‘तलाक दे तो रहे हो इताब-ओ-कहर के साथ, मेरी जवानी भी लौटा दो मेरी महर के साथ’, सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर SG ने पढ़ा शेर

एक साथ 3 तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाले कानून को चुनौती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि ट्रिपल तलाक कानून के तहत कितने मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई हैं. कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि मुस्लिम वूमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) एक्ट, 2019 के तहत कितनी एफआईआर और चार्जशीट फाइल की गई हैं, इसका ब्योरा दें. अब इस मामले में अगली सुनवाई 26 मार्च को होगी.

इस बारे में याचिकाएं 2019 से लंबित हैं. इनमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक साथ 3 तलाक को अमान्य करार दे चुका है. सरकार को इसके लिए सजा का कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं थी. एक साथ 3 तलाक बोलने के लिए 3 साल की सजा बेहद सख्त कानून है. पति के जेल चले जाने से पत्नी की कोई मदद नहीं होगी.

सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. उन्होंने शायर साजिद सजनी लखनवी का शेर पढ़ते हुए कहा, ‘तलाक दे तो रहे हो इताब-ओ-कहर के साथ, मेरी जवानी भी लौटा दो मेरी महर के साथ.’ आमतौर पर माना जाता है कि ये शेर पाकिस्तान की मशहूर शायर परवीन शाकिर का है, लेकिन रेख्ता पर मौजूद जानकारी के अनुसार यह शेर साजिद सजनी लखनवी का है. उन्होंने याचिकाओं में सजा को लेकर उठाई गई आपत्तियों पर कहा कि तीन तलाक में अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है, जबकि महिलाओं की रक्षा करने वाले कई अन्य कानून बड़ी सजाओं का प्रावधान करते हैं. उन्होंने कहा कि किसी गतिविधि को दंडित करना पूरी तरह से विधायी नीति के दायरे में है.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील निजाम पाशा ने कहा कि सिर्फ तीन तलाक बोलने को अपराध घोषित कर दिया गया है. एसजी मेहता ने इस पर कहा कि आईपीसी की धारा 506 कानून हैं, जिनमें कुछ शब्दों को लेकर सजा का प्रावधान है. इस दौरान सीजेआई संजीव खन्ना ने सरकार से सवाल किया कि अगर तीन तलाक कहने से भी पति-पत्नी का रिश्ता टूटता नहीं है और वो अलग नहीं होते हैं तो दंड क्यों लगाया गया.

उन्होंने कहा, ‘अगर इस तरह के तलाक को मान्यता नहीं है और पति-पत्नी का रिश्ता बरकरार रहता है और सेपरेशन नहीं होता है. फिर आपने सिर्फ तलाक बोलने पर दंड लगा दिया. हमें पूरे देश में तीन तलाक कानून के तहत दर्ज एफआईआर की लिस्ट चाहिए.’ 

एडवोकेट निजाम पाशा ने कहा कि इस तरह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव हो रहा है क्योंकि किसी और समुदाय में पत्नी को छोड़ने को अपराध नहीं माना जाता है. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक और वकील सीनियर एडवोकेट एमआर शमशाद ने कहा कि इस मामले को पहले से मौजूद घरेलू हिंसा कानून के तहत देखा जा सकता है और अलग से कानून बनाने की जरूरत नहीं है. उन्होंने तर्क दिया, ‘शादीशुदा रिश्तों में अगर पत्नी को मारा-पीटा जाए तो महीनों तक एफआईआर दर्ज नहीं होतीं, लेकिन यहां सिर्फ तलाक बोलने पर मामले दर्ज हो रहे हैं.’ इस पर एसजी मेहता ने कहा कि किसी और समाज में ऐसी प्रथा नहीं है.

इस बीच सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा, ‘मुझे पता है कि कोई वकील ये नहीं कह रहा है कि ये प्रथा ठीक है, लेकिन उनका कहना ये है कि क्या इस प्रथा को प्रतिबंधित करने के बाद भी इसे अपराध घोषित किया जा सकता है, जबकि तीन तलाक बोलने से तलाक नहीं हो सकता है.’  

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