सत्ता में वापस आने का दावा कर रही मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता चुनाव लड़ने से पीछे हट रहे हैं, जिसको लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है. स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग के बाद पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने भी चुनाव नहीं लड़ने की बात कही है. अरुण ने पार्टी हाईकमान तक अपना संदेश पहुंचा दिया है.
इससे पहले राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा और दिग्विजय सिंह के भी चुनाव नहीं लड़ने की खबर आई थी. तन्खा ने पत्रकारों से सीधे तौर पर कह दिया कि वे फुलटाइम पॉलिटिशियन नहीं हैं, इसलिए चुनाव लड़ने की बात ही नहीं उठती है. दिग्विजय सिंह ने अब तक खुलकर चुनाव लड़ने पर कुछ नहीं कहा है.
सूत्रों के मुताबिक जिस तरह से बड़े नेता मैदान छोड़ रहे हैं, उससे बीजेपी को फ्रंटफुट पर आने का मौका मिल सकता है. हालांकि, कांग्रेस इस मुद्दे को ज्यादा तरजीह नहीं देना चाहती है. कांग्रेस के प्रवक्ता नितिन दुबे कहते हैं- टिकट की घोषणा के बाद ही यह तय होगा कि कौन चुनाव लड़ेगा और कौन नहीं?
स्क्रीनिंग कमेटी में 100 नाम तय, विरोध के बाद कई नाम होल्ड
3 अक्टूबर को कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक दिल्ली के 15 रकाबगंज गुरुद्वारा के वार रूम में हुई. बैठक में कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी के प्रमुख जितेंद्र सिंह, प्रभारी रणदीप सुरजेवाला, कमलनाथ, गोविंद सिंह और अन्य सदस्य शामिल हुए.
सूत्रों के मुताबिक बैठक में 100 नामों पर सहमति बन गई है, जिसकी सूची पितृपक्ष के बाद जारी कर दी जाएगी. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक स्क्रीनिंग कमेटी में मालवा-निमाड़ और विंध्य के कुछ सीटों को लेकर पेंच फंस गया.
इन इलाकों के दिग्गज नेताओं ने अपने-अपने करीबियों को टिकट दिलाने की सिफारिश की, जिस पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने वीटो लगा दिया. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक स्क्रीनिंग कमेटी में इन सीटों पर उम्मीदवारों के नाम होल्ड कर दिए गए.
मालवा में जीतू पटवारी, निमाड़ में अरुण यादव और विंध्य में अजय सिंह अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट देने की पैरवी कर रहे हैं.
अब जानिए, चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाह रहे हैं बड़े नेता?
1. दिग्विजय परिवार से 3 दावेदार, इसलिए खुद पीछे- बात पहले मध्य प्रदेश के 10 साल तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह की. सूत्रों के मुताबिक दिग्विजय सिंह भी इस बार चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. दिग्गी अपना आखिरी चुनाव 2019 में भोपाल लोकसभा सीट से लड़े थे, जहां वे बीजेपी के प्रज्ञा ठाकुर से हार गए.
दिग्गी के चुनाव नहीं लड़ने की 2 बड़ी वजह है. 1. उनके परिवार के 3 नेता टिकट के दावेदार हैं और 2. दिग्विजय के कंधों पर 66 सीट जिताने की जिम्मेदारी है.
दिग्विजय सिंह के परिवार से उनके बेटे जयवर्धन सिंह राघोगढ़ सीट से विधायक हैं. उनका टिकट इस बार भी कन्फर्म माना जा रहा है. इसके अलावा दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा से विधायक हैं. लक्ष्मण को भी पार्टी टिकट दे सकती है.
इसके अलावा दिग्विजय सिंह के भतीजे प्रियव्रत सिंह भी खिलचीपुर से विधायक हैं. उनका टिकट लगभग कन्फर्म माना जा रहा है. इन दिनों के अलावा अगर दिग्विजय खुद चुनाव लड़ते हैं, तो पार्टी के भीतर बड़ा मुद्दा बन जाएगा.
