बांग्लादेश में कार्यवाहक सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है. सरकार के आदेश के अनुसार, भारत में उच्चायोग में कार्यरत दो बांग्लादेशी राजनयिकों को उनके कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया है. यह आदेश 17 अगस्त से प्रभावी किया गया है.
प्रथम सचिव (प्रेस) शबन महमूद को अपने कॉन्ट्रैक्ट की समाप्ति से पहले नई दिल्ली में बांग्लादेश उच्चायोग में अपना पद छोड़ने के लिए कहा गया. वहीं, दूसरी ओर कोलकाता में बांग्लादेशी वाणिज्य दूतावास में प्रथम सचिव (प्रेस) रंजन सेन को भी कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने से पहले पद छोड़ने के लिए कहा गया था, ऐसे में उन्होंने भी शनिवार को अपना पद छोड़ दिया.
गैर आवश्यक स्टाफ को भारत ने बुलाया था वापस
बता दें कि यह कदम शेख हसीना सरकार के पतन के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव के बीच उठाया गया है. इस महीने की शुरुआत में भारत ने पड़ोसी देश में हिंसा की चिंताओं के कारण ढाका में भारतीय उच्चायोग में गैर-आवश्यक कर्मचारियों और राजनयिकों के परिवारों को वापस बुला लिया था. छात्रों के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विद्रोह का सामना कर रही शेख हसीना को 5 अगस्त को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने और देश छोड़कर भारत आने के लिए मजबूर होना पड़ा. वह लगभग तीन हफ्ते से भारत में हैं और मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार की ओर से उनके राजनयिक पासपोर्ट को रद्द किए जाने के कारण प्रत्यर्पण की संभावना का सामना कर रही हैं.
शेख हसीना पर प्रत्यर्पण का खतरा
बांग्लादेशी समाचार आउटलेट डेली स्टार ने सरकारी स्रोतों का हवाला देते हुए बताया कि हसीना हत्या के 42 मामलों सहित 51 मामलों का सामना कर रही हैं और उनके पास रद्द किए गए राजनयिक पासपोर्ट के अलावा कोई अन्य पासपोर्ट नहीं है.. उनके राजनयिक पासपोर्ट और संबंधित वीजा विशेषाधिकारों को रद्द किए जाने से उन्हें बांग्लादेश और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि के कानूनी ढांचे के तहत प्रत्यर्पण का खतरा है. हसीना ने भविष्य की अपनी योजनाओं पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उनके अमेरिका में रहने वाले बेटे साजिब वाजेद ‘जॉय’ ने संकेत दिया है कि वह लंबे समय तक भारत में रह सकती हैं.