प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज रूस के लिए रवाना हो रहे हैं. वे दो दिन तक मॉस्को में रहेंगे. भारत-रूस के बीच 22वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पीएम मोदी को न्योता भेजा था. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी की यह पहली रूस यात्रा है. रूस ने पीएम मोदी के इस दौरे को बेहद अहम बताया है. हालांकि, पीएम मोदी के रूस दौरे से पश्चिमी देशों में जलन देखने को मिल रही है. क्रेमिलन (रूसी राष्ट्रपति कार्यालय) ने इस बात का दावा किया है.
रूसी राष्ट्रपति के प्रेस सचिव ने कहा, पीएम मोदी की आगामी यात्रा पर पश्चिमी देश बहुत ही बारीकी और ईर्ष्या से नजर बनाए हुए हैं. उनकी निगरानी का मतलब है कि वे इसे बहुत महत्व देते हैं और वे गलत नहीं हैं, इसमें बहुत महत्व देने वाली बात है. युद्ध के संबंध में भी पीएम मोदी मुखर रहे हैं और वे यूक्रेनी राष्ट्रपति से कई बार फोन पर बातचीत कर चुके हैं. भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले इस युद्ध को समाप्त करने की अपील कर चुका है. पीएम मोदी और पुतिन की दो साल बाद मुलाकात होगी. इससे पहले सितंबर 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय वार्ता की थी.
यह पहली बार नहीं है, जब पश्चिमी देशों को भारत और रूस के बीच रिश्तों से जलन हो रही है. 1950-1960 के दशक से पश्चिमी देशों में भारत-रूस के रिश्तों पर ईर्ष्या देखने को मिली है. हालांकि, भारत पश्चिम के दबाव को लगातार खारिज करता आ रहा है और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के साथ आगे बढ़ रहा है. जानकारों का कहना है कि भारत का यह रुख नया नहीं है, भले कहने का अंदाज आक्रामक हुआ है. यही वजह है कि यूक्रेन संकट में भी भारत और रूस की साझेदारी पर अब तक कोई आंच नहीं आई है. दो साल पहले जब पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच मुलाकात हुई तब दोनों नेताओं ने कहा था, ‘रूस और भारत की दोस्ती अटूट है.’ भारत और रूस को हर संकट पर साथ खड़े देखा जा सकता है. भारत की तटस्थ विदेश नीति हर किसी को आकर्षित कर रही है.
1. मोदी के रूस दौरे से पश्चिमी देशों को क्यों जलन हो रही?
1960 के दशक में सोवियत संघ की नेता निकिता ख्रुश्चेव और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के बीच जारी कोल्ड वॉर के दौर में पंडित नेहरू ने निर्गुट आंदोलन खड़ा करके तीसरे विश्व की कल्पना को साकार किया था, उसके बाद से भारत ने वर्ल्ड पावर बैलेंस हमेशा अपने हिसाब से बनाए रखा है लेकिन जब भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को जरूरत पड़ी है तो रूस एक भरोसेमंद साथी के रूप में खड़ा दिखा है. यूएन के मंच पर अपने वीटो पावर के साथ भी रूस ने भारत का साथ दिया है. यही कारण है कि इस दोस्ती पर अमेरिकी समेत पश्चिम देशों को हमेशा जलन हुई है. 1955 में निकिता ख्रुश्चेव ने कश्मीर पर भारतीय संप्रभुता के लिए समर्थन की घोषणा करते हुए कहा था, हम इतने करीब हैं कि अगर आप कभी हमें पहाड़ की चोटियों से बुलाएंगे तो हम आपके पक्ष में खड़े होंगे. तब से मॉस्को कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के खिलाफ एक ढाल बना हुआ है.
– सोवियत संघ ने 1957, 1962 और 1971 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को वीटो कर दिया था, जिसमें कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की बात कही गई थी. इस बात पर जोर दिया गया था कि यह एक द्विपक्षीय मुद्दा है, जिसे भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के जरिए सुलझाया जाना चाहिए और भारत-पाक संघर्ष पर भी उसने सामान्य तौर पर यही रुख अपनाया. भारत में राजनीतिक हलकों में इस तरह के रुख की सराहना की गई.
– फिलहाल, रूस और पश्चिमी देशों (विशेषकर अमेरिका और यूरोप) के बीच संबंध तनावपूर्ण हैं. विशेषकर यूक्रेन संघर्ष और नाटो विस्तार के कारण. ऐसे में भारत का रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय हो सकता है. यह उनके रणनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है.
