विदिशा। विदिशा ने सारे पूर्वानुमानों को ध्वस्त करते हुए एक बार फिर साबित कर दिया कि जिले में भाजपा की जड़ें काफी मजबूत हैं। 10 वर्ष बाद विदिशा जिले की पांचों सीटों पर भाजपा का कमल खिल गया है। इस बार मतदाताओं ने भाजपा की झोली को उम्मीदों से ज्यादा भर दिया है।
भाजपा का परंपरागत गढ़
आजादी के बाद से विदिशा भाजपा का परंपरागत गढ़ रहा है। यहां पहले हिंदू महासभा, जनसंघ और भाजपा के प्रत्याशी ही जीत हासिल करते थे, लेकिन वर्ष 2013 से भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगना शुरू गया था। इस चुनाव में पहली बार कांग्रेस ने गंजबासौदा और सिरोंज की सीट भाजपा से छीन ली थी।
इसके बाद भाजपा को दूसरा बड़ा झटका वर्ष 2018 में विदिशा सीट पर मिला, जहां 46 वर्ष बाद कांग्रेस ने इस पर कब्जा कर लिया। इस बार चुनाव में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच शुरू से ही कड़ा मुकाबला दिखाई दे रहा था। मतदान की तारीख के पहले तक राजनीतिक विश्लेषक भी जिले में कांग्रेस की बढ़त को मान रहे थे, लेकिन मतदान के दिन मतदान केंद्रों पर उमड़ी महिलाओं की भीड़ ने लोगों को अपने अनुमान बदलने पर मजबूर कर दिया।
लाड़ली बहना के रूप में मतदान केंद्रों पर लगी महिलाओं की कतार से भाजपा की जीत की संभावना बढ़ने लगी थी। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में सनातन और हिंदुत्व का मुद्दा भी अंदर ही अंदर तेजी से फैलने की बात कही जाने लगी थी। रविवार को हुई मतगणना में यह सारे फैक्टर दिखाई भी दिए। मजे की बात ये रही कि इतनी बड़ी जीत की उम्मीद तो खुद भाजपा के प्रत्याशियों ने भी नहीं की थी।
जिस कुरवाई सीट को भाजपा कमजोर मान रही थी, उसी सीट से हरिसिंह सप्रे करीब 26 हजार वोटों की बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब हो गए। इसी तरह विदिशा सीट पर करीब 16 हजार वोटों से चुनाव हारने वाले मुकेश टंडन जिले की सबसे बड़ी जीत हासिल कर रहे हैं। उन्होंने शशांक भार्गव को बड़े अंतर से हराया है। इधर, गंजबासौदा से भाजपा के हरिसिंह रघुवंशी, शमशाबाद से सूर्य प्रकाश मीणा और सिरोंज से उमाकांत शर्मा ने भी बड़ी जीत हासिल की है।