कोलकाता। राष्ट्रीय अनुसूची आयोग(एनसीएससी) जमीनी स्तर पर जानकारी जुटाने के बाद सक्रिय है। संदेशखाली की यात्रा के 24 घंटे के भीतर राष्ट्रपतिभवन को एनसीएससी की पूर्ण पीठ ने रिपोर्ट भेज दी है, जिसमें हर कदम पर बंगाल पुलिस प्रशसान द्वारा असहयोग से लेकर जांच में लापरवाही समेत कई और आरोप लगाकर बंगाल में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की गई है।
महिलाओं का यौन उत्पीड़न
अरुण हलदर ने बताया कि आयोग ने संदेशखाली में टीएमसी समर्थकों द्वारा महिलाओं के कथित उत्पीड़न पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी अपनी रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को संदेशखाली का दौरा किया था।
अनुसूचित आयोग ने राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपी
बताते चलें कि संदेशखाली मामले में अनुसूचित जाति की महिलाओं व लोगों पर अत्याचार का आरोप तृणमूल नेता उत्तम सरदार और तृणमूल नेता शिवप्रसाद हाजरा उर्फ शिबू पर लगा है। अनुसूचित आयोग की टीम गुरुवार संदेशखाली गई थी। क्षेत्र का दौरा करने के बाद अनुसूचित आयोग ने राष्ट्रपति भवन को रिपोर्ट सौंपी। हालांकि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई, लेकिन आयोग के अध्यक्ष अरुण हलदर ने कहा कि वे राष्ट्रपति शासन की मांग करते हैं।
केंद्रीय बल की तैनाती के लिए हाई कोर्ट में याचिका
इधर, संदेशखाली को लेकर फिर से कलकत्ता हाई कोर्ट में जनहित मामला दायर किया गया है। वकील ने मुकदमा दायर करने की अनुमति मांगी। उस क्षेत्र की स्थिति को देखते हुए शीघ्र केंद्रीय बलों की तैनाती का अनुरोध किया गया है। जस्टिस जयमाल्य बागची ने केस दायर करने की इजाजत दे दी है। अगले सोमवार को सुनवाई संभव है।
एसआइटी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
संदेशखाली मामला बंगाल से बाहर ले जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है। याचिका में संदेशखाली घटना की जांच शीर्ष अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआइटी) या सीबीआइ द्वारा कराने की मांग गई है। सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने दायर की है। उनके मुताबिक संदेशखाली से जो ‘भयानक’ जानकारी सामने आई है, उससे बंगाल में निष्पक्ष जांच होना संभव नहीं है।
शाहजहां की पुलिस से मिलीभगत
न्याय के हित में मामले को राज्य से बाहर ले जाया जाना चाहिए। वकील ने कहा कि मुख्य आरोपित शाहजहां शेख अभी भी फरार है। इससे यह समझा जा सकता है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन निष्क्रिय है। आरोप ये भी हैं कि शाहजहां पुलिस से मिले हुए हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआइटी या सीबीआइ से जांच होना जरूरी है। जनहित मामले में आलोक की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा मामले में हाई कोर्ट के तीन रिटायर जजों की एक कमेटी गठित की थी।