सोमालियाई तट पर अपहृत जहाज MV Lila Norfolk को बचान के लिए भारतीय नौसेना (Indian Navy) का खतरनाक युद्धपोत INS Chennai भेजा गया था. इसमें मार्कोस कमांडो
सवार थे. आईएनएस कोलकाता क्लास का स्टेल्थ गाइडेड मिसाइल डेस्ट्रॉयर है. 2016 से नौसेना की ताकत बना हुआ है.
इस जंगी जहाज का ध्येय वाक्य है शत्रु संहारक. 7500 टन डिस्प्लेसमेंट वाले इस जंगी जहाज की लंबाई 535 फीट है. बीम 57 फीट की है. अधिकतम 56 km/hr की गति से चल सकता है. छह तरह के आधुनिक सेंसर्स से लैस. तीन तरह के इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और डेकॉय सिस्टम से लैस. 32 बराक-8 और 16 ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस है.
एक ओटो मेलारा 76 mm नेवल गन, 4 एके-630 CIWS, 4 टॉरपीडो ट्यूब्स, 2 आरबीयू-6000 एंटी-सबमरीन रॉकेट लॉन्चर से लैस. ये ऐसे गन सिस्टम हैं जो चुटकियों में दुश्मन को छलनी कर सकते हैं. इनकी मारक क्षमता के आगे कोई भी हथियार कमजोर पड़ जाता है. इस पर दो सी किंग या ध्रुव हेलिकॉप्टर तैनात हो सकते हैं.
भारतीय Navy Seals मार्कोस कमांडो फोर्स को भेजा रेस्क्यू के लिए
मार्कोस कमांडो को भारत का नेवी सील्स भी कहते हैं. इन्हें तैयार तो भारतीय नौसेना के लिए किया जाता है लेकिन ये जमीन और आसमान में भी दुश्मन से लोहा लेने के लिए ट्रेन्ड होते हैं. इनकी ट्रेनिंग अमेरिकी नेवी सील्स की तरह होती है. मार्कोस फोर्स में फिलहाल 2000 कमांडो हैं. हालांकि आधिकारिक संख्या का कभी खुलासा नहीं किया जाता.
यह फोर्स 1987 में बनाई गई थी. इन्हें दुनिया के सभी आधुनिक हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है. इनके पास बेहतरीन स्नाइपर्स होते हैं, जो दूर से ही दुश्मन की माथे के बीचो-बीच गोली मार देते हैं. ये कई तरह के असॉल्ट राइफल्स चलाने में माहिर होते हैं.
इन्हें मगरमच्छ और दाढ़ीवाली फौज भी कहा जाता है. मार्कोस कमांडो ने देश में कई बड़े मिशन किए हैं. जैसे ऑपरेशन कैक्टस, ऑपरेशन लीच, ऑपरेशन पवन, करगिल युद्ध, ऑपरेशन ब्लैक टॉरनैडो, ऑपरेशन साइक्लोन, कश्मीर में लगातार आतंकरोधी मिशन में तैनात.
80% नहीं बन पाते मार्कोस कमांडो, हेल्स वीक पार करना होता है जरूरी
इनकी ट्रेनिंग के लिए उन्हीं जवानों को चुना जाता है, जो अपनी शुरुआती 20 साल की उम्र में होते हैं. इनकी ट्रेनिंग, सिर्फ समुद्र में नहीं होती. इसके अलावा राजस्थान, तवांग, सोनमर्ग और मिजोरम में होती है. अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग कराई जाती है. इन्हें हर तरह के माहौल में छिपना आता है. ये दिखते ही नहीं.
जो जवान मार्कोस बनना चाहता है, पहले उसे तीन दिन की फिजिकल और एप्टीट्यूट टेस्ट देना होता है. 80 फीसदी जवान तो यहीं से बाहर निकल जाते हैं. इसके बाद शुरू होता नरक का हफ्ता (Hell’s Week). जिसमें भयानक और खतरनाक ट्रेनिंग होती है. शुरुआत में कई दिनों तक जवानों को सोने नहीं दिया जाता. या कम सोने का समय मिलता है.