जब कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए निर्दलीय लड़े थे माधवराव सिंधिया, ग्वालियर की जनता ने कर दी थी वोटों की बारिश

ग्वालियर: चुनाव के समय हमें कई ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं जो बाद में किस्सा बन जाती हैं। उदाहरण के रूप में, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी की सरकार बनाई थी। हालांकि ऐसा मध्य प्रदेश की राजनीति में पहली बार नहीं हुआ। इससे पहले कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया से इस्तीफा मांग लिया था। वह केंद्र में मंत्री थे और उन पर गंभीर आरोप लगे थे, फिर भी वह निर्दलीय चुनाव लड़कर जीते थे।

हवाला कांड में आया था नाम

, ‘एक समय था जब ग्वालियर-चंबल अंचल की राजनीति सिंधिया घराने के इर्द-गिर्द ही घूमती थी। 1984 में अटल बिहारी वाजपेयी को हराने वाले तत्कालीन मंत्री माधवराव सिंधिया 1996 के लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में थे।’

लेकिन उनकी मंशा पूरी होती उससे पहले ही तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार में हवाला कांड सामने आ गया। हवाला का पैसा ट्रांसफर करने वाले एक आरोपी को पुलिस ने पकड़ा। उसके पास से मिली लिस्ट में लाल कृष्ण आडवाणी, कमलनाथ और माधवराव सिंधिया सहित कई नेताओं के नाम संदिग्ध थे। कांग्रेस किसी तरह का विवाद नहीं चाहती थी और इससे बचने के लिए उसने अपने ही नेताओं से इस्तीफा मांग लिया। साथ ही यह शर्त रखी गई कि जिन नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दिया है, वे अपने किसी परिजन को अपनी जगह चुनाव लड़वाएं। कमलनाथ ने ऐसा किया और अपनी पत्नी को अपनी जगह कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़वाया। लेकिन माधवराव सिंधिया इस बात के लिए तैयार नहीं थे।

निर्दलीय लड़कर जनता के हाथ में छोड़ा फ़ैसला

1996 के इस किस्से का जिक्र करते हुए  कि जब चुनाव नजदीक आया तो सिंधिया ने चुनाव लड़ने का मन बना लिया। उन्होंने खुद की पार्टी से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया, क्योंकि पार्टी इतनी बड़ी नहीं थी और उस समय कांग्रेस की बंपर लहर चल रही थी। ऐसे में माधवराव सिंधिया के लिए पार्टी न के बराबर थी। एक तरह से यह चुनाव उनके लिए निर्दलीय चुनाव था। लोगों में अपने लिए विश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने घर-घर जाकर लोगों से जनसंपर्क किया। वह लोगों के विश्वास पर भी खरे उतरे और चुनाव के बाद उन्होंने बंपर जीत हासिल की और उनके पूरे जीवन में इस चुनाव से ज्यादा मत उन्हें कभी नहीं मिले।

माधवराव सिंधिया की जीत पर अन्य दल के नेताओं को भी इतना भरोसा था कि उनके सामने क्षेत्र से कोई नेता ही सामने नहीं आया। कांग्रेस ने शशि भूषण वाजपेई को ग्वालियर से टिकट देकर माधवराव सिंधिया के सामने उतारा गया, लेकिन जैसा कि अन्य नेताओं को लग रहा था, चुनाव में शशि भूषण बाजपेई को करारी हार का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं वह अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए और माधवराव सिंधिया की एक तरफा जीत हुई।

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