– भारत और रूस के बीच रक्षा और सैन्य सहयोग बहुत मजबूत है. यदि भारत और रूस के बीच सैन्य समझौते होते हैं या भारत रूसी हथियार खरीदता है तो यह पश्चिमी देशों के रक्षा उद्योगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है, जो भारतीय रक्षा बाजार में हिस्सेदारी की कोशिश कर रहे हैं.
– रूस एक प्रमुख ऊर्जा उत्पादक देश है. यदि भारत और रूस के बीच ऊर्जा सहयोग बढ़ता है, जैसे कि तेल और गैस की आपूर्ति समझौते तो यह पश्चिमी देशों के ऊर्जा कंपनियों के लिए चुनौती बन सकता है.
– भारत और रूस कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करते हैं जैसे ब्रिक्स, एससीओ, और संयुक्त राष्ट्र. यदि इन मंचों पर भारत और रूस के बीच सहयोग बढ़ता है तो यह पश्चिमी देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में चुनौतियां पैदा कर सकता है.
– रूस तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी भारत के साथ सहयोग कर रहा है. यह पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय हो सकता है. विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां वे भी भारत के साथ सहयोग करना चाहते हैं.
– भारत और रूस के बीच व्यापार और निवेश के बढ़ते संबंध भी पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं. यदि भारत रूसी बाजार में अधिक निवेश करता है या रूस से अधिक व्यापार करता है तो यह पश्चिमी व्यापारिक हितों को प्रभावित कर सकता है.
– हालांकि, भारत की विदेश नीति स्वायत्त और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है और वो अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ संबंधों को संतुलित करने की कोशिश करता है.
2. रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत का क्या स्टैंड रहा है?
रूस और यूक्रेन के बीच 24 फरवरी 2022 को युद्ध शुरू हुआ था. रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. इस हमले के पीछे कई कारण थे, जिसमें भूमि का दावा, राजनीतिक और सैन्य रणनीतियों का मामला शामिल था. वहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत का स्टैंड संतुलित और रणनीतिक रहा है. भारत ने यूक्रेन से जंग के लिए अब तक रूस को जिम्मेदार नहीं बताया है और ना ही इसकी निंदा की है.
– भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में तटस्थता बनाए रखी है. संयुक्त राष्ट्र में ऐसे कई मौके आए, जब रूस के खिलाफ प्रस्ताव लाए गए और भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कई बार वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. भारत ने इस मामले में किसी एक पक्ष का स्पष्ट समर्थन नहीं किया है, बल्कि संवाद और कूटनीति के जरिए विवाद का समाधान करने का आह्वान किया है.
– भारत ने कई बार कहा है कि सभी पक्षों को कूटनीतिक बातचीत के जरिए मुद्दों को हल करना चाहिए. भारत ने युद्ध विराम और शांति वार्ता की जरूरत पर जोर दिया है.
– भारत ने अब तक अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए बड़े फैसले लिए हैं. भारत और रूस के बीच लंबे समय से मजबूत रक्षा, आर्थिक और ऊर्जा संबंध हैं. इस स्थिति में भारत ने अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखने की कोशिश की है.
– रूस-यूक्रेन के बीच जब युद्ध हुआ और भारतीय नागरिक यूक्रेन में फंस गए तब भारत सरकार ने यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को निकालने के लिए ‘ऑपरेशन गंगा’ नाम से एक अभियान चलाया. भारतीय सरकार ने अपने हजारों नागरिकों को सुरक्षित घर लौटाने का प्रयास किया.
– भारत ने यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने की बात कही है. हालांकि, भारत ने रूस के खिलाफ किसी भी कठोर कार्रवाई का समर्थन नहीं किया है.
– रूस से सस्ती ऊर्जा खरीदने का अवसर भी भारत के निर्णयों को प्रभावित करता है. रूस से कच्चे तेल और अन्य ऊर्जा संसाधनों की खरीद में वृद्धि हुई है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है.
3. रूस क्यों भारत का सबसे भरोसेमंद साथी है?
