महाकाल की सवारी में सिंधिया घराने के सदस्य का शामिल होना क्यों जरूरी? 250 साल पुरानी है परंपरा

प्राचीन काल से ही भगवान महाकाल की सवारी में सिंधिया घराने की ओर से कोई ना कोई सदस्य शामिल होकर पूजा अर्चना करता आया है. इसकी बड़ी ही रोचक वजह है. 
भादो मास के दूसरे सोमवार भगवान महाकाल की अंतिम और शाही सवारी में शामिल होने के लिए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पुत्र आर्यमन सिंधिया उज्जैन आए थे. वे भगवान महाकाल की सवारी में शामिल होकर राजाधिराज की पूजा अर्चना भी करी थी

महाकाल सवारी में शामिल हुए  ज्योतिरादित्य सिंधिया

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया राजधानी दिल्ली से हवाई मार्ग के जरिए 4:00 बजे इंदौर पहुंचे, इंदौर एयरपोर्ट से वे सीधे महाकालेश्वर मंदिर के लिए रवाना हुए. भगवान महाकाल की सवारी में शामिल होने के बाद वह 6:30 बजे उज्जैन से इंदौर एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े

भक्ति के रंग में रंगे सिंधिया

बेटे महाआर्यमन सिंधिया के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया महाकाल की भक्ति में झूमते दिखाए। उन्होंने भोले बाबा की जयकार के नारे भी लगाए। इस दौरान महाआर्यमन सिंधिया ने डमरू बजाया तो ज्योतिरादित्य सिंधिया झांझ बजाते हुए दिखाई दिए। पिता और पुत्र ने सिंधिया राजवंश की 250 साल से चली आ रही परम्परा का निभाया। बता दें कि ऐसी परंपरा है कि सिंधिया परिवार का मुखिया महाकाल की शाही सवारी में शामिल होता है।

चंद्रमौलेश्वर का किया पूजन

सिंधिया अपने बेटे के साथ राजसी सवारी की पूजा करने के लिए पहुंचे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सत्यनारायण मंदिर के पास पालकी में सवार भगवान चंद्रमौलेश्वर का पूजन किया। भगवान महाकाल चंद्रमौलेश्वर, शिवतांडव, उमा-महेश, होलकर स्टेट का मुखारबिंद, घटाटोप मुखौटा, सप्तधान मुखारबिंद और मनमहेश स्वरूप में पालकी में सवार होकर निकले। बता दें कि इस बार शाही सवारी का रूट 7 किलोमीटर रहा।

केंद्रीय मंत्री के साथ उनके बेटे महाआर्यमन सिंधिया  भी सवारी में शामिल होने के लिए आए, दरअसल, सिंधिया राजघराने के 14वें वंशज केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उसी परंपरा का निर्वहन करने के लिए उज्जैन आए थे  जिस परंपरा की शुरुआत सिंधिया काल में हुई थी. 

इस परंपरा का निर्वहन कर रहा सिंधिया परिवार

महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी संजय गुरु बताते हैं कि 250 साल पहले सिंधिया घराने के राणोंजी सिंधिया ने महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. इसके बाद भगवान महाकाल की सवारी का क्रम फिर से शुरू हुआ था. उसी समय से मराठा साम्राज्य सिंधिया राज परिवार के किसी न किसी सदस्य का भगवान महाकाल की सवारी में शामिल होने का क्रम शुरू हुआ था. इसी परंपरा का सिंधिया परिवार आज भी निर्वहन कर रहा है.

सिंधिया राजघराने ने उज्जैन को बनाया था राजधानी

महाकालेश्वर मंदिर के महेश पुजारी के मुताबिक, सिंधिया राजघराने के पूर्वज महाराष्ट्र से निकाल कर मालवा की ओर आए तो उन्होंने अपनी पहली राजधानी उज्जैन को बनाया था. उज्जैन के राजा अनादि काल से भगवान महाकाल माने जाते हैं. 

इसलिए सिंधिया परिवार ने अपना महल भी उस समय उज्जैन की सीमा के बाहर केडी पैलेस इलाके में बनाया था. सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य कई दशकों से उज्जैन की सीमा में रात्रि विश्राम करने के लिए नहीं रुका है.

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