कॉलेजियम सिस्टम खत्म होकर रहेगा? CJI चंद्रचूड़ के सामने न्यायिक सुधार पर पीएम मोदी का इशारा समझिए

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 78वें स्वतंत्रा दिवस पर लाल किले के प्राचीर से न्यायिक व्यवस्था में सुधार की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने अपनी सरकार में रिफॉर्म्स पर किए कामों की पूरी सूची पढ़ी और कहा कि अब न्यायिक सुधार समय की मांग है। पीएम ने बताया कि देशवासियों से ‘विकसित भारत 2047’ पर राय मांगी गई तो लोगों ने दिल खोलकर अपने सुझाव दिए। उन्होंने बताया कि इसी में एक सुझाव यह भी है कि देश में न्याय मिलने में बहुत देरी हो रही है जिसे दूर किए बिना विकसित भारत का संकल्प पूरा नहीं हो सकता है। इसलिए न्याय व्यवस्था में सुधार की बहुत जरूरत है।

सीजेआई चंद्रचूड़ के सामने पीएम ने कही बड़ी बात

पीएम जब न्यायिक सुधार की बातें कर रहे थे तब सामने मेहमानों की कतार में देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ बैठे थे। ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के ज्यूडिशियिल रिफॉर्म के प्रयास को यह कहते हुए झटका दिया था कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया कॉलेजियम सिस्टम से ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने तब नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) को असंवैधानिक करार देते हुए इसे निरस्त कर दिया था।

1993 का वो फैसला और कॉलेजियम सिस्टम की स्थापना

दरअसल, वर्ष 1993 में न्यायिक नियुक्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नई व्यवस्था दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब ‘कलेक्टिव विजडम’ के सिद्धांत पर जोर देते हुए कॉलेजियम प्रणाली की स्थापना की थी। देश की सर्वोच्च अदालत ने ‘एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ’ मामले में ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिसने भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता को एक नई दिशा दी। एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ केस को दूसरे जजों का मामला या सेकंड जजेज केस के नाम से भी जाना जाता है। इससे पहले, न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका प्रमुख होती थी। राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति किया करते थे।

कलेक्टिव विजडम का सिद्धांत

सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के फैसले में ‘कलेक्टिव विजडम (सामूहिक बुद्धिमत्ता)’ के सिद्धांत पर जोर दिया। इसका मतलब यह था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति का निर्णय केवल मुख्य न्यायाधीश पर निर्भर न होकर, सर्वोच्च न्यायालय के अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सामूहिक सहमति पर आधारित होना चाहिए। इस फैसले के तहत कॉलेजियम सिस्टम की स्थापना की गई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। ये पांचों न्यायाधीश सामूहिक रूप से हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति और प्रमोशन का निर्णय लेते हैं।

2013 का आरसी लाहोटी केस और कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2013 के एक अन्य महत्वपूर्ण मामले में पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी के समय के न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए थे। तब कहा गया कि नियुक्तियों में पारदर्शिता का ख्याल नहीं रखा गया। तब सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा कि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता की कमी है जिसके कारण जजों की नियुक्ति प्रक्रिया की आलोचना हो रही है। तब शीर्ष अदालत ने यह सुझाव दिया कि कॉलेजियम के निर्णयों को अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए और नियुक्तियों के लिए अपनाई गई प्रक्रिया और मापदंडों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए ताकि जनता और न्यायपालिका के भीतर विश्वास बना रहे। इस फैसले के बाद न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कुछ कदम उठाए गए। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कॉलेजियम के निर्णयों को प्रकाशित करने की सिलसिला भी तभी से शुरू हुआ। हालांकि, पारदर्शिता की कमी की आलोचना अभी भी जारी रही।

केंद्र में मोदी सरकार और एनजेएसी का गठन

वर्ष 2014 में लोकसभा के चुनाव हुए और बीजेपी अकेले दम पर 282 सीटें ले आई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। हालांकि, सरकार में कई साथी दल भी शामिल थे जिन्हें मिलाकर एनडीए कहा जाता है। मोदी सरकार ने 2014 में ही नैशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) एक्ट संसद से पारित करवा दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया और कॉलेजियम प्रणाली को बहाल रखा।