भारत और रूस के बीच दोस्ती का आधार कई ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों पर आधारित है. भारत और सोवियत संघ के बीच के रिश्ते 1950 के दशक से ही मजबूत रहे हैं. दोनों देशों ने शीत युद्ध के दौरान एक-दूसरे का समर्थन किया. खासकर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान. रूस, भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता है. भारत की सेना के उपकरणों और हथियारों का एक बड़ा हिस्सा रूस से आता है. दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास और तकनीकी सहयोग भी होता है. दोनों देश विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, जैसे संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स, और शंघाई सहयोग संगठन (SCO). भारत और रूस के बीच ऊर्जा, खनिज और अन्य क्षेत्रों में व्यापारिक संबंध हैं. दोनों देश परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी सहयोग करते हैं, जैसे कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना. चीन की बढ़ती ताकत और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भारत और रूस एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं. दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी हैं, जैसे शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम, भारतीय छात्रों का रूस में पढ़ाई करना, और रूसी संस्कृति का भारत में प्रसार. यही वजह है कि रूस भारत का एक भरोसेमंद साथी बना हुआ है और दोनों देशों के बीच दोस्ती मजबूत बनी रहती है.
4. भारत और रूस के बीच कैसे हैं द्विपक्षीय संबंध?
भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक, रणनीतिक और बहुआयामी द्विपक्षीय संबंध माने जाते हैं. ये संबंध कई मायने में अहम हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. 2021 में द्विपक्षीय व्यापार लगभग 10 अरब डॉलर था. द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने 2025 तक 30 अरब डॉलर तक के लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प लिया है. भारत और रूस के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग रहा है. रूस ने भारत के पहले मानव अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में भेजने में मदद की थी. दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में सहयोग होता है. इसके अलावा, भारतीय छात्रों की एक बड़ी संख्या रूसी यूनिवर्सिटीज़ में शिक्षा हासिल करती है. दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम भी होते हैं. भारतीय संस्कृति और योग का रूस में बड़ा प्रभाव है. भारत और रूस विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग करते हैं, जैसे BRICS, SCO (शंघाई सहयोग संगठन), और UN (संयुक्त राष्ट्र). दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ सहयोग करते हैं और वैश्विक सुरक्षा में योगदान देते हैं. फिलहाल, भारत और रूस के बीच उभरते हुए नए क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है. इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, और ग्रीन एनर्जी शामिल है.दोनों देशों के बीच नियमित दौरे और शिखर सम्मेलन होते हैं.
रूस के सहयोग से विकसित की गई है और भारत के रक्षा बलों द्वारा उपयोग की जा रही है.
Smerch और Grad MLRS: ये मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम्स हैं जो भारतीय सेना के पास हैं.
SA-3 Pechora और Igla: ये एयर डिफेंस सिस्टम्स हैं जिन्हें भारतीय सेना उपयोग में लेती है.
5. रूस से कितना तेल खरीदता है भारत?
हाल के वर्षों में भारत और रूस के बीच ऊर्जा सहयोग, विशेषकर तेल और गैस के क्षेत्र में सहयोग काफी बढ़ा है. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस ने भारत और चीन जैसे देशों को रियायती दरों पर तेल बेचना शुरू किया. इससे भारत को सस्ता तेल हासिल करने का मौका मिला. 2022 और 2023 के दौरान भारत ने रूस से तेल खरीद में जबरदस्त वृद्धि की. 2022 की शुरुआत में रूस भारत को सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन गया. भारतीय रिफाइनरियां रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीदने लगीं. मई 2022 तक रूस भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया था. रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदने से भारतीय रिफाइनरियों को आर्थिक लाभ हुआ, जिससे देश की ऊर्जा लागत को कम करने में मदद मिली. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि वैश्विक तेल कीमतों में वृद्धि हो रही थी.
6. दोनों देशों के बीच में क्या व्यापार?
भारत और रूस के बीच लंबे समय से मजबूत रक्षा संबंध हैं और भारत ने विभिन्न प्रकार के हथियार और डिफेंस सिस्टम रूस से आयात किए हैं. इसके अलावा, भारत ने रूस से विभिन्न प्रकार के रडार और संचार उपकरण भी हासिल किए हैं, जो हमारी सेना की क्षमताओं को बढ़ाते हैं. इन सभी हथियारों और रक्षा प्रणालियों ने भारतीय सेना, नौसेना, और वायु सेना की युद्ध क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. रूस के साथ यह रक्षा सहयोग भारत की रणनीतिक सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
Sukhoi Su-30MKI: भारतीय वायुसेना का मुख्य लड़ाकू विमान है. यह विमान रूस के साथ मिलकर भारत में निर्मित होता है.