पहले ही इन तीनों को लेकर पार्टी फोरम में कई बार सवाल उठ चुका है. उदयपुर डिक्लेरेशन में कांग्रेस ने एक परिवार-एक टिकट की बात भी कही थी.
वहीं दिग्विजय के चुनाव नहीं लड़ने के पीछे दूसरी वजह 66 सीट जिताने की जिम्मेदारी है. कमलनाथ ने 3 बार से लगातार हारने वाली 66 सीटों को जिताने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह को सौंपी है. इन सीटों का समीकरण चुनाव में दिग्विजय को ही तय करना है.
इनमें अधिकांश सीटें मालवा, विंध्य और नर्मदांचल की है. दिग्विजय लगातार इन इलाकों का दौरा कर रहे हैं.
2. विवेक तन्खा हार चुके हैं 2 लोकसभा चुनाव- 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुके विवेक तन्खा ने भी चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. तन्खा ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा अपने जन्मदिन पर की. उन्होंने पत्रकारों से कहा कि पार्टी टिकट देगी भी, तो चुनाव नहीं लड़ूंगा.
तन्खा ने कहा कि मेरे पास कई और भी काम हैं. कोर्ट-कचहरी जाना रहता है, इसलिए मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता है. तन्खा कांग्रेस के जी-23 गुट के सदस्य रहे हैं और पार्टी के भीतर चुनाव की पैरवी कर चुके हैं. जी-23 को खत्म करने के लिहाज से कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजा था.
मध्य प्रदेश कांग्रेस के एक नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं- विवेक तन्खा की राजनीति दिल्ली वाली है और पैराशूट पॉलिटिक्स के सहारे राजनीति करते हैं. जबलपुर में उनके चुनाव लड़ने या न लड़ने से पार्टी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. जबलपुर में कांग्रेस काफी मजबूत है.
जबलपुर की 8 सीटों में से 4 सीट अभी कांग्रेस के कब्जे में है. यहां के 2 नेता तरुण भनोट और लखन घनघोरिया कमलनाथ सरकार में मंत्री रह चुके हैं. पिछले साल नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस ने यहां बड़ी जीत हासिल की थी. कांग्रेस के जगत बहादुर अन्नु 18 साल बाद नगर निगम में कांग्रेस का परचम फहराया था.
3. पुराने वादों से खफा हैं अरुण यादव?- मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव के भी चुनाव नहीं लड़ने की खबर सामने आ रही है. कहा जा रहा है कि यादव ने संगठन महासचिव को इस बारे में इत्तेलाह भी कर दिया है. हालांकि, उनके नहीं लड़ने को लेकर आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं की गई है.
यादव के एक करीबी नेता के मुताबिक चुनाव न लड़ने की बड़ी वजह पिछला वादा है. 2018 में अरुण यादव निमाड़ के किसी सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें शिवराज के खिलाफ बुधनी से मैदान में उतार दिया गया. हारने पर भी उन्हें एडजस्ट करने का भरोसा दिया गया था, लेकिन वो नहीं हुआ.
अरुण यादव भी कई बार अपने इस दर्द को बयां कर चुके हैं. उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें भी कई बार लगी, लेकिन वे कांग्रेस में रहने की बात दोहराते रहे. यादव गुट का कहना है कि 2018 से ही हाईकमान उनकी अनदेखी कर रहा है.
2018 में जब सरकार बनने का माहौल बन गया, तो उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. सरकार बनने के बाद भी उन्हें कोई पद न तो दिल्ली में दिया गया और न ही मध्य प्रदेश में. एक वक्त उन्होंने कमलनाथ के 2 पद पर रहने को लेकर मोर्चा खोल दिया था, जिसके बाद नेता प्रतिपक्ष का पद गोविंद सिंह को मिला.
