नई दिल्ली: भारत ने अपनी आर्थिक ताकत से पूरी दुनिया को चौंका दिया है। अपने जबरदस्त विदेशी मुद्रा भंडार के साथ भारत अब विश्व के टॉप 4 देशों में शामिल हो गया है। इस मामले में चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद भारत चौथे नंबर पर है। एक समय था जब भारत की अर्थव्यवस्था को ‘फ्रेजाइल फाइव’ का हिस्सा माना जाता था। लेकिन, आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह विकासशील देशों के लिए एक मिसाल है।
भारत न सिर्फ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में भी उसने एक नया रिकॉर्ड कायम किया है। इतिहास में पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 700 अरब अमेरिकी डॉलर के पार पहुंच गया है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, 27 सितंबर को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 12.588 अरब अमेरिकी डॉलर बढ़कर 704.885 अरब अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक ऊंचे स्तर पर पहुंच गया।
हालांकि, पिछले महीने फॉरेक्स के आंकड़ों में गिरावट देखने को मिली थी। इसकी वजह यह हो सकती है कि रुपये में तेज गिरावट को रोकने के लिए आरबीआई ने हस्तक्षेप किया हो। विदेशी मुद्रा भंडार का ऊंचा स्तर घरेलू आर्थिक गतिविधियों को वैश्विक झटकों से बचाने में मदद करता है।
एक साल के आयात के लिए काफी है भंडार
अनुमान है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब लगभग एक साल या उससे अधिक के अनुमानित आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है। फॉरेक्स रिजर्व या विदेशी मुद्रा भंडार, किसी देश के केंद्रीय बैंक या मौद्रिक प्राधिकरण की ओर से रखी गई संपत्तियां होती हैं। विदेशी मुद्रा भंडार आमतौर पर आरक्षित मुद्राओं में रखे जाते हैं। आमतौर पर अमेरिकी डॉलर और कुछ हद तक यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग में इसे रखा जाता है।
आरबीआई विदेशी मुद्रा बाजारों पर कड़ी नजर रखता है। वह केवल व्यवस्थित बाजार की स्थिति बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप करता है। इसका उद्देश्य किसी पूर्व-निर्धारित लक्ष्य स्तर या बैंड के संदर्भ के बिना विनिमय दर में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करना है। रुपये में भारी गिरावट को रोकने के लिए आरबीआई अक्सर डॉलर की बिक्री सहित चलनिधि प्रबंधन के जरिये बाजार में हस्तक्षेप करता है।
एक दशक पहले, भारतीय रुपया एशिया की सबसे अस्थिर मुद्राओं में से एक थी। हालांकि, तब से यह सबसे स्थिर मुद्राओं में से एक बन गई है। जब रुपया मजबूत होता है तो आरबीआई रणनीतिक रूप से डॉलर खरीदता है। जब यह कमजोर होता है तो उसे बेचता है। कम अस्थिर रुपया भारतीय संपत्तियों को निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बनाता है। इससे अर्थव्यवस्था के बारे में अनुमान लगाना आसान बनता है।
ज्यादा फॉरेक्स रिजर्व क्या है फायदा?
यह भंडार करेंसी की कीमत को स्थिर रखने में मदद करता है। साथ ही आर्थिक संकटों से बचाते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार से देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने में आसानी होती है। भंडार होने से देशों को आसानी से बेहतर दरों पर कर्ज मिल जाता है।
अमेरिका के लिए चुनौती
वैसे तो अमेरिका अभी भी विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और डॉलर दुनिया की प्रमुख मुद्रा है। हालांकि, चीन, जापान और भारत जैसे देशों का बढ़ता हुआ आर्थिक प्रभाव निश्चित रूप से अमेरिका के लिए एक चुनौती है। यह बहुध्रुवीय विश्व की ओर बढ़ने का संकेत है। जहां पहले अमेरिका का दबदबा था। अब कई देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।