महाकुंभ: क्या है नागा साधु बनने की अंगतोड़ प्रक्रिया, खींची जाती कौन सी नस, क्या होती है उम्र

इस महाकुंभ में 800 के आसपास संन्यासी नागा साधु बनेंगे. कुंभ के अवसर पर ही संन्यासियों को नागा साधु बनाया जाता है. नागा साधु बनने की आखिरी प्रक्रिया अंगतोड़ होती है. ये कठिन और विशेष प्रकार की प्रक्रिया है, जिसे नागा साधु बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है. ये प्रक्रिया व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़ा त्याग और तपस्या मांगती है. क्या होता है अंगतोड़, जिसके बाद की कोई नागा साधु बन पाता है.

क्या होता है अंगतोड़, जिसे करके ही कोई शख्स नागा साधु बनता है. ये एक कठिन और विशेष प्रकार की प्रक्रिया है, जिसे नागा साधु बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है. यह प्रक्रिया व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़ा त्याग और तपस्या मांगती है. अंगतोड़ का शाब्दिक अर्थ है “अंगों को तोड़ना” लेकिन नागा साधु बनने की स्थिति में ये अलग होती है.

वैसे यहां अंगतोड़ प्रक्रिया का अर्थ अंग तोड़ना नहीं है. यहां इसका मतलब सांसारिक बंधनों से खुद को पूरी तरह मुक्त करना है. इस प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति सांसारिक सुख-सुविधाओं, परिवार, और भौतिक वस्तुओं से पूरी तरह से अलग हो जाता है. अपने पूरे जीवन को आध्यात्मिक साधना और तपस्या के लिए समर्पित कर देता है.

अंगतोड़ की प्रक्रिया में निम्नलिखित प्रमुख चरण
संपूर्ण त्याग –

साधु बनने की प्रक्रिया में व्यक्ति को अपने परिवार, संपत्ति, और सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त होना पड़ता है. यह एक प्रकार का आध्यात्मिक त्याग है.दीक्षा – नागा साधु बनने के लिए गुरु से दीक्षा लेनी पड़ती है. दीक्षा के दौरान व्यक्ति को कुछ विशेष प्रकार की विधियों और मंत्रों का ज्ञान दिया जाता है.तपस्या और कठिन साधना – अंगतोड़ के बाद साधु को कठिन तपस्या करनी होती है. इसमें कठिन योग, ध्यान, और साधना शामिल होती है, जिससे व्यक्ति अपनी आत्मा को शुद्ध और शक्तिशाली बनाता है.अखंड ब्रह्मचर्य – नागा साधु बनने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है. यह उनकी साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.नग्नता का पालन – नागा साधु बनने के बाद साधु अपने शरीर पर कोई वस्त्र नहीं धारण करते. संपूर्ण नग्नता का पालन करते हैं. यह सांसारिक बंधनों और भौतिक वस्त्रों से मुक्त होने का प्रतीक है.हां अंगतोड़ संस्कार में उसके जननांग की एक नस खींची जाती है. साधक नपुंसक बन जाता है. इसके बाद सभी शाही स्नान के लिए जाते हैं. डुबकी लगाते ही ये नागा साधु बन जाते हैं.

अंगतोड़ की प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति एक उच्च आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त करता है. नागा साधु के रूप में अपनी साधना को जारी रखता है. ये प्रक्रिया बहुत कठिन होती है. केवल वही व्यक्ति इसे सफलतापूर्वक पूरा कर पाते हैं जो गहरी आस्था और दृढ़ निश्चय रखते हैं.

कहां से इनकी उत्पत्ति

नागा साधुओं की उत्पत्ति का संबंध आमतौर पर आदि शंकराचार्य से जोड़ा जाता है. आदि शंकराचार्य (8वीं शताब्दी) ने सनातन धर्म को संगठित करने और वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना के लिए चार प्रमुख मठों (पीठों) की स्थापना की थी. उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए विभिन्न साधु संप्रदायों का गठन किया, जिनमें से एक नागा साधुओं का भी था। नागा साधुओं को धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए एक योद्धा साधु के रूप में तैयार किया गया.

हालांकि, नागा साधुओं की परंपरा का उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में भी मिलता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह परंपरा शंकराचार्य से भी पहले से रही होगी.

कुंभ के दौरान ही क्यों बनाए जाते हैं नागा साधु
नागा साधुओं को कुंभ मेले के दौरान दीक्षा देने और बनाने की परंपरा के पीछे कई ऐतिहासिक, धार्मिक, और आध्यात्मिक कारण हैं. कुंभ मेले के दौरान लाखों साधु-संत और श्रद्धालु एकत्र होते हैं. यह साधुओं और विभिन्न अखाड़ों के लिए एक महत्वपूर्ण समय होता है, जब वे अपने अनुयायियों को दीक्षा देते हैं. नागा साधुओं की दीक्षा के लिए यह एक आदर्श समय माना जाता है क्योंकि बड़े पैमाने पर साधु-संतों और गुरुओं का संगम होता है.

क्या होती है नागा बनने की उम्र

आमतौर पर नागा बनने की उम्र 17 से 19 साल होती है. इसके तीन स्टेज हैं- महापुरुष, अवधूत और दिगंबर. हालांकि इससे पहले एक प्रीस्टेज यानी परख अवधि होती है. जो भी नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में आता है, उसे पहले लौटा दिया जाता है. फिर भी वो अगर नहीं मानता, तब अखाड़ा उसकी पूरी पड़ताल करता है.

क्रिमिनल रिकॉर्ड भी देखा जाता है

अखाड़े वाले उम्मीदवार के घर जाते हैं. घर वालों को बताते हैं कि आपका बेटा नागा बनना चाहता है. घरवाले मान जाते हैं तो उम्मीदवार का क्रिमिनल रिकॉर्ड देखा जाता है.

शुरू में दो-तीन साल केवल गुरु की सेवा

तब नागा बनने की चाह रखने वाले व्यक्ति को एक गुरु बनाना होता है. किसी अखाड़े में रहकर दो-तीन साल सेवा करनी होती है. वरिष्ठ संन्यासियों के लिए खाना बनाना, उनके स्थानों की सफाई करना, साधना और शास्त्रों का अध्ययन करना, इनका काम होता है.

तो वापस घर भी भेज दिया जाता है

वह एक टाइम ही भोजन करता है. काम वासना, नींद और भूख पर काबू करना सीखता है. इस दौरान यह देखा जाता है कि वो मोह-माया के चक्कर में तो नहीं पड़ रहा. उसे घर-परिवार की याद तो नहीं आ रही. अगर कोई उम्मीदवार भटका हुआ पाया जाता है, तो उसे घर भेज दिया जाता है.

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