तिरुपति में 17 साल पहले भी हिंदू आस्था पर आघात के लगे थे आरोप, खूब हुई थी तोड़फोड़; घिर गए थे YSR

आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में तिरुमला की पहाड़ियों पर 3200 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित मंदिर तिरुपति-तिरुमाला देवस्थानम (TTD) एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मंदिर प्रांगण में बनने वाले प्रसादम (लड्डूओं) में घी की जगह पशुओं की चर्बी का इस्तेमाल करने का आरोप लगा है। राज्य के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने खुद इससे संबंधित दावा किया कि पिछली सरकार यानी जगनमोहन रेडेडी की सरकार के दौरान तिरुपति के लड्डुओं में पशु चर्बी का इस्तेमाल किया गया था। नायडू की पार्टी तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने इस दावे के समर्थन में एक प्रयोगशाला रिपोर्ट जारी की है। इसके बाद सियासी बवाल उठ खड़ा हुआ है।

भाजपा समेत कई दलों ने हिन्दू आस्था को आघात पहुंचाने का आरोप लगाया है, जबकि वाईएसआर कांग्रेस ने इन आरोपों की खंडन किया है। दूसरकी तरफ कांग्रेस ने भाजपा पर साजिश के तहत चुनावी मौसम में ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस ने विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर के लड्डुओं को बनाने में घटिया सामग्री और पशु चर्बी के कथित उपयोग से जुड़े विवाद के बीच शुक्रवार को कहा कि पूरी जांच होने से पहले चुनावी मौसम में ‘‘ध्रुवीकरण की साजिश की कहानियों को हवा देना’’ भारतीय जनता पार्टी को खूब रास आता है।

बहरहाल, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब तिरुपति मंदिर पर हिन्दुओं की आस्था पर आघात करने के आरोप लगे हैं। 17 साल पहले यानी 2007 में भी जब राज्य में जगन मोहन रेड्डी के पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार थी, तब इस मंदिर पर ईसाई मिशिनरियों के प्रभाव में आकर मंदिर प्रांगण में ईसा मसीह के क्रॉस से मिली-जुलती आकृतियों वाले स्तंभ लगाने के आरोप लगे थे। तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से जुड़े लोगों ने ना सिर्फ इसका प्रबल विरोध किया था, बल्कि मंदिर परिसर में विवादित आकृति वाले स्तंभों में तोड़फोड़ की थी। इसकी आंच मुख्यमंत्री तक पहुंची थी।

मंदिर प्रबंधन ने तब प्लास्टर ऑफ पेरिस से बने 250 नक्काशीदार स्तंभों के डिजायन और निर्माण का ठेका बंगलुरु की एक कंपनी को दिया था। इन स्तंभों को वेंकटेश्वर मंदिर के ब्रह्मोत्सव उत्सव के दौरान सजावट के लिए लगाया जाना था लेकिन उससे पहले ही इस पर विवाद हो गया था। भाजपा और संघ से जुड़े नेताओं का आरोप था कि स्तंभ का जो डिजायन तैयार किया गया है, वह ईसा मसीह के क्रॉस से मिलता-जुलता है। आरोप लगाया गया कि ऐसा जानबूझकर किया गया ताकि हिन्दुओं की आस्था को ठेस पहुंचाई जाए। जब ये विवाद उपजा उसी समय तिरुपति-तुरुमाला की पहाड़ियों में स्थित निचले लाके के गांवों में धर्मांतरण के खिलाफ व्यापक विरोध चल रहे थे।

उस वक्त इस मंदिर प्रबंधन (TTD) के अध्यक्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के करीबी और कांग्रेस नेता बी करुणाकर रेड्डी थे। उन्होंने तब मंदिर पर मिशनरी प्रभावों के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था और कहा था कि स्तंभों का डिजायन विजयनगर सम्राज्य के समय इस्तेमाल किए गए प्रतीकों से प्रेरित है। बता दें कि इसी साम्राज्य के प्रतापी राजा श्रीकृष्णदेव राय ने इस मंदिर का लंबे समय तक संरक्षण किया था। अब जब फिर से मंदिर पर हिन्दू आस्था के साथ खिलवाड़ करने के आरोप लगे हैं तो फिर मंदिर प्रबंधन की कमान उसी जगन मोहन रेड्डी के करीबी लोगों के पास थी।

यहां यह बात काबिले गौर है कि जगन मोहन रेड्डी खुद को ईसाई समुदाय से जुड़ा मानते रहे हैं। उके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी भी ईसाई रेड्डी परिवार में जन्मे थे। इस वजह से भी इस परिवार पर हिन्दू आस्था को ठेस पहुंचाने के आरोप लगते रहे हैं।

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