हालांकि, उनके भाई सचिन यादव को जरूर कमलनाथ कैबिनेट में शामिल किया गया था. सचिन के इस बार भी कसरावद सीट से चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है. कसरावद यादव परिवार का गढ़ माना जाता है. अरुण के पिता सुभाष यादव यहां से विधायक चुने जाते थे, जो दिग्विजय सरकार में उपमुख्यमंत्री भी रहे हैं.
बीजेपी बोली- हार के डर से मैदान छोड़ रहे नेता
कभी कमलनाथ के करीबी और अब बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कांग्रेस की अंदरुनी सियासत पर कटाक्ष किया है. सलूजा के मुताबिक हारने के डर से कांग्रेस के नेता चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. सभी नेता जनता का आक्रोश देख चुके हैं.
सलूजा आगे कहते हैं- बीजेपी ने 79 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है, लेकिन कांग्रेस सूची जारी करने से हिचकिचा रही है. आखिर कुछ तो वजह है?
कांग्रेस के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह टिकट और चुनाव लड़ने के सवाल पर पत्रकारों से कहते हैं- इस तरह की मीटिंग गोपनीय होती है. बाकी उम्मीदवार कौन होगा, कौन नहीं… इसकी घोषणा जल्द कर दी जाएगी.
इन बड़े नेताओं का चुनाव लड़ना लगभग तय
कमलनाथ, सुरेश पचौरी, जीतू पटवारी, अजय सिंह, तरुण भनोट, कमलेश्वर पटेल और कांतिलाल भूरिया का चुनाव लड़ना लगभग तय माना जा रहा है. पचौरी और अजय सिंह को छोड़कर बाकी के सभी नेता अभी विधायक भी हैं.
कमलनाथ के छिंदवाड़ा सामान्य सीट से ही लड़ने की चर्चा है. अभी इस सीट से वे विधायक भी है. छिंदवाड़ा जिले की सभी सीटों पर अभी कांग्रेस का कब्जा है. बीजेपी ने छिंदवाड़ा सीट से विवेक बंटी साहू को मैदान में उतारा है.
जीतू पटवारी भी सीटिंग सीट राऊ से चुनाव लड़ सकते हैं. इसी तरह कांतिलाल भूरिया को भी झाबुआ और कमलेश्वर पटेल को सिहावल से मैदान में उतरने की बात कही जा रही है. तरुण भनोट भी जबलपुर पश्चिम से मैदान में उतर सकते हैं. चारों सीटिंग विधायक भी हैं.
अजय सिंह के परंपरागत चुरहट से चुनाव लड़ने की चर्चा है. सिंह चुरहट में लगातार सक्रिय भी हैं. 2018 में वे यहां से चुनाव हार गए थे. वहीं भोजपुर सीट से सुरेश पचौरी के मैदान में उतरने की बात कही जा रही है. पचौरी इस सीट से 2013 और 2018 में चुनाव हार चुके हैं.
यहां से वर्तमान में बीजेपी के सुरेंद्र पटवा विधायक हैं. पटवा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के सियासी वारिस भी हैं.
बीजेपी ने इन दिग्गजों को उतारा है मैदान में
मध्य प्रदेश को लेकर बीजेपी ने उम्मीदवारों की 2 सूची जारी कर दी है. बीजेपी ने मध्य प्रदेश के चुनावी रण में बड़े दिग्गजों को मैदान में उतार दिया है. दिमनी से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर, नरसिंहगढ़ से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और निवास से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मैदान में हैं.
इसके अलावा इंदौर-1 से बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, सीधी से सांसद रीति पाठक, जबलपुर पश्चिमी से सांसद राकेश सिंह, गाडरवारा से सांसद उदय प्रताप सिंह और सतना से सांसद गणेश सिंह को भी बीजेपी ने चुनाव मैदान में उतारा है.
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, बीजेपी अध्यक्ष वीडी शुक्ला और केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक के भी चुनाव लड़ने की चर्चा है.