाशी और विनाश अभियान शुरू करेंगी। लिद्दर ने कश्मीर घाटी क्षेत्र में पीर पंजाल के पार भागने की कोशिश करने वाले आतंकवादियों से निपटने के इंतजाम भी किए गए। इसके लिए मुख्यालय 15 कोर को भी लगातार संपर्क में रखा गया।

निर्णायक नतीजे

लिद्दर याद करते हैं कि ऑपरेशन एक सप्ताह पहले शुरू किया गया था और 1 मई, 2003 को पूरा हुआ था। संसद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने यह कहते हुए सच्चाई सामने रखी, ‘ऑपरेशन सर्प विनाश में, मार्च 2003 के अंतिम सप्ताह में एनसी द्वारा सैनिकों को भेजा गया था, और हिलकाका में ऑपरेशन 21 अप्रैल, 2003 को शुरू किया गया था।’

ऑपरेशन के दौरान 65 आतंकवादियों को मार गिराया गया और तीन को गिरफ्तार किया गया। 119 ठिकानों का भंडाफोड़ किया गया और 79 प्रमुख हथियार और बड़ी मात्रा में युद्ध संबंधी सामान बरामद किए गए। ऑपरेशन के दौरान, 5 सैन्यकर्मियों ने सर्वोच्च बलिदान दिया और 5 घायल हो गए।

बीस साल बाद, हालांकि घुसपैठ की भयावहता और क्षेत्र में आतंकवादियों की संख्या समान नहीं हो सकती है, लेकिन रक्षा प्रतिष्ठान युद्ध क्षेत्र में अपनी चौकसी में ढील नहीं दे सकते हैं। जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों में इजाफे के बाद अब ये समय की मांग है कि 2003 की तरह ऑपरेशन चलाया जाए। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि हताश पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में शांति को बेपटरी न कर पाए।

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