लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस आमने-सामने हैं. एक तरफ जहां बीजेपी राहुल गांधी को लेकर हमलावर है तो वहीं कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर निशाना साध रही है. इसी कड़ी में बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव न लड़ने को लेकर कहा कि उन्हें पता है कि वो वहां से हार जाएंगे, इसीलिए भाग रहे हैं.
बीजेपी प्रवक्ता आरपी सिंह ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा, “ये साफ दिख रहा है कि कितना डर है. वह (राहुल गांधी) अमेठी से चुनाव लड़ने से भाग रहे हैं लेकिन ये भी तय है कि राहुल गांधी वायनाड से भी चुनाव हारेंगे.” वहीं, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, “राहुल गांधी अपनी सीट या राज्य बदल सकते हैं लेकिन उनकी हार निश्चित है. जनता ठगा हुआ महसूस कर रही है.”
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री गिरराज सिंह ने कहा, “उन्हें अमेठी के लोगों पर भरोसा नहीं है. इस जगह ने हमेशा इंदिरा गांधी और उनके परिवार को सम्मान दिया है, लेकिन पिछले 5 वर्षों में उन्होंने (कांग्रेस पार्टी) केवल अमेठी के लोगों का अपमान किया है. उन्हें वायनाड पर भरोसा है क्योंकि इस जगह ने अल्पसंख्यक बहुसंख्यक हैं.”
कांग्रेस ने बीजेपी से पूछे ये सवाल
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि हमें खुशी है कि प्रधानमंत्री ने अपने विभिन्न दौरों और कार्यक्रमों के बीच आज की सुबह काजीरंगा जाने के लिए समय निकाला. यह एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यान है. इसे लेकर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की गहरी रूचि थी. लेकिन, काजीरंगा से अलग, भारत के पूर्वोत्तर के विभिन्न हिस्सों में बढ़ती अस्थिरता और अशांति पर उनके लिए ये चार सवाल हैं:
1. 19 जून, 2020 को चीन पर सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा था कि एक भी चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में नहीं घुसा है. चीन को सार्वजनिक रूप से क्लीन चिट देकर, प्रधानमंत्री ने अपने हाथ बांध लिए हैं. वह चीनी आक्रमण के बाद पूर्व की स्थिति बहाल करने के लिए कार्रवाई करने में विफल रहे हैं. चीनी सैनिक भारतीय नागरिकों को अपने ही चरागाहों तक जाने से रोक रहे हैं और भारतीय पेट्रोलिंग टीम को एलएसी के पास रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों तक नहीं जाने दे रहे हैं – जहां पहले वे बिना किसी रोक-टोक के पेट्रोलिंग किया करते थे. पीएलए सैनिकों द्वारा भारत की जमीन से भारतीय नागरिकों का अपहरण करने के कई मामले सामने आए हैं. 2022 में खुद अरुणाचल प्रदेश के एक बीजेपी सांसद ने आरोप लगाया था कि पीएलए ने 19 साल की मिराम तरोन का अपहरण कर लिया था और दस दिनों तक उसे प्रताड़ित किया. ईटानगर में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने तापोर पुलोम के परिवार से भी मुलाक़ात की थी, जो 2015 में PLA द्वारा कथित तौर पर अपहरण किए जाने के बाद से लापता हैं. मोदीजी, भूल गए क्या? क्या आप उस समय लोगों से झूठ बोल रहे थे?
2. मणिपुर में लगभग एक साल से गृहयुद्ध जैसे हालात हैं. वहां भयंकर हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए हैं, लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष जारी है और प्रशासन ध्वस्त हो चुका है. हिंसा की घटनाएं अभी भी घट रही हैं – 7 मार्च को मोरेह में दो युवाओं की पिटाई की गई, और 8 मार्च को भारतीय सेना के जूनियर कमीशंड ऑफिसर (जेसीओ) कोंसम खेड़ा सिंह को थौबल ज़िले में उनके ही घर से आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया. आम तौर पर देश भर में चुनाव प्रचार के लिए करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग करने वाले प्रधानमंत्री को अभी तक मणिपुर जाने या यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री और राजनीतिक दलों से बात करने का समय क्यों नहीं मिला? क्या वह इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि भारत के लोग उनके लिए इम्फाल का टिकट खरीदेंगे?
3. ईस्टर्न नागालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) ने ‘फ्रंटियर नागालैंड’ के निर्माण में देरी के विरोध में पूर्वी नागालैंड में “सार्वजनिक आपातकाल” घोषित कर दिया है – किसी भी राजनीतिक दल को क्षेत्र में प्रचार करने या चुनाव लड़ने से रोकने की धमकी दी गई है. कोन्याक यूनियन और तिखिर ट्राइबल काउंसिल ने ईएनपीओ की सार्वजनिक आपातकाल की घोषणा को दोहराया है. 8 मार्च को अधिकांश पूर्वी नागालैंड बंद था. स्थिति लगातार तनावपूर्ण होती जा रही है और नागालैंड में कानून के शासन और लोकतंत्र के बाधित होने का ख़तरा है लेकिन केंद्र सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. यह कोई नई बात नहीं है: हमने पहले भी मोदी सरकार को 2015 के नागा समझौते के साथ नागालैंड की राजनीतिक स्थिति को जटिल करते देखा है, जिसे जनता के लिए जारी भी नहीं किया गया है, लागू करना तो दूर की बात है. आज पूर्वी नागालैंड में पैदा हुए हालात को शांत करने के लिए मोदी सरकार क्या कदम उठा रही है?
4. दिसंबर 2023 में कछार में एक पत्थर की खदान में काम करने वाले तीन मजदूरों का ज़ेलियानग्रोंग यूनाइटेड फ्रंट ने अपहरण कर लिया था. पिछले महीने फरवरी के मध्य में, असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा पर चांगलांग ज़िले में फिनबोरो कोलमाइन में काम करने वाले 10 मजदूरों का नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) ने अपहरण कर लिया था. ऐसा लगता है कि आम लोगों के जीवन में बाधा डालने और आतंक का राज कायम करने के लिए अलगाववादी समूहों का फिर से उदय हो रहा है. अलगाववादी हिंसा की बढ़ती घटनाओं से निपटने के लिए मोदी सरकार की क्या रणनीति है?