समाजवादी पार्टी ने लोकसभा की 16 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी संघमित्रा मौर्या की राजनीतिक नाव को भंवर में डाल दिया है. स्वामी प्रसाद मौर्या अपनी बेटी के सियासी भविष्य के लिए कौन सा रास्ता तय करेंगे, यह सवाल राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है. फिलहाल, उनके सामने अपने और बेटी के सियासी भविष्य का सवाल खड़ा है.
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि सपा ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को टिकट देकर स्वामी के सामने दुविधा पैदा कर दी है कि वे अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाएं या पार्टी धर्म का पालन करें. संघमित्रा मौर्या 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट से पहली बार सांसद बनी थी. इस चुनाव में स्वामी ने उन्हें जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी लेकिन 2022 के चुनाव में अचानक स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी छोड़कर सपा में चले गए और बीजेपी के खिलाफ कुशीनगर से चुनाव लड़े.
तो स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने खड़ा होगा धर्म संकट?
उस समय संघमित्रा ने अपनी पार्टी बीजेपी का साथ न देकर पिता के पक्ष में प्रचार किया था. इस बात का स्थानीय स्तर पर काफी विरोध होने के बावजूद संघमित्रा को पार्टी से नहीं निकाला गया. वह अभी बीजेपी में खूब सक्रिय नजर आ रही हैं. ऐसे में बीजेपी अगर संघमित्रा को वहां से टिकट देती है तो संघमित्रा और धर्मेंद्र आमने-सामने होंगे. ये देखना दिलचस्प होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्या क्या करेंगे, वे बेटी का साथ देंगे या पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा साबित करते हुए धर्मेंद्र यादव के पक्ष में प्रचार करेंगे. दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्या की एक के बाद एक सनातन धर्म पर टिप्पणियों से धर्म प्रेमियों में खासी नाराजगी है.
‘राजनीतिक दुविधा के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य खुद जिम्मेदार’
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि स्वामी प्रसाद और उनकी बेटी संघमित्रा की राजनीति बड़ी दुविधा भरी है. इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं स्वामी प्रसाद खुद ही हैं. अच्छा खासा वे बीजेपी में कैबिनेट मंत्री थे. लेकिन 2022 में उन्होंने बीजेपी छोड़कर पार्टी के सामने काफी बड़ा संकट खड़ा किया. उनकी बेटी ने भी उनका साथ दिया. वो अपनी पार्टी छोड़ सपा कार्यकर्ता बन गई थीं. वहां तक तो फिर ठीक था लेकिन बाद में उन्होंने सनातन के खिलाफ जो बयानबाजी की है, वह उनके लिए और भी घातक होती जा रही है. उसको दोनों तरफ के लोग नहीं पचा पा रहे हैं.