महिला नागा साधु पीरियड्स में कैसे करती हैं महाकुंभ में स्नान, जानिए नियम?

महिला नागा साधु का जीवन साधना, तपस्या और भक्ति से भरा होता है। महाकुंभ जैसे धार्मिक समागमों में इनकी उपस्थिति एक प्रमुख आकर्षण का कारण बनती है।महिला नागा साधुओं के जीवन में कई सख्त नियम और परंपराएं शामिल हैं, खासकर पीरियड्स (मासिक धर्म) के दौरान।

उनके जीवन के ये नियम इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि उनकी साधना और तपस्या में कोई बाधा न आए। आइए जानते हैं कि महिला नागा साधु पीरियड्स के दौरान महाकुंभ में स्नान और अन्य धार्मिक प्रक्रियाओं को कैसे संपन्न करती हैं। 

आपको बता दें, पुरुष नागा साधु दिगंबर रहते हैं (बिना वस्त्रों के), जबकि महिला नागा साधु के लिए विशेष नियम होते हैं, जिनमें वस्त्र धारण, पूजा-पाठ और अन्य जीवनशैली से जुड़ी कई बातों का ध्यान रखा जाता है।

महिला नागा साधु दिगंबर (निर्वस्त्र) नहीं रह सकतीं। उन्हें सार्वजनिक स्थलों पर वस्त्र पहनने की आवश्यकता होती है। उनका यह वस्त्र उनकी धार्मिक आस्था और नियमों का पालन करने का प्रतीक होता है। 

महिला नागा साधुओं को केसरिया रंग के बिना सिले हुए वस्त्र पहनने होते हैं। यह वस्त्र उनका धार्मिक समर्पण और तपस्या का प्रतीक होता है। इसे ‘गंती’ कहा जाता है, जो शरीर के चारों ओर लपेटा जाता है। इस वस्त्र के अलावा महिला नागा साधुओं को माथे पर तिलक लगाना भी जरूरी होता है।

महिला नागा साधु बनने के लिए एक कठिन दीक्षा प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस प्रक्रिया में महिला को 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि महिला ने सांसारिक मोह-माया को त्याग दिया है और वह पूरी तरह से भगवान के प्रति समर्पित हो चुकी है।

इसके बाद, महिला को पिंडदान करना होता है और उसके सिर का मुंडन किया जाता है। महिला नागा साधु का जीवन आध्यात्मिक साधना, पूजा-पाठ, जाप और ध्यान से भरा होता है। वे विशेष रूप से शिव, पार्वती और माता काली की पूजा करती हैं।

महिला नागा साधु के लिए पीरियड्स के दौरान कुछ विशेष नियम होते हैं। जब कोई महिला नागा साधु महावारी (पीरियड्स) में होती है, तो वह पूजा और भगवान को छूने से बचती है। इस दौरान, वे राख शरीर पर लपेटे रहती हैं और गंगा या संगम में स्नान नहीं करतीं। इसके बजाय, वे अपने शिविर में जल स्नान करती हैं।

महिला नागा साधु पीरियड्स के दौरान गंगा जल का छिड़काव करती हैं, लेकिन गंगा में स्नान नहीं करतीं। इसके अलावा, वे एक छोटा वस्त्र बहाव के स्थान पर लगा लेती हैं ताकि धार्मिक और शारीरिक शुद्धता बनी रहे। कुंभ के दौरान, महिला नागा साधु के लिए एक विशेष ‘माई बाड़ा’ बनाया जाता है, जिसमें सभी महिला नागा साधु रहती हैं।

महिला नागा साधुओं का आहार बहुत ही साधारण और प्राकृतिक होता है। वे मुख्य रूप से कंदमूल, फल, जड़ी-बूटी और पत्तियां खाती हैं। उनका भोजन बिना पका हुआ होता है और वे शाकाहारी होती हैं। इसके अलावा, महिला नागा साधु का दिन पूजा-पाठ और ध्यान से शुरू होता है। वे सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं और शाम को भगवान दत्तात्रेय की पूजा करती हैं। 

2469000 88 total views , 45 1 views today

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *