मध्यप्रदेश चुनावों में बीजेपी राम मंदिर का मुद्दा क्यों उठाने लगी है?

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव देश भर में होने वाले चुनावों से इसबार अलग हैं. यहां बीजेपी और कांग्रेस में होड़ इस बात की है कि कौन हिंदुत्व का बड़ा झंडाबरदार है. कांग्रेस ने श्रीलंका में सीता मंदिर बनाने,राम वनपथ गमन योजना,  केवटराज की मूर्ति बनाने, श्राद्ध कर्म में हर हिंदू को फंड मुहैय्या कराने आदि का वादा करके खुद को हिंदुओं का बड़ा समर्थक साबित कर बीजेपी को बैकफुट पर लाने की कोशिश की है. इसके जवाब में बीजेपी ने भी अपना ट्रंप कार्ड रख दिया. बीजेपी भी खुलकर भाषणों और पोस्टरों में रामजन्मभूमि मंदिर का श्रेय लेनी शुरू कर दी है. पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के भाषणों में भी रामजन्म भूमि का जिक्र जमकर होने लगा है. आइये देखते हैं कि आखिर वे कौन से कारण हैं  कि बीजेपी अपने जिस ट्रंप कार्ड को लोकसभा चुनावों में यूज करना चाहती थी उसे मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में लाना पड़ गया है?

मध्य प्रदेश में राम मंदिर बना चुनावी मुद्धा

मध्य प्रदेश में चुनावी पोस्टरों में बीजेपी राम मंदिर बनाने का श्रेय लेती दिख रही है. राम मंदिर के बैकड्रॉप में पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा भी दिख रहे हैं. कांग्रेस ने इसके लिए बीजेपी की चुनाव आयोग से शिकायत भी की है. पीएम नरेंद्र मोदी भी शुक्रवार को चित्रकूट की सभा में रामंदिर उद्घाटन समारोह में खुद को बुलाए जाने को अपनी खुशकिस्मती बताया. दूसरे ही दिन अमित शाह ने छिंदवाड़ा की सभा में कहा कि राहुल गांधी तंज कसते थे कि मंदिर वहीं बनाएंगे पर तिथि नहीं बताएंगे. अब मंदिर बन भी गया और उद्घाटन की तिथि भी आ गई है. एक और सभा में अमित शाह ने कहा कि अगले कुछ महीनों में आपको तीन बार दिवाली मनाने के मौके आना वाला है. एक बार दिवाली पर, दूसरी बार बीजेपी की जीत पर और तीसरी बार राम जन्मभूमि के उद्घाटन पर. इस तरह एक तरफ तो राजस्थान और अन्य जगहों के चुनाव में बीजेपी राम मंदिर को लेकर शांत है पर मध्यप्रदेश में राम मंदिर बनाने का श्रेय लेने से चूक नहीं रही है.

कमलनाथ के अफेंसिव गेम से बीजेपी हुई मजबूर

कमलनाथ ने जब से चुनावी मोर्चा संभाला है लगतार खुद को बीजेपी से बड़ा हिंदुत्व का समर्थक साबित करने में लगे रहते हैं. यही कारण रहा है कि उन्होंने प्रदेश में इंडिया गठबंधन की बैठक नहीं होने दी. वो जानते थे कि इंडिया गठबंधन में जिन मुद्दों को हाइलाइट किया जाएगा उन्हें बीजेपी एंटी हिंदू साबित करने का कोई कसर नहीं छोड़ेगी. कमलनाथ पहले ही हनुमान मंदिर, नर्मदा पूजा, बाबा बागेश्वर और अन्य संतों के आशीर्वाद, हिंदू राष्ट्र आदि के नाम पर बीजेपी के पदचिह्मों पर चलकर संकेत दे दिया था आने वाले दिनों में उन्हें कोई एंटी हिंदू नहीं साबित कर सके. बाद के दिनों में एक कदम और बढ़ते हुए उन्होंने खुद को बीजेपी से भी अधिक कट्टर हिंदू इमेज बनानी शुरू कर दी. श्रीलंका में सीता मंदिर, श्रीरामवन गमन पथ आदि के निर्माण कराने की घोषणा तो की ही मुस्लिम राजनीति से भी तौबा कर ली. जैसे मुस्लिम अल्पसंख्यकों को टिकट कम देना, मुसलमानों को चुनाव समितियों में नजरअंदाज करना, रोजा इफ्तार पार्टियों से खुद को अलग करना आदि कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं. यह सब देखकर बीजेपी को लगने लगा था कि उनका हिंदुत्व कहीं प्रदेश के लोगों की नजरों में कमलनाथ  से कमतर न साबित हो जाए. बीजेपी ने अपना तुरुप के इक्के को अंतिम चरण में जनता के सामने ला दिया.

लगातार चुनावी सर्वेक्षणों में पीछे नजर आ रही बीजेपी

मध्य प्रदेश चुनावों के सर्वेक्षणों को देखा जाए तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती नजर आ रही है. अधिकतर सर्वे में कांग्रेस को कांटे की टक्कर में बीजेपी से अधिक सीटें मिलती नजर आ रही हैं. टाइम्स नाऊ नवभारत टाइम्स, एबीपी-सी वोटर,  न्यूज 24, इंडिया टीवी, जी न्यूज आदि सर्वे अगर सही होते हैं तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनना तय हो सकता है. वहीं आईएएनएस-पोल  स्ट्रैट के सर्वे में मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है. सी वोटर के पसंदीदा मुख्यमंत्रियों के सर्वे में शिवराज चौहान को जनता ने कमलनाथ के मुकाबले अधिक पसंद किया है. इस तरह बीजेपी को एक तरफ नाउम्मीदी तो दूसरी ओर उम्मीद की किरण भी दिख रही है. यही कारण बीजेपी ने मध्यप्रदेश में अपना तुरुप का इक्का खेल दिया है. पार्टी कहीं से भी हिंदुत्व के मोर्चे पर कमलनाथ से कमजोर नहीं दिखना चाहती है. इसलिए अयोध्या में श्री राम मंदिर का श्रेय लेकर वोट लेने की कोशिश शुरू हो गई है.

केवल एक परसेंट वोट से पलट जाएगा गेम

 अगर 2018 के चुनावों के आधार पर राजनीतिक विश्वेषण करें तो मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है.प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में 2018 में हर पांचवीं सीट पर तीन प्रतिशत से कम वोटों  जीत हार का फैसला हुआ था.2018 में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में 114 सीट जीतने में कामयाब हुई थी. यानि कि बहुमत से 2 कम रह गई.2018 के चुनाव में भाजपा ने 109 सीटें हासिल की थीं. तीन फीसद से कम वोटों के अंतर से जीतने वाले 46 विधायकों में से 23 बीजेपी के और 20 कांग्रेस के विधायक थे.इसी तरह तीन अन्य सीटों पर बहुत कम मार्जिन से फैसला हुआ. इसमें दो निर्दलीय और एक बसपा उम्मीदवार का नाम आता है. इन तीनों पर बीजेपी दूसरे स्थान पर रही थी. इस तरह सत्ता में आने के लिए केवल एक से 2 परसेंट वोट से बहुत सी सीटों पर खेल हो जाएगा. बीजेपी जानती है कि राम मंदिर के मुद्दे से अगर एक परसेंट वोटों का ध्रुवीकरण करा लेती है तो सरकार बनाने में पार्टी कामयाब हो जाएगी.

 

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