जस्टिस संजीव खन्ना ने आज यानी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के 51वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ ले ली है. उन्होंने डीवाई चंद्रचूड़ की जगह ली है. चंद्रचूड़ का दो साल का कार्यकाल रविवार को खत्म हो गया और वे 65 साल की उम्र में रिटायर हो गए हैं. उन्होंने 8 नवंबर, 2022 को CJI के रूप में कार्यभार संभाला था. जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल छह महीने (13 मई 2025) तक रहेगा. नए CJI की बेंच के पास कई बड़े मामले से पेंडिंग हैं. इनमें बिहार में जातीय जनगणना की वैधता, पीएम मोदी से जुड़ी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री जैसे बड़े केस शामिल हैं. CJI के सामने इन केसों के निस्तारण की चुनौती भी रहेगी.
जस्टिस संजीव खन्ना को स्पष्ट फैसले लिखने के लिए जाना जाता है और उन्होंने अपने कार्यकाल में कई बड़े और चर्चित मामलों में ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं. जस्टिस खन्ना अब तक RTI, ज्यूडिशियल ट्रांसपेरेंसी, VVPAT, इलेक्टोरल बॉन्ड और अनुच्छेद 370 समेत अन्य बड़े मामलों के फैसले से जुड़े रहे हैं. जस्टिस खन्ना के नाम की सिफारिश निवर्तमान CJI चंद्रचूड़ ने की थी. जस्टिस खन्ना को जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था.
जस्टिस संजीव खन्ना के कार्यकाल में उनके समक्ष कुछ लंबित बड़े मामले होंगे. इन केसों में निर्णय करने में उनकी क्षमता पर लोगों की निगाह रहेगी. मसलन, समलैंगिक विवाह (LGBTQ कम्युनिटी) के विवाह के अधिकार को खारिज करने वाले आदेश की समीक्षा, वैवाहिक बलात्कार मामला, दांपत्य अधिकारों की बहाली की वैधता, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम जैसे केस शामिल हैं. इसके अलावा, सालों तक जेल में बंद राजनीतिक बंदियों को जस्टिस खन्ना के कार्यकाल के दौरान समय से राहत मिलती है या नहीं? इस पर भी नजर रहेगी.
नए CJI की बेंच के पास ये केस पेंडिंग
– चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अधिनियम, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. ये केस जस्टिस खन्ना की बेंच के पास है. SC में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की गई हैं. इसमें सीजेआई को चुनाव आयुक्तों के चयन पैनल से हटाने को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता जया ठाकुर की ओर से कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 में स्पष्ट उल्लंघन हुआ है.अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 अनूप बरनवाल (2023) में संविधान पीठ के फैसले के विपरीत है या नहीं. यह अधिनियम ECI में सदस्यों को नामित करने के लिए एक कमेटी गठित करता है.
इसके अलावा, कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेशों के टकराव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. 24 जनवरी 2024 को कलकत्ता हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश और 25 जनवरी 2024 को डबल बेंच के फैसले के बीच का विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. इस केस की सुनवाई करने वाली बेंच में जस्टिस खन्ना भी हैं.
दरअसल, जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय की सिंगल बेंच ने 24 जनवरी को पश्चिम बंगाल पुलिस से जुड़े मामले से संबंधित दस्तावेज सीबीआई को सौंपने को कहा था. इस पर बंगाल सरकार ने जस्टिस सौमेन सेन और उदय कुमार की बेंच का रुख किया, जिसने सिंगल बेंच के आदेश पर रोक लगा दी थी. जस्टिस गंगोपाध्याय ने अपने आदेश में डबल बेंच का नेतृत्व कर रहे जस्टिस सौमेन सेन पर कदाचार का आरोप लगाया था और एक राजनीतिक दल के लिए काम करने का आरोप लगाया था.
नबम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहा है. इसमें नबम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामले में पांच जजों की पीठ ने फैसला दिया था. अब SC पुनर्विचार कर रहा है, ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि क्या स्पीकर विधायकों के खिलाफ अयोग्यता कार्यवाही की निगरानी कर सकते हैं, जब सदन में उनके स्वयं के निष्कासन का प्रस्ताव लंबित हो. 2016 में अरुणाचल प्रदेश के नबम रेबिया मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि विधानसभा स्पीकर सदन में अपने विरुद्ध रिमूवल का पूर्व नोटिस लंबित रहते हुए विधायकों की अयोग्यता याचिका पर फैसला नहीं कर सकता. नबम रेबिया फैसला एकनाथ शिंदे (महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री) के नेतृत्व में शिवसेना के विद्रोही विधायकों के लिए रक्षा कवच साबित हुआ.