MiG-29: यह एक मल्टीरोल फाइटर जेट है जिसका उपयोग भारतीय वायुसेना और नौसेना दोनों करती हैं.
IL-76 और IL-78: ये परिवहन विमान और एरियल रिफ्यूलिंग टैंकर विमान हैं.
Mi-17: यह एक ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर है जिसका उपयोग ट्रूप और सामान परिवहन के लिए किया जाता है.
Ka-226T: यह एक हल्का मल्टीरोल हेलीकॉप्टर है जिसे भारत में निर्मित करने की योजना है.
T-90: यह भारत का मुख्य युद्धक टैंक है जिसे रूस से खरीदा गया है और भारत में निर्मित किया जा रहा है.
T-72: यह एक पुराना लेकिन महत्वपूर्ण युद्धक टैंक है जिसे भारतीय सेना उपयोग में लेती है.
INS Vikramaditya: यह विमानवाहक पोत रूस से खरीदा गया था.
Kilo-Class Submarines: भारतीय नौसेना के पास कई Kilo-Class डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं.
Talwar-Class Frigates: ये गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट्स हैं जो भारतीय नौसेना में शामिल हैं.
S-400 Triumf: यह एक अत्याधुनिक एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम है जिसे भारत ने रूस से खरीदा है.
BrahMos: यह सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल रूस के सहयोग से विकसित की गई है और भारत के रक्षा बलों द्वारा उपयोग की जा रही है.
Smerch और Grad MLRS: ये मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम्स हैं जो भारतीय सेना के पास हैं.
SA-3 Pechora और Igla: ये एयर डिफेंस सिस्टम्स हैं जिन्हें भारतीय सेना उपयोग में लेती है.
7. भारत से कौन-कौन हथियार लेता है रूस?
हालांकि, रूस भारत से हथियारों की खरीदारी अपेक्षाकृत कम करता है. चूंकि रूस खुद एक प्रमुख हथियार निर्माता और निर्यातक है. लेकिन दोनों देशों के बीच तकनीकी और रक्षा सहयोग का आदान-प्रदान होता है. भारत और रूस ने संयुक्त रूप से ब्रह्मोस मिसाइल विकसित की है. यह दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइलों में से एक है और यह दोनों देशों के सशस्त्र बलों द्वारा उपयोग की जाती है. रूस ने इस परियोजना में भारतीय तकनीकी योगदान को स्वीकार किया है और इसे अपनी जरूरतों के अनुसार अनुकूलित करने की संभावना भी देखी जाती है. इसके अलावा, भारत की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और रूसी रक्षा अनुसंधान संस्थान के बीच विभिन्न परियोजनाओं पर सहयोग होता है. इस सहयोग के तहत दोनों देश एक-दूसरे की तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हैं.
8. भारत और रूस के बीच संबंध कितने पुराने?
भारत और रूस के संबंध सात दशक पुराने हैं और ये विभिन्न दौरों में विकसित हुए हैं. यह बात पूरी दुनिया भी जानती है. पीएम मोदी से लेकर राष्ट्रपति पुतिन कई मौकों पर एक-दूसरे की तारीफ करने से नहीं हिचकते हैं. सोवियत संघ पहला देश था, जिसके साथ भारत ने 13 अप्रैल 1947 को भारत की स्वतंत्रता के चार महीने बाद ही राजनयिक संबंधों की स्थापना की थी. नवंबर 1955 में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों के एक नए युग की शुरुआत हुई थी. उसके बाद सोवियत संघ ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का खुलकर समर्थन किया. विशेषकर कश्मीर मुद्दे पर. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ ने भारत के पक्ष में कई बार वीटो का प्रयोग किया.
9. कैसे मजबूत हुए भारत और रूस के रिश्ते?
