विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पेट्रोलिंग (गश्त) को लेकर हुए समझौता का श्रेय भारतीय सेना और कूटनीति को दिया। पूर्वी लद्दाख में देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में दोनों देशों की सेनाओं के बीच शुक्रवार को डिसएंगेजमेंट (सैनिक वापसी) की प्रक्रिया शुरू हुई, जो 29 अक्टूबर तक पूरी हो जाएगी। इसके बाद 30-31 अक्टूबर से गश्त फिर से शुरू की जाएगी।
पुणे में छात्रों के साथ संवाद करते हुए जयशंकर ने कहा कि संबंधों के सामान्य होने में अभी समय लगेगा, क्योंकि विश्वास और सहयोग को दोबारा स्थापित करना लंबी प्रक्रिया है। विदेश मंत्री ने बताया कि हाल ही में रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक में यह निर्णय लिया गया कि दोनों देशों के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बैठक करेंगे और आगे की रणनीति पर विचार करेंगे।
जयशंकर ने कहा, “अगर आज हम उस मुकाम पर पहुंचे हैं, जहां हम हैं…तो इसका एक कारण यह है कि हमने अपनी जमीन पर डटे रहने और अपनी बात रखने के लिए बहुत दृढ़ प्रयास किया। सेना देश की रक्षा के लिए बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में (एलएसी पर) मौजूद थी, और सेना ने अपना काम किया और कूटनीति ने अपना काम किया।” उन्होंने यह भी बताया कि भारत अब पिछले एक दशक की तुलना में पांच गुना अधिक संसाधन लगा रहा है, जिससे सेना को प्रभावी ढंग से तैनात किया जा सका है।
उन्होंने बताया कि 2020 से ही सीमा पर स्थिति अस्थिर थी, जिसने दोनों देशों के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। तब से भारत और चीन के बीच विभिन्न स्तरों पर वार्ताएं हुई हैं ताकि समाधान निकाला जा सके। जयशंकर ने कहा कि मौजूदा स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा डिसएंगेजमेंट का था, क्योंकि दोनों सेनाओं के बीच की दूरी काफी कम थी और किसी भी घटना की संभावना बनी हुई थी। इसके बाद डी-एस्केलेशन (तनाव घटाना) का मुद्दा आता है, क्योंकि दोनों पक्षों की सेना ने बड़े पैमाने पर तैनाती की हुई है।
जयशंकर ने बताया कि 2020 के बाद भारत और चीन ने कई क्षेत्रों में यह समझौता किया कि सेना वापस लौटेगी, लेकिन एक महत्वपूर्ण बिंदु गश्त को लेकर था। हाल ही में 21 अक्टूबर को देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में यह सहमति बनी कि दोनों पक्ष पहले की तरह गश्त फिर से शुरू करेंगे। इस समझौते के बाद भारत-चीन के संबंधों में सुधार की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है, लेकिन दोनों देशों के बीच अभी भी विश्वास बहाल करना एक बड़ी चुनौती है।