– अनुच्छेद 194 के तहत इम्युनिटी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला भी जस्टिस खन्ना की बेंच के पास है. इस केस में एन रवि बनाम विधानसभा अध्यक्ष चेन्नई पक्षकार हैं. सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या अनुच्छेद 194 के तहत विधि निर्माताओं को प्राप्त प्रतिरक्षा अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर हावी है या नहीं.
– राज्यों को वार्षिक कारोबार के आधार पर टैक्स लगाने का अधिकार मामला भी जस्टिस खन्ना की बेंच के पास है. इस केस में अर्जुन फ्लोर मिल्स बनाम ओडिशा राज्य पक्षकार है. सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि राज्य सरकारों को वार्षिक कारोबार के आधार पर बिक्री कर वसूलने की संवैधानिक अनुमति है या नहीं.
बिहार जाति ‘जनगणना’ की वैधता के मामले में भी सुनवाई की जा रही है. इस केस में यूथ फॉर इक्विलिटी बनाम बिहार राज्य पक्षकार है. सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि बिहार सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण कराने का अधिकार है या नहीं.
पीएम मोदी की डॉक्यूमेंट्री पर बैन मामले में भी जस्टिस खन्ना की बेंच सुनवाई कर रही है. इस केस में एन राम बनाम भारत संघ पक्षकार हैं.
– मौलिक कर्तव्यों को लागू करने के मामले में दुर्गा दत्त बनाम भारत संघ पक्षकार हैं. याचिका में मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की मांग की गई है.
– पदोन्नति में आरक्षण मामले में जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता पक्षकार हैं. कोर्ट ने 2006 के नागराज फैसले का मूल्यांकन करके इस बात पर विचार किया कि क्या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को पदोन्नति तक बढ़ाया जाना चाहिए. अब वह अपने 2018 के फैसले पर स्पष्टीकरण देगा. स्पष्टीकरण यह निर्धारित करेगा कि डेटा के माध्यम से अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को कैसे मापा जा सकता है.
– न्यायाधिकरण और वित्त अधिनियम मामले में रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड पक्षकार हैं. सुप्रीम कोर्ट यह तय कर रहा है कि क्या वित्त अधिनियम, 2017 का भाग XIV, जो न्यायाधिकरणों से संबंधित है, लोकसभा द्वारा असंवैधानिक रूप से अधिनियमित किया गया था.
अल्पसंख्यक दर्जा का राज्यवार अनुदान मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ पक्षकार हैं. सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम, 2004 की धारा 2 (एफ) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2(सी) संवैधानिक रूप से वैध हैं या नहीं. यह मामला तय करेगा कि अल्पसंख्यक दर्जा राष्ट्रीय जनसंख्या के अनुसार दिया जाना चाहिए या राज्यवार आधार पर.
– तीन तलाक का अपराधीकरण मामले में समस्त केरल जेम-इय्याथुल उलमा बनाम भारत संघ पक्षकार हैं. SC मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.
नई बेंच भी गठित कर सकते हैं नए सीजेआई
CJI के रूप में जस्टिस खन्ना के सामने ना सिर्फ वर्क लोड कम करने की चुनौती रहेगी, बल्कि अपनी बेंच के पास पेंडिंग मामलों को निपटाने की जिम्मेदारी भी है. हालांकि, CJI इन मामलों के लिए नई बेंच का गठित कर सकते हैं और संविधान पीठ से जुड़े मामलों में खुद सुनवाई कर सकते हैं.
हाल में AMU से जुड़े मामले में सुनाया फैसला
जस्टिस खन्ना हाल में AMU से जुड़े मामले में ऐतिहासिक फैसला देने वाली संवैधानिक पीठ का भी हिस्सा थे. SC ने AMU को अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार माना है. कोर्ट ने इस मामले में 1967 का अपना ही फैसला बदल दिया है जिसमें कहा गया था कि AMU अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जे का दावा नहीं कर सकती है. अन्य समुदायों को भी इस संस्थान में बराबरी का अधिकार है. संवैधानिक बेंच में जस्टिस खन्ना समेत 7 जज शामिल थे. इनमें जस्टिस खन्ना समेत 4 ने पक्ष में और 3 ने विपक्ष में फैसला सुनाया. मामले को 3 जजों की रेगुलर बेंच को भेज दिया गया है. इस बेंच को यह जांच करनी है कि क्या अल्पसंख्यकों ने एएमयू की स्थापना की थी?
शराब नीति मामले में दिया था अनूठा फैसला
SC में जस्टिस खन्ना ने अपने कार्यकाल में कई राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों की बेंच का नेतृत्व किया, जिसमें विशेषकर शराब नीति मामले में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह की जमानत याचिकाओं से संबंधित मामले शामिल हैं.
