दक्षिण एशिया में बांग्लादेश के बाद अब म्यांमार में भी कूटनीतिक स्तर पर हलचल देखने को मिल रही है। साल 2021 से अनिश्चिचतता के माहौल में रह रहे म्यांमार की सेना जिस तरह विद्रोही गुटों के हाथों क्षेत्रों पर नियंत्रण खो रही है, उससे चीनी खेमे में निराशा का माहौल है। दो दिन पहले ही जुंटा प्रमुख जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने चीनी एंबेसेडर मा जिआ के क्रेडेंशियल स्वीकार करने के दौरान कहा था कि म्यांमार चीन के साथ अपने रिश्तों को बहुत प्राथमिकता देता है।
इससे पहले, अगस्त के दूसरे हफ्ते में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने म्यांमार का दौरा किया था और इस दौरे में उन्होंने कहा था कि वे जुंटा और विद्रोहियों के बीच हल निकालने की कोशिश के साथ साथ चुनाव कराने के लिए अपनी ओर से मदद भी देंगे। जिस वक्त चीनी प्रतिनिधिमंडल म्यांमार में था उसी वक्त अमेरिकी अधिकारी म्यांमार के विपक्ष से वॉशिंगटन डीसी में मिल रहे थे। अमेरिका की ओर से कहा गया कि वे मिलिट्री शासन पर दबाव डालेंगे और जनता की चुनी हुई सरकार की दिशा में काम करेंगे। जानकार कहते हैं कि अब जबकि बांग्लादेश में अमेरिका विरोधी हसीना सरकार नहीं है, ऐसे में अमेरिका म्यांमार को लेकर सक्रिय रोल निभा सकता है।
म्यांमार में चीन के प्रति भरोसा कम
म्यांमार में गठबंधन के लड़ाकों ने हाल ही में म्यांमार चीन सीमा के पास के क्षेत्र लैशियों को जब्त किया है। इस बीच जुंटा लीडर्स के मन में चीन के प्रति भरोसा भी कम हुआ है, हालांकि ये अलग बात है कि साल 2021 के तख्तापलट के बाद उन्होंने चीन को एक भागीदार के तौर पर अपनाया भी। चीन के म्यांमार में बड़े आर्थिक हित हैं। वहां चीन की ओर से माइंस, तेल, गैस पाइपलाइन और चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे समेत बुनियादी ढांचे में काफी निवेश किया है। जानकार कहते हैं कि आने वाले वक्त में म्यांमार जियो पॉलिटिक्स का नया केंद्र बन सकता है, जिसमें चीन और अमेरिका दोनों की सक्रिय भूमिका दिख सकती है।