एनजेएसी एक संवैधानिक निकाय था, जिसमें न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों का प्रतिनिधित्व होता। इसका उद्देश्य न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना था। इसमें उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, कानून मंत्री और समाज जीवन के दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते । यह सुनिश्चित किया गया था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति केवल न्यायपालिका के हाथ में न होकर, कार्यपालिका और सिविल सोसाइटी का भी प्रतिनिधित्व हो।

और सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी को कर दिया रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के लाए एनजेएसी एक्ट को असंवैधानिक करार दे दिया। अदालत ने यह कहा कि एनजेएसी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है और इस प्रकार यह संविधान की ‘मूल संरचना’ का उल्लंघन करता है। इस फैसले के साथ, कॉलेजियम प्रणाली को फिर से बहाल हो गई। यह निर्णय न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के पक्ष में था, लेकिन इसने न्यायिक सुधारों की आवश्यकता पर एक नई बहस को जन्म दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह ज्यादा पारदर्शिता के पक्ष में है, लेकिन कार्यपालिका के बढ़ते दखल को बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसलिए उसने कॉलेजियम सिस्टम को बरकरार रखने पर जोर दिया और कहा कि इस सिस्टम को ही और पारदर्शी बनाने के रास्ते सरकार तलाशे। हालांकि, इस फैसले ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव को और गहरा कर दिया।

कॉलेजियम सिस्टम में दिक्कत क्या है?

कॉलेजियम प्रणाली की सबसे बड़ी आलोचना इसकी पारदर्शिता की कमी को लेकर होती है। हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में जजों की अपॉइंटमेंट और प्रमोशन के फैसले की प्रक्रियाएं गोपनीय होती हैं और निर्णय लेने के मापदंड स्पष्ट रूप से सार्वजनिक नहीं किए जाते हैं। विरोधी आरोप लगाते हैं कि कॉलेजियम सिस्टम के जरिए मुट्ठीभर परिवारों को ही हाइयर जूडीशरी में जगह मिलती रहती है। उनका साफ आरोप है कि पक्षपात, भाई-भतीजावाद और निहित स्वार्थों की रक्षा के लिए कॉलेजियम सिस्टम को ढोया जा रहा है। जवाबदेही की कमी के कारण इसे ‘स्व-नियुक्ति (सेल्फ अपॉइंटमेंट)’ का मामला बताया जाता है, जिसमें न्यायपालिका का नियंत्रण सिर्फ न्यायपालिका के हाथ में होता है, जबकि लोकतांत्रिक ढांचे में किसी भी शाखा को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए।

सरकार और न्यायपालिका के बीच बड़ी फ्लैश पॉइंट

कॉलेजियम सिस्टम के तहत, सरकार की भूमिका केवल कॉलेजियम की सिफारिशों को मंजूरी देने तक सीमित है, जिसके कारण सरकार और न्यायपालिका के बीच खींचतान पैदा होती है। यही वजह है कि कई विशेषज्ञ और न्यायविद कॉलेजियम सिस्टम में सुधार की मांग करते हैं। वो चाहते हैं कि जजों की नियुक्ति और प्रमोशन के सिस्टम में अधिक पारदर्शिता, जवाबदेही, और प्रक्रियाओं में बाहरी निगरानी को शामिल किया जाए।

आखिर क्या होना चाहिए?

इस विवाद का मूल प्रश्न यह है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए कॉलेजियम सिस्टम ही जरूरी है या इसे लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर कुछ हद तक नियंत्रण में रखा जाना चाहिए। इस प्रश्न के इर्द-गिर्द सरकार और न्यायपालिका के बीच एक सतत संघर्ष देखा जाता है, जो इस बात पर केंद्रित है कि न्यायपालिका की स्वायत्तता कितनी होनी चाहिए।

क्या नए रूप में आएगा एनजेएसी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब आज लाल किले से न्यायिक सुधार की बात कर रहे थे तो उनका पूरा इशारा जजों की नियुक्ति को ज्यादा पारदर्शी बनाने की ओर ही था। संभव है कि आने वाले दिनों में इसके लिए कॉलेजियम सिस्टम की जगह एक नई व्यवस्था बनाने पर जोर दिया जाएगा। नई व्यवस्था में न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की तरह का हो कोई सिस्टम तैयार किया जा सकता है। संभव है कि इस बार सुप्रीम कोर्ट की सहमति लेकर ही कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने या इसमें बड़े सुधार लाने का प्रयास हो।

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