जस्टिस खन्ना की बेंच ने ही अपनी तरह के अनूठे फैसले में मई में केजरीवाल को लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी थी. जस्टिस खन्ना की बेंच ने मामले को बड़ी बेंच को भेजा और जुलाई में फिर केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी गई.
अनुच्छेद 370 और चुनावी बॉन्ड पर भी सुनाया था फैसला
जस्टिस खन्ना ने संविधान पीठ के सदस्य के रूप में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जुड़ी याचिका और चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार देने समेत कई अन्य फैसलों का हिस्सा रहे हैं. जस्टिस खन्ना की बेंच ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPAT) से संबंधित मुद्दों पर भी सुनवाई की.
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर सुनवाई कर दी थी स्थगित
इसके अलावा, जस्टिस खन्ना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री “इंडिया: द मोदी क्वेश्चन” पर भी सुनवाई की थी और केंद्र सरकार के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जनवरी तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी थी. 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित दो एपिसोड की यह डॉक्यूमेंट्री जनवरी 2023 में प्रसारित होने वाली थी. केंद्र ने इस डॉक्यूमेंट्री को भारत में रिलीज होने से प्रतिबंधित कर दिया था. साथ ही डॉक्यूमेंट्री के लिंक शेयर करने वाले कई YouTube वीडियो और ट्विटर (अब X) पोस्ट को ब्लॉक करने के निर्देश भी जारी किए थे.
तो तिलक-बिंदी पर बैन क्यों नहीं लगाया?
जस्टिस खन्ना उस समय भी चर्चा में आए थे, जब उन्होंने मुंबई के निजी संस्थान डीके मराठे कॉलेज के कैंपस में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के आदेश पर रोक लगा दी थी. जस्टिस खन्ना ने एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज चलाने वाली चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी को नोटिस जारी किया था और 18 नवंबर तक जवाब मांगा था. बेंच ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि यदि कॉलेज का इरादा छात्राओं की धार्मिक आस्था को उजागर ना करने का था तो उसने तिलक और बिंदी पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया? कोर्ट का कहना था कि शैक्षणिक संस्थान स्टूडेंट्स पर अपनी पसंद नहीं थोप सकते हैं.
वन रैंक वन पेंशन’ में देरी पर केंद्र पर लगाया था जुर्माना
जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने वन रैंक वन पेंशन योजना (OROP) के क्रियान्वयन में देरी पर केंद्र सरकार पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया था और उसे सेना के कल्याण कोष में जमा करने का निर्देश दिया. इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए 14 नवंबर तक का आखिरी मौका भी दिया था. जस्टिस खन्ना की बेंच ने कहा था कि अगर केंद्र 14 नवंबर तक कोई निर्णय लेने में विफल रहता है तो हम 10 फीसदी बढ़ी हुई पेंशन का भुगतान करने का निर्देश देंगे. मामले को 25 नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
जस्टिस खन्ना ने केंद्र सरकार को सुनाई थी दो टूक
OROP योजना मोदी सरकार द्वारा 2015 में शुरू की गई थी. इस योजना के तहत रिटायर सैनिकों के लिए पेंशन की दर सशस्त्र बलों के वर्तमान रिटायर सैनिकों के बराबर तय की गई है. लेकिन, केंद्र के रिटायर नियमित कैप्टनों को देय पेंशन के संबंध में निर्णय नहीं लेने पर नाराजगी जताई थी. जस्टिस खन्ना ने सीधे सरकार से पूछा था कि यह क्या है? यदि सरकार कोई निर्णय नहीं ले रही है तो मैं कुछ नहीं कर सकता. वे सेवानिवृत्त कैप्टन हैं. उनकी कोई बात नहीं सुनी जाती. आप लोगों तक उनकी पहुंच नहीं है. या तो आप 10 प्रतिशत ज्यादा भुगतान करना शुरू करें या लागत का भुगतान करें. चुनाव आपको करना है.
सेम सेक्स से जुड़े मामले की सुनवाई से खुद को अलग किया
जस्टिस खन्ना ने सेम सेक्स मैरिज केस से जुड़ी रिव्यू याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. जुलाई 2024 में समलैंगिक विवाह के मामले में रिव्यू पिटीशन की सुनवाई के लिए 4 जजों की बेंच गठित की गई थी. सुनवाई से पहले जस्टिस खन्ना ने कहा था कि उन्हें इस मामले से छूट दी जाए.
14 मई 1960 को जन्मे जस्टिस खन्ना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई की. दिल्ली हाईकोर्ट के जज नियुक्त होने से पहले वे तीसरी पीढ़ी के वकील थे. उन्होंने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया है.