म्यूनिख: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की भारत लंबे समय से चली आ रही मांग को बार-बार अनसुना किया जा रहा है। भारत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा चीन और उसका गुलाम पाकिस्तान बने हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने हाल ही में चीन से लेकर अमेरिका तक को जमकर सुना दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग की। भारत की सुधार के मांग के बाद पाकिस्तान इस विवाद में कूद पड़ा और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों का विरोध कर दिया। अब पाकिस्तान और उसके आका चीन को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने करारा जवाब दिया है। उन्होंने दोनों का नाम लिए बिना कहा कि जो देश सुधारों का विरोध कर रहे हैं, वे उन बदलावों को खारिज कर रहे हैं जो हाल के दशक में हुई हैं। उनका इशारा भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होने का था।
जयशंकर ने जर्मन मीडिया के साथ बातचीत में कहा कि संयुक्त राष्ट्र की शुरुआत 50 सदस्यों से हुई थी जो अब बढ़कर लगभग 200 सदस्यों तक पहुंच गई है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र का प्रबंधन नहीं बदला है। पिछले दो दशकों में, दुनिया की शीर्ष 20 या 30 अर्थव्यवस्थाओं के समूह में पर्याप्त बदलाव हुए हैं। भारत, जो कभी ग्यारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, अब पांचवें स्थान पर पहुंच गया है और आने वाले वर्षों में इसके तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है। उन्होंने सुरक्षा परिषद में सुधारों में आ रही बाधा पर कहा कि कई देश सुधारों का विरोध कर रहे हैं और हाल के दशकों में हुए बदलावों को स्वीकार करने में विफल रहे हैं।
रूस को बताया भारत का सच्चा दोस्त
जयशंकर ने कहा कि मुख्य चिंता यह है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था और उसके संस्थानों (संयुक्त राष्ट्र) को कैसे रिफ्रेश करते हैं। हम उसे कैसे पुनर्निर्मित करते हैं और उसमें तथा उसके संस्थानों में सुधार करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को केवल उनके प्रदर्शन में सुधार करने के लिए कहना व्यर्थ है, यदि उनके पास ऐसा करने की क्षमता नहीं है। कोविड महामारी के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि कैसे प्रत्येक राष्ट्र ने अपने स्वयं के हितों को प्राथमिकता दी, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का पतन हो गया। बता दें कि भारत के साथ-साथ जर्मनी भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की मांग कर रहा है। दोनों देशों ने मिलकर जी-4 गुट भी बनाया है।
विश्लेषकों के मुताबिक चीन की कोशिश है कि किसी भी तरह से सुरक्षा परिषद में एशिया से वह ही स्थायी सदस्य बना रहे ताकि उसका दबदबा न केवल इस वैश्विक संगठन में बल्कि ग्लोबल साउथ के देशों में बना रहे। यही वजह है कि वह लगातार भारत की सदस्यता का पाकिस्तान के जरिए विरोध करवा रहा है। यही नहीं वह कुछ अन्य देशों को भी इसमें शामिल कर चुका है। वहीं भारतीय विदेश मंत्री ने रूस को लेकर पूछे एक सवाल के जवाब में कहा कि अगर हम स्वतंत्र भारत के इतिहास को देखें तो रूस ने हमारे हितों को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाया है।