एक समय ऐसा भी था, जब दोनों देशों के संबंध वैचारिक मतभेद की वजह से अविश्वास से घिरे हुए थे. तब सोवियत संघ में जोसेफ स्टालिन का राज था. भारत अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. स्टालिन ने 1920 के मध्य से 1953 में अपनी मौत तक सोवियत संघ की अगुवाई की. वो अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में भारत के नेताओं और भारतीय आंदोलनों को संदेह की नजर से देखते थे. स्टालिन ने 1947 में भारत की आजादी को एक राजनीतिक तमाशा बताया. आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने गुटनिरपेक्ष रुख अपनाया. भारत ने शीतयुद्ध के दौरान ना तो पूंजीवादियों और ना ही कम्युनिस्टों का साथ लिया. इससे सोवियत में असुरक्षा की भावना बढ़ी. उन्हें लगा कि शीत युद्ध के बीच भारत या तो ब्रिटेन या फिर अमेरिका के साथ जाएगा. ऐसे में वैचारिक मतभेदों के बावजूद भारत और सोवियत संघ के बीच अप्रैल 1947 में औपचारिक तौर पर राजनयिक संबंध बने. उसके बाद रूस और भारत ने आधिकारिक बयान जारी कर मैत्रीपूर्ण संबंधों को और मजबूत करने का ऐलान किया.
10. भारत-रूस के बीच पहली डील क्या हुई थी?
स्वतंत्रता के बाद भारत में भुखमरी के हालात थे. भारत को गेहूं की जरूरत थी. ऐसे में पंडित नेहरू ने साल 1949 में अमेरिकी दौरा किया और मदद मांगी. हालांकि उनकी ये यात्रा असफल रही. क्योंकि अमेरिकी ने भारत को खाद्य सामग्री की मदद देने से इनकार कर दिया था. उसके बाद भारत सरकार ने सोवियत संघ का रुख किया. इस पर 1951 में औपचारिक समझौता हुआ. सोवियत ने पारंपरिक भारतीय सामानों के निर्यात के बदले भारत को एक लाख टन गेहूं भेजने का वादा किया. 1953 में स्टालिन की मौत के बाद भारत और सोवियत के संबंध एक नए चरण में प्रवेश कर गए. सोवियत के नेताओं ने भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी के महत्व को पहचाना. सोवियत प्रमुख निकोलाई बुल्गानिन और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी जनरल सचिव निकिता क्रूस्चेव के निमंत्रण पर नेहरू ने जून 1955 में सोवियत संघ का दौरा किया था. इस दौरे ने दोनों देशों के संबंधों की मजबूत नींव रखी.
11. रूस ने मदद के हाथ बढ़ाए तो अमेरिका से निर्भरता घटी?
भारत बड़े पैमाने पर अमेरिकी मदद पर आश्रित रहता था, लेकिन सोवियत संघ ने भारत को पावर और इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में पूरा सहयोग दिया. इस तरह भारत के औद्योगीकरण में सोवियत की अहम भूमिका रही. भिलाई और बोकारो स्टील प्लांट नेहरू के इसी दौरे का नतीजा थे. कहा जाता है कि मौजूदा समय में भारत और रूस के संबंधों में जो गर्मजोशी है, उसमें नेहरू के उस दौरे की बड़ी भूमिका है. कोल्ड वॉर के दौरान (1947-1991) के दौरान भी रूस और भारत के बीच संबंध मजबूत रहे. सोवियत संघ ने भारत को रक्षा, औद्योगिकी और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मदद पहुंचाई. सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत और रूस के बीच संबंध विभिन्न पहलुओं में विकसित हुए हैं. दोनों देशों ने अपने गहरे राजनीतिक, रक्षा और आर्थिक संबंधों को संदर्भित करते हुए सहयोग और साझेदारी में वृद्धि की है. इन संबंधों में व्यापक सहयोग के साथ-साथ राजनीतिक, सैन्य, वैज्ञानिक और आर्थिक क्षेत्रों में विकास हुआ
12. 1971 में रूस ने भारत की क्या मदद की?
साल 1971 में भारत संकटों से घिरा था. इस साल भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें बांग्लादेश की मुक्ति के लिए भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की थी. इस युद्ध के दौरान रूस ने भारत को ना सिर्फ पूर्ण समर्थन दिया था, बल्कि रक्षा सहायता भी मुहैया करवाई थी. भारत को विभिन्न प्रकार की रक्षा सामग्री और युद्ध सामग्री भेजी थी. रूस ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान को राजनीतिक समर्थन हासिल करने से रोकने में भी मदद की. अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के स्थान का समर्थन किया और इस युद्ध को विश्व समुदाय में समझाया. माना जाता है कि 1971 में भारत के पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में जीत के पीछे रूस की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.
