यूएन के सुधार में सबसे बड़ा रोड़ा है चीन… ऑस्ट्रेलियाई एक्सपर्ट ने ड्रैगन को लगाई लताड़, भारत को शामिल करने को कहा

बीजिंग: भारत संयुक्त राष्ट्र में सुधार की वकालत करता रहा है। भारत ने जापान, जर्मनी और ब्राजील के साथ यूएनएससी में स्थायी सीट का दावा पेश किया है। भारत मांग कर रहा है कि यूएनएससी में अब सुधार किया जाना चाहिए। यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्य अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और यूके हैं। चार सदस्य भारत के समर्थन में हैं। लेकिन चीन भारत को यूएनएससी में देखना नहीं चाहता। भारतीय विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर ने कहा था कि गैर पश्चिमी देश यूएनएससी के सुधारों को रोक रहा है। अब ऑस्ट्रेलिया के थिंक टैंक के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर ने भी चीन पर निशाना साधा।

ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल फुलिलोव ने कहा, ‘यूएनएससी में सुधार हमेशा रुका हुआ लगता है।’ स्ट्रैटन्यूज ग्लोबल की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘यह आश्चर्य की बात है कि ब्रिटेन और फ्रांस दोनों सुरक्षा परिषद में हैं, लेकिन भारत इसमें नहीं है और न ही इंडोनेशिया।’ उनके मुताबिक सुरक्षा परिषद के विस्तार में एक बड़ी बाधा दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका के कुछ देश हैं, जो नहीं चाहते कि उनके क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी इसमें शामिल हों। उन्होंने कहा कि चीन स्थायी सदस्य है, जिसने सुधारों से मुंह मोड़ लिया है। यह बेहद दुखद है।

भारत का साथ दे चीन

उन्होंने कहा कि चीन ग्लोबल साउथ का स्व-घोषित लीडर बना हुआ है। ऐसे में उसे भारत के सुरक्षा परिषद में शामिल होने का समर्थन करना चाहिए। उनसे जब पूछा गया कि पहले क्वाड (अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान) में ऑस्ट्रेलिया नहीं आना चाहता था लेकिन अब आखिर ऐसा क्या बदल गया? इस पर उन्होंने कहा कि चीन बदल गया। उन्होंने कहा कि चीन एक बड़ी ताकत बन गया है। उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ गई है लेकिन इसके साथ ही उसकी आक्रामकता बढ़ गई है। हम कह सकते हैं क्वाड चीन में ही बना है।

भारत के खिलाफ उगला जहर

चीन पर लगातार भारत आरोप लगाता है कि वह UNSC के विस्तार को रोक रहा है। इसके जवाब में चीन ने भारत पर जहर उगला। शनिवार को आई एक रिपोर्ट के मुताबिक यूएनएससी का सुधार कुछ देशों के स्वार्थी हितों को पूरा करने वाला नहीं होना चाहिए। विदेश मंत्री जयशंकर ने रायसीना डायलॉग में बिना चीन का नाम लिए कहा था कि UNSC के विस्तार में सबसे बड़ा रोड़ा कोई पश्चिमी देश नहीं है। उनकी इस टिप्पणी पर चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि सुधार से कुछ लोगों के स्वार्थों की पूर्ति के बजाय सभी सदस्य देशों को लाभ होना चाहिए।

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