वॉशिंगटन: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता को टालने पर भारत ने जुबानी हमला तेज कर दिया है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से लेकर संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत रुचिरा कंबोज ने वर्तमान स्थायी सदस्यों खासकर चीन को जमकर सुनाया है। जयशंकर ने चीन का नाम लिए बिना कहा कि भारत की स्थायी सदस्यता की राह में रोड़ा कोई पश्चिमी देश नहीं है। वहीं जुबानी वार के बीच भारत ने वित्तीय रूप से भी संयुक्त राष्ट्र को करारा जवाब दिया है। भारत ने 1 फरवरी को घोषित किए गए अंतरिम बजट में संयुक्त राष्ट्र को दी जाने वाली मदद को आधा कर दिया है। भारत ने पिछले साल 382 करोड़ रुपये की मदद की थी, वहीं इस साल इसे घटाकर 175 करोड़ रुपये कर दिया है।
भारत ने 1 फरवरी को घोषित अंतरिम बजट में संयुक्त राष्ट्र में अपने योगदान को 50 प्रतिशत से अधिक घटाने का ऐलान किया है। संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की वकालत करने वाली भारत सरकार, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रगति की कमी से निराश है। यूएन के एक हिस्से यूएनएससी में पांच स्थायी सदस्य हैं – अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस और फ्रांस और 10 गैर-स्थायी सदस्य हैं। यह वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है। दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत, यूएनएससी में स्थायी प्रतिनिधित्व के लिए प्रयास कर रहा है, लेकिन सफल नहीं हो पाया है।
संयुक्त राष्ट्र सुधारों पर जयशंकर ने सुनाया
संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान संरचना से भारत का यह असंतोष जापान, जर्मनी और ब्राजील जैसे अन्य देशों द्वारा भी साझा किया जाता है। इन देशों का मानना है कि सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी की बदलती वैश्विक शक्ति की स्थिति के अनुकूल होना चाहिए। विश्लेषकों का कहना है कि भारत की ओर से दो करोड़ डॉलर की बजट में कटौती हालांकि प्रतीकात्मक है। इससे यूएन के संचालन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने की उम्मीद नहीं है, जिसका बजट 3.4 बिलियन डॉलर है। इसके बाद भी यह सुधारों की दिशा में प्रगति की कमी के प्रति भारत की हताशा को दिखाता है।
गत 22 फरवरी को रायसीना डायलॉग के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी, तो उसके लगभग 50 सदस्य थे, लेकिन अब यह संख्या चार गुना हो गई है। जयशंकर ने कहा कि बदलते परिदृश्य के अनुकूल होना सामान्य ज्ञान है। वैश्विक संकटों के प्रबंधन में संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता संदिग्ध रही है। इसने रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास संघर्ष जैसे चल रहे संघर्षों को सुलझाने में फेल साबित हुआ है। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन पर आम सहमति बनाने या ठोस कार्रवाई करने में विफल रहा है।
चीन भारत का क्यों कर रहा है विरोध?
कोविड-19 महामारी के दौरान, जब दुनिया को समर्थन की आवश्यकता थी, तो संयुक्त राष्ट्र उतना सक्रिय नहीं था जितना अपेक्षित था। इसके विपरीत, भारत जरूरत के समय छोटे देशों की सहायता के लिए आगे आया। भारत के विदेश मंत्री, जयशंकर ने बताया कि कुछ देशों ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अपने फायदे के लिए हेरफेर किया है। उन्होंने चीन का नाम लिए बिना यह निशाना साधा। जयशंकर ने यह भी जोर देकर कहा कि जबकि दुनिया की कई समस्याओं के लिए पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की सबसे बड़ी बाधा चीन है। विश्लेषकों का कहना है कि चीन नहीं चाहता है कि एशिया का कोई और देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बने ताकि उसका दबदबा बना रहे।