13. दोनों देशों के बीच आगे की क्या रणनीति?
भारत और रूस ने अपने ऊर्जा सहयोग को और बढ़ाने की योजना बनाई है, जिसमें दीर्घकालिक तेल और गैस आपूर्ति समझौतों को शामिल किया जा सकता है. इसके अलावा, दोनों देश ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश और तकनीकी सहयोग पर भी काम कर रहे हैं. ऊर्जा क्षेत्र में भारत और रूस के बीच सहयोग सिर्फ तेल तक सीमित नहीं है. भारत रूस से प्राकृतिक गैस, एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस), और अन्य ऊर्जा संसाधनों की भी खरीद करता है. इन सभी उपायों से भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है और रूस को अपने ऊर्जा निर्यात के लिए एक बड़ा बाजार मिलता है.
14. यूक्रेन युद्ध का दुनिया में क्या प्रभाव?
2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद से मोदी ने पुतिन और वलोडिमिर जेलेंस्की से कई बार टेलीफोन पर बातचीत की और युद्ध को समाप्त करने पर जोर दिया है. इस युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है. एक तरफ यूरोप ने रूस से तेल और गैस लेना लगभग बंद कर दिया है तो दूसरी तरफ भारत का रूस से तेल आयात बढ़ता गया है. रूस से भारत का आयात लगभग 400 फीसदी तक बढ़ा है. आयात में यह उछाल रूस से छूट के साथ मिल रहे कच्चे तेल के कारण है. वहीं, पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. यूरोप के देशों ने रूस से तेल और गैस के आयात में भारी कटौती की है और यूक्रेन में बड़ी संख्या में हथियार भेजे हैं ताकि वो अपनी रक्षा खुद कर सके.
15. इस बार पीएम मोदी के दौरे में क्या खास?
पीएम मोदी और पुतिन के बीच द्विपक्षीय वार्ता होगी. बैठक में रक्षा सौदों से लेकर निवेश तक तमाम मसलों पर बातचीत हो सकती है. मॉस्को में पीएम के भव्य स्वागत की तैयारियां की जा रही हैं. भारतीय बैंक संघ (आईबीए) भी पीएम के इस दौरे से काफी उत्साहित है. इस दो दिवसीय दौरे में पीएम मोदी मॉस्को में रहने वाले भारतीय समुदाय के एक ग्रुप को भी संबोधित करेंगे, जो 9 साल के लंबे अंतराल के बाद पीएम की मॉस्को यात्रा को लेकर काफी उत्साहित है. पीएम मोदी के स्वागत को लेकर खास इंतजाम किए गए हैं. डांस परफॉर्मेंस और स्वागत के लिये रिहर्सल कर रहे कलाकार भी पीएम मोदी की एक झलक पाने के लिये बेताब देखे जा रहे हैं.
करीब पांच साल में मोदी की पहली रूस यात्रा है. इससे पहले वे 2019 में रूस दौरे पर गए थे और व्लादिवोस्तोक शहर में एक आर्थिक सम्मेलन में हिस्सा लिया था. भारत और रूस के बीच अब तक 21 वार्षिक शिखर सम्मेलन हो चुके हैं. पिछला वार्षिक शिखर सम्मेलन 6 दिसंबर, 2021 को नई दिल्ली में आयोजित हुआ था तब पुतिन ने भारत का दौरा किया था.
पश्चिमी देश कौन-कौन हैं?
‘पश्चिमी देश’ आमतौर पर वो देशों हैं. उत्तरी अमेरिका, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), कनाडा, यूरोप, यूनाइटेड किंगडम (UK), फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, लक्समबर्ग, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, आयरलैंड, ग्रीस, ओशिनिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड. इजराइल भी पश्चिमी देश के रूप में माना जाता है.
नाटो सदस्य
पश्चिमी देशों का एक बड़ा हिस्सा नाटो के सदस्य हैं, जो एक सैन्य गठबंधन है. इन देशों के बीच सांस्कृतिक, राजनीतिक, और आर्थिक संबंध बहुत मजबूत हैं. इनका एक सामान्य इतिहास और कई साझा मूल्य हैं, जैसे लोकतंत्र, मानवाधिकार, और बाजार अर्थव्यवस्था. पश्चिमी देशों का वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण प्रभाव होता है.