वॉशिंगटन: अमेरिकी कांग्रेस के 11 सांसदों ने विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को लिखे पत्र में बाइडन प्रशासन से पाकिस्तान को भविष्य में अमेरिकी सहायता रोकने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि जब तक पाकिस्तान में संवैधानिक व्यवस्था बहाल नहीं हो जाती है और स्वतंत्रत-निष्पक्ष चुनाव संपन्न नहीं होते हैं, अमेरिकी सहायता पर रोक जारी रहनी चाहिए। इन सांसदों में अमेरिका की कट्टरपंथी इस्लामी सांसद और इमरान खान की करीबी दोस्त इल्हाना ओमर भी शामिल हैं। इमरान खान वर्तमान में राजनयिक सिफर नोट सार्वजनिक करने को लेकर जेल की सजा काट रहे हैं।
पाकिस्तान से क्यों नाराज हैं अमेरेिकी सांसद
अमेरिकी सांसदों ने लीही कानून और विदेशी सहायता अधिनियम की धारा 502 (बी) के तहत विदेश मंत्रालय से कानूनी निर्धारण का अनुरोध किया ताकि यह आकलन किया जा सके कि क्या अमेरिकी सुरक्षा सहायता ने पाकिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन को बढ़ावा दिया है। उन्होंने लिखा, “हम अनुरोध करते हैं कि भविष्य में सुरक्षा सहायता तब तक रोक दी जाए जब तक कि पाकिस्तान संवैधानिक व्यवस्था की बहाली की दिशा में निर्णायक रूप से आगे नहीं बढ़ जाता, जिसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना भी शामिल है, जिसमें सभी दल स्वतंत्र रूप से भाग लेने में सक्षम हों।”
इल्हान ओमर कर रही सांसदों का नेतृत्व
ईशनिंदा कानून को और मजबूत करने के पाकिस्तान के कदमों को भी पत्र में प्रमुखता से दर्शाया गया है, जिसमें विदेश मंत्री ब्लिंकन को चेतावनी दी गई है कि प्रस्तावित परिवर्तनों का उपयोग छोटे धार्मिक समूहों और अल्पसंख्यकों पर शिकंजा कसने के लिए किया जाएगा। इल्हान उमर सहित लगभग दर्जन भर कांग्रेस सदस्यों ने संवैधानिक व्यवस्था की बहाली, ईशनिंदा कानून में बदलाव को वापस लेने की मांग की।
पाकिस्तानी ईशनिंदा कानून से नाराज हैं सांसद
अमेरिकी सांसदों ने लिखा, “हम पाकिस्तान में आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2023 के पारित होने को लेकर बेहद चिंतित हैं, जो मौजूदा ईशनिंदा कानून को मजबूत करेगा, जिसका इस्तेमाल ऐतिहासिक रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने के लिए किया जाता रहा है।” उन्होंने बताया कि विधेयक, जिस पर अभी तक राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर नहीं किया गया है, “संपूर्ण संसदीय प्रक्रिया के लिए कई सांसदों के बार-बार आग्रह के बावजूद जल्दबाजी में पारित किया गया था।”
पाकिस्तान में चर्चों पर हमले का भी जिक्र
पत्र में यह भी बताया गया है कि विधेयक पारित होने के आठ दिन बाद 16 अगस्त को भीड़ ने चर्चों पर हमला कर दिया और जरनवाला में ईसाइयों के घरों में आग लगा दी। इसमें गिलगित-बाल्टिस्तान में शिया समुदाय सहित बिल के खिलाफ कथित विरोध प्रदर्शन का भी उल्लेख किया गया है। सांसदों ने चेतावनी दी, “पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न बड़े पैमाने पर जारी है, और यदि यह विधेयक कानून बन जाता है तो हम भविष्य में धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों को लेकर चिंतित हैं।”