पूर्णिमा श्राद्ध कब? जानें चंद्रग्रहण के दौरान कब कर सकते हैं श्राद्ध

इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत एक विशेष खगोलीय घटना के साथ हो रही है। ग्रहण को वैदिक ज्योतिष में एक संवेदनशील और शक्तिशाली काल माना गया है, जिसका प्रभाव धार्मिक क्रियाकलापों और ऊर्जा प्रवाह पर भी देखा जाता है।

हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा जितनी महत्वपूर्ण मानी जाती है, उतनी ही श्रद्धा पूर्वजों यानी पितरों की आराधना को भी दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि पितर हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। हर साल श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष के 15 दिनों के दौरान, पितृलोक से पितर धरती पर अपने वंशजों से तर्पण और श्रद्धा की अपेक्षा लेकर आते हैं। इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और दान के माध्यम से उन्हें संतुष्ट किया जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे आशीर्वाद स्वरूप अपने वंशजों को उन्नति का वरदान देते हैं।

इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत एक विशेष खगोलीय घटना के साथ हो रही है। ग्रहण को वैदिक ज्योतिष में एक संवेदनशील और शक्तिशाली काल माना गया है, जिसका प्रभाव धार्मिक क्रियाकलापों और ऊर्जा प्रवाह पर भी देखा जाता है। ऐसे में पितृ पक्ष की शुरुआत पर ग्रहण का योग कई तरह के संकेत दे सकता है, आध्यात्मिक रूप से भी और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी। आगे जानिए कि इस ग्रहण और पितृ पक्ष के संयोग का आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है

धार्मिक दृष्टि से क्यों है यह समय विशेष?हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है, क्योंकि यह समय पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति का पर्व माना जाता है। हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक 15 दिनों का यह काल पितरों को समर्पित होता है। इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 को पूर्णिमा तिथि से हो रही है, और इसका समापन 21 सितंबर 2025 को सर्व पितृ अमावस्या के दिन होगा।लेकिन इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत एक खास खगोलीय घटना के साथ हो रही है। साल का अंतिम चंद्र ग्रहण भी ठीक उसी दिन पड़ रहा है, यानी 7 सितंबर को। यह एक पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा, जो भारत सहित कई देशों में साफ़ दिखाई देगा। ऐसे में यह संयोग धार्मिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।

कब और कितना प्रभावी रहेगा यह चंद्रग्रहण?

ग्रहण शुरू होगा: 7 सितंबर को रात 9:58 बजे
ग्रहण समाप्त होगा: 8 सितंबर को तड़के 1:26 मिनट पर
ग्रहण की कुल अवधि: लगभग 3 घंटे 29 मिनट
सूतक काल शुरू होगा: 7 सितंबर को दोपहर 12:57 बजे से
सूतक समाप्त होगा: 8 सितंबर को ग्रहण खत्म होने के साथग्रहण का सूतक काल हमेशा ग्रहण शुरू होने से 9 घंटे पहले लग जाता है, खासकर तब जब ग्रहण दृश्य होता है। चूंकि यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखेगा, इसलिए इसका सूतक भी पूरी तरह मान्य होगा।

ग्रहण के दौरान श्राद्ध करना चाहिए या नहीं?हिंदू धर्म में ग्रहण को एक अशुभ खगोलीय घटना माना जाता है। विशेष रूप से जब यह किसी धार्मिक तिथि या पर्व के साथ संयोग बना ले, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस वर्ष 7 सितंबर 2025 को भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्र ग्रहण पड़ रहा है, जो भारत में स्पष्ट रूप से दिखाई देगा। इसी दिन पितृ पक्ष की भी शुरुआत हो रही है, ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या इस दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जा सकता है?ग्रहण से कुछ घंटे पहले सूतक काल लग जाता है, जो कि अत्यंत अशुभ माना जाता है। इस बार सूतक काल 6 सितंबर दोपहर 12:57 बजे से शुरू होकर 8 सितंबर तड़के 1:26 बजे तक चलेगा। इस अवधि में पूजा-पाठ, भोजन, शुभ कार्य और श्राद्ध कर्म वर्जित माने गए हैं। वहीं, पितृ श्राद्ध और तर्पण के लिए दिन का विशेष समय माना जाता है, जिसे कुतुप काल कहा जाता है।

क्या करें भाद्रपद पूर्णिमा के दिन?

कुतुप काल: प्रातः 11:54 बजे से दोपहर 12:44 बजे तक रहेगा।सूतक काल: दोपहर 12:57 बजे से शुरू होगा।इसलिए, श्राद्ध या तर्पण करने का सबसे उत्तम समय दोपहर 12:44 बजे तक का ही होगा, क्योंकि उसके बाद सूतक काल लग जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूतक काल शुरू होने से पहले अगर श्रद्धा और विधिपूर्वक श्राद्ध कर लिया जाए, तो वह पूर्ण रूप से मान्य और फलदायक होता है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए द न्यूज़ लाइट उत्तरदायी नहीं है।

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