पहले संभल मस्जिद, अब अजमेर: अचानक क्यों विपक्ष के निशाने पर आए पूर्व CJI चंद्रचूड़, बता रहे कहां हुई ‘गलती’

नई दिल्ली: संभल की जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ पर निचली अदालतों के फैसलों के बाद देश के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ आलोचनाओं के केंद्र में हैं. अजमेर शरीफ के सर्वे की मांग के बीच पूर्व सीजेआई पर सियासी हमले तेज हो गए हैं. पूर्व सीजेआई पर आरोप है कि उन्होंने अपने आदेश से ऐसी याचिकाओं और देश के विभिन्न धार्मिक स्थलों के सर्वे के लिए रास्ता खोल दिया है. पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और अब समाजवादी पार्टी के सांसद पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ पर निशाना साध रहे हैं. दरअसल, पूर्व सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने पिछले साल एक फैसला सुनाया था, जिसमें वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वेक्षण की अनुमति दी गई थी.

सपा सांसद जिया उर रहमान बर्क और मोहिब्बुल्लाह नदवी ने न्यूज18 से कहा, ‘चंद्रचूड़ का वो फैसला गलत था. इससे ऐसे और सर्वे के रास्ते खुल गए हैं. सुप्रीम कोर्ट को इस पर ध्यान देना चाहिए और देशहित में ऐसी याचिकाओं और सर्वेक्षणों को रोकना चाहिए.’ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसी तर्ज पर एक बयान जारी कर ज्ञानवापी में सर्वे की इजाजत देने और “अपना रुख नरम” करने के लिए पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ को जिम्मेदार ठहराया है.

सवालों के घेरे में चंद्रचूड़

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, ‘बाबरी मस्जिद मामले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का हवाला दिया था. कहा था कि इस कानून के अधिनियमन के बाद कोई नया दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इस कानून में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता.’

इसके बाद चंद्रचूड़ बेंच के पिछले साल के फैसले का हवाला दिया गया. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, ‘जब निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद पर दावे को स्वीकार किया, तब मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनका कहना था कि पूजा स्थल अधिनियम को देखते हुए इस तरह के दावे को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि, अदालत ने अपने रुख को नरम करते हुए सर्वेक्षण की अनुमति देते हुए कहा कि यह 1991 के कानून का उल्लंघन नहीं करता है.’ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बयान में कहा गया है कि इसके बाद मथुरा में शाही ईदगाह, लखनऊ में टीले वाली मस्जिद और अब संभल में जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ पर भी दावे किए जाने लगे.

समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने  कहा, ‘निचली अदालतों को इस तरह की किसी भी याचिका पर सुनवाई तुरंत बंद कर देनी चाहिए. पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से जुड़े मामलों को सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को ही देखना चाहिए. वरना निचली अदालतों के फैसले देश में आग लगा देंगे.’ वहीं, कांग्रेस के इमरान मसूद ने भी सवाल उठाया कि अगर 1991 के कानून के मुताबिक किसी धार्मिक स्थल के स्वरूप को बदला नहीं जा सकता है. तो ऐसे में सर्वेक्षण का क्या मतलब है? मसूद ने न्यूज18 से कहा, ‘सांप्रदायिक वैमनस्य और तनाव फैलाने के अलावा आखिर सर्वेक्षण का मकसद क्या है?’

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने  बात करते हुए ऐसे सर्वेक्षणों के मकसद पर ही सवाल उठा दिए. उन्होंने कहा कि जब 1991 के कानून के मुताबिक कुछ और हो ही नहीं सकता, तो ऐसे सर्वेक्षण का क्या मतलब? ओवैसी ने कहा, ‘जिस दिन संभल कोर्ट में याचिका दायर की गई, उसी दिन दोपहर में सर्वेक्षण का आदेश दिया गया और उसी दिन सर्वेक्षण भी कर लिया गया.’ कई विपक्षी नेता संघ प्रमुख मोहन भागवत के 2022 के उस बयान का हवाला देते हुए इस तरह के सर्वेक्षणों को रोकने की अपील कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘हर मस्जिद में शिवलिंग देखने की जरूरत नहीं है.’

काउंटर बहस

इनमें से कई मामलों में हिंदू पक्ष की पैरवी विष्णु शंकर जैन कर रहे हैं. वे 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की धारा 4 का हवाला देते हैं, जिसमें साफ कहा गया है कि यह ASI की प्रोटेक्टेड साइट यानी संरक्षित स्थानों पर लागू नहीं होगा. विष्णु शंकर जैन ने कहा, ‘संभल साइट ASI संरक्षित है. इसलिए पूजा स्थल अधिनियम 1991 संभल पर लागू नहीं होता.’ उन्होंने 1950 के प्राचीन स्मारक अधिनियम का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि अगर ASI संरक्षित स्मारक कोई धार्मिक स्थल है, तो ASI उस स्थल के धार्मिक चरित्र का निर्धारण करेगा और उस समुदाय को प्रवेश प्रदान करेगा जिससे धार्मिक स्थल जुड़ा हुआ है.
विष्णु शंकर जैन ने इसी कानून का हवाला देते हुए संभल जामा मस्जिद स्थल के सर्वेक्षण की मांग की है और कहा है कि हिंदुओं को वहां पूजा करने की इजाजत मिलनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को निचली अदालत में मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी है, जब तक हाईकोर्ट इस पर फैसला नहीं सुना देता. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निचली अदालत सर्वे रिपोर्ट को सीलबंद कवर में रखे.

पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ का क्या था जजमेंट

सुप्रीम कोर्ट ने 3 अगस्त, 2023 को वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में ASI को वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दे दी. यह फैसला तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनाया था. वाराणसी की अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने अदालत में तर्क दिया था कि यह फैसला 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ है और इससे देश भर में इसी तरह की याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 में पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने पर कोई रोक नहीं है. जबकि इसी अधिनियम की धारा 4, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बदलने पर रोक लगाती है. इस फैसले के बाद 14 दिसंबर, 2023 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद परिसर के कोर्ट की निगरानी में सर्वेक्षण की अनुमति दे दी. मध्य प्रदेश में भी ASI संरक्षित 11वीं शताब्दी के स्मारक भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वेक्षण को लेकर विवाद खड़ा हो गया. इसी हफ्ते की शुरुआत में एक स्थानीय अदालत ने एक याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें दावा किया गया था कि सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती के अजमेर शरीफ दरगाह में एक मंदिर था और मामले को दिसंबर तक के लिए तय